कुछ वर्षो पहले की घटना है जब में छटी कक्षा में पढ़ रहा था। एक दिन पिताजी आये और बोले के अब हमें किराये के मकान में नहीं रहना होगा हम अपना खुद का घर बना रहे है। हमारे अच्छे दिन आने वाले है। मकान मालिक अच्छा था पर हम असल में मकान मालिक के एक तरह के अक्कड व्यवहार से आहत थे, हर बात के लिए टोका टाकी बहुत बुरी लगती थी। पिताजी ने भी वर्षो की मेहनत से जमा पूंजी से घर बनाने का निर्णय लिया अंदर मन में बड़ी ख़ुशी हुई। क्यूंकि घर का प्लान पिताजी ने समझाया के हम ऐसे ऐसे घर में रहेंगे , मेरे खेलने के लिए भी बड़ा स्थान होगा इत्यादि इत्यादि। इस निर्णय से मैं इतना खुश था, उत्साह में अपने मित्रो, रिश्तेदारो को बताने लगा की हम अपना घर बनाने वाले। अब एक दिन बिता , बिता में चुकी इतना उत्साहित था गाहे बगाहे हर किसी को नए बनने वाले घर का जिक्र करता ही था। मैं रोज पिताजी से पूछने लगा की नए घर में हम कब जायेंगे। पिताजी बड़े प्यार से बताते के आज हमने जमीन खरीदी , आज बेनामा करवाया , अब ठेकेदार का बुलाकर ठेका दिया और सीमेंट का सौदा कर अग्रिम भुगतान कर दिया, दो चार महीने तो यह सब चला मैं भी नए बनने वाले अधूरे मकान को देखता और मजदूरो से पूछता की जल्दी क्यों नहीं बनता और कब तक बनेगा। दूसरा घर बनते बनते हमारे कुछ खर्चो पर भी पिताजी कटौती कर दी। जो मुझे बड़ा बुरा लगा जैसे इस बार की गर्मियों की छुट्टियों में बोले की कही घूमने नहीं जाना घर पर ही रहना , और कुछ इधर उधर की खरीदारी पर भी रोक लगा दी। अब मुझे बड़ी तकलीफ हुई एक तरफ तो खर्चो में कटौती , दूसरी तरफ मुझे मकान बनता नहीं दीखता था बस नींव भरी जगह और कुछ अध बनी सी दीवारे , तीसरा मेरे उत्साह से चिड़े मेरे मित्र रोज पूछते की यार तेरे अच्छे दिन कब आ रहे है नए घर में कब जा रहा है। अब में अपने पिताजी से रोज पूछता की हम नए घर में कब जायेंगे वो बड़े प्यार से इसकी प्रक्रिया समझते पर मेरी समझ में कुछ नहीं आती मैं गुस्से में रहने लगा। मेरा धैर्ये जवाब देने लगा। समय बीतता चला गया और फिर एक दिन हम बड़े घर में प्रवेश कर गए, पिताजी के निरंतर मेहनत और सफलता से आज हमारा देश के कई शहरो में मकान है और बड़ा व्यापर है। आज हमारे अच्छे दिन आ चुके है।
पर मैं कभी कभी सोचता हु की मेरी तरह यदि मेरे पिताजी भी अपना धैर्ये खो देते जब हम पहला मकान बना रहे थे तो कुंठित हो कर क्या वो इतना सफल हो पाते जितना हम आज है।
मैं सोचता हूँ आशा का संचार और धैर्ये अच्छे दिनों के आने पहचान है। मैंने तो धैर्य रखा आज खुश हूँ। मेरा देश के कुछ अदभुत और जल्दबाद लोग अधकचरी और अधूरी बानी दीवारे देख धैर्य खोते प्रतीत होते है परन्तु उनको समझ लेना चाहिए की सफलता और ख़ुशी इसी में है। यदि देश के प्रधानमंत्री की नियत साफ़ है तो आपके अच्छे दिन आने वाले है। और प्रधानमंत्री की नियत में १२० करोड़ लोगो को कोई शक नहीं है।
इसी लिए बड़ों का साया सर पर होना जरूरी होता
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