जी हाँ ये राजनीती की एक हकीकत यह भी है. आज भ्रम न रह जाये पर सचाई यह है की सोनिया और राहुल गाँधी का कद बहुत ही छोटा होगया है. सत्ता के सिरमौर आज शीर्षासन कर रहे है. आज जो लोग सोनिया और राहुल की जय कर रहे है हकीकत उनको भी पता है की झूटी जय जयकार है यह. इसमें बहुत सारे पेंचहै. देखिया एक बात तो बहुत ही स्पष्ट है की बहुमत किसी भी प्रकार से सोनिया या राहुल को तो बिलकुल ही नहींमिला है. बहुमत मिला हैं सरदार मनमोहन सिंह को. इस बात की पुष्टि बहुत सारे तथ्यों से होती है जैसे -
आज तो मीडिया इन सब को बाबा लोग कहेती फिरती थी और आज एक ही दिन में ये बाबा लोग हिंदुस्तान कामुस्तकबिल बनगए यह बहुत ही हास्यप्रद बात हैं. ये लोग अपने बाप की सडी गली घोर परिवारवादी परम्परा ही आगे बड़ा रहे है. जींस के ऊपर कुर्ता पेहेन ने से ये इंडिया, भारत को नहीं समझ सकता. और येएनजीओ टाइप नौटंकी करने से भारत चीन या अमरीका का मुकाबला नहीं कर पायेगा. इसका उत्तर भी आपकोशीघ्र मिलजायेगा.
बात थी सोनिया गाँधी के घटते कद की. सोनिया की उस टाइम की त्याग की देवी की नौटंकी अब उसी के गले में पड़गई. आप सोचे की जब कांग्रेस को बहुमत है और काबिल मंत्री मंत्रिमंडल में रखलिया गए तो अब सोनिया गाँधी काकाम क्या है. पहेले तो सोनिया अपना रुतबा सप्रंग के लालू जैसे लोगो को मनाकर अपनी ताकत का अहेसास दिखाती रहेती थी और हर समये अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रहेती थी परन्तु अब तो मनमोहन को हड़काए बिना यह संभव ही नहीं और मनमोहन जो की कमजोर प्रधानमंत्री (घोषित रूप से) नहीं है वो उसका जवाब किस रूप में देंगे वो ही सोनिया के लिए अपनी ज्यादा होशियारी दिखने की परिणिति होगी.
- सोनिया गाँधी कभी भी चुनाव के अंतिम चरण में कोउत्रोची को बरी करने की हड़बड़ी नहीं दिखाती. अब बहुमत के बाद शांति से उस केस को निपटती. परन्तु सपने में भी नहीं सोचा था की भारत की जनताकांग्रेस को बहुमत देगी.
- दूसरा कांग्रेस के लिया २००४ में मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाना मज़बूरी था तो अब कांग्रेस सत्ता मेंपहेले से अधिक सक्षम बनके आई है तो अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह क्योँ? यदि पहेले मालूम होता तोराहुल के नेतृत्व में न कांग्रेस लड़ती. इस बात का कांग्रेस को बहुत ही अफ़सोस हैं. और अपने ही बनायेजाल में खुद फंस गई. मेरी इस बात की पुष्ठी इस बात से भी होती हैं की आज कैबिनट में मंत्रियो का चुनावप्रधानमंत्री के पास है सोनिया तो बस दिखा रही हैं की उसीका निर्णय हैं. कांग्रेस आज अपने को बहुत हीमजबूत परन्तु गाँधी परिवार अपने को बहुत ही हीन और कमजोर महेसुस कर रहा है. जो खेल कल तक सोनिया और गाँधी परिवार मनमोहन सिंह के साथ खेलता था आज होनी देखिया वोही सोनिया के साथ होगया. इसिलिया कहेते है की ऊपर वाले की लाठी बेअवाज होती हैं.
- सोनिया तो मनमोहन को हरा हुआ उमीदवार मानकर चुनाव लड़रही थी. अब रपट गए तो हर हर गंगे. इसकी पुष्टि सोनिया की भावः भंगिमाये और चेहरे की उदासी साफ़ बयां कर रही है.क्या चेहरे पर वो २००४ वाली चमक है। नही कतई भी नही।
सरदार मनमोहन सिंह पुरे अधिकार से सरकार चलाने को उतावले है. और येही आत्मविश्वाश सोनिया के लिया चिंता का विषय है.
आज सोनिया के वो त्याग की देवी के छवि भी नहीं है और हर तरफ सिंह इस किंग का ही नशा है। इसलिय एक बात आज मेरी लिखले की मनमोहन सिंह वो आखरी कील है गाँधी - नेहेरू राजवंश के ताबूत में जिसका की किसो को अनुमान नहीं जो काम तब नरसिंह राव से न हो पाया वो आज बड़ा जौरदार तरीके से परन्तु सहज बनकर विधाता ने कर दिखाया.
आप मान ले की सोनिया के बसकी अब राहुल की ताजपोशी संभव नहीं हो पायेगी और निश्चित रूप से उसकीकोशिश अभी एक डेड़ साल में शुरू की जायेगी जो आज मेरी कही गई बात को पुख्ता करेगी. सोनिया तो २०१४ में सरदार मनमोहन सिंह का पिछला कार्यकाल और राहुल की जवानी को दाव पर लगाना चाहती थी. आज राहुल का मंत्रिमंडल में न आना कोई उसका त्याग नहीं बल्कि उसकी खिसीयाट है. प्रधानमंत्री से निचेबनकर तो उसीके कार्यकाल में सारी पोल ही खुलजाएगी फिर कांठ की हंडी कैसे चढेगी. और यह ही कांग्रेस के सामने गंभीर प्रशन है. आज तो मीडिया इन सब को बाबा लोग कहेती फिरती थी और आज एक ही दिन में ये बाबा लोग हिंदुस्तान कामुस्तकबिल बनगए यह बहुत ही हास्यप्रद बात हैं. ये लोग अपने बाप की सडी गली घोर परिवारवादी परम्परा ही आगे बड़ा रहे है. जींस के ऊपर कुर्ता पेहेन ने से ये इंडिया, भारत को नहीं समझ सकता. और येएनजीओ टाइप नौटंकी करने से भारत चीन या अमरीका का मुकाबला नहीं कर पायेगा. इसका उत्तर भी आपकोशीघ्र मिलजायेगा.
बात थी सोनिया गाँधी के घटते कद की. सोनिया की उस टाइम की त्याग की देवी की नौटंकी अब उसी के गले में पड़गई. आप सोचे की जब कांग्रेस को बहुमत है और काबिल मंत्री मंत्रिमंडल में रखलिया गए तो अब सोनिया गाँधी काकाम क्या है. पहेले तो सोनिया अपना रुतबा सप्रंग के लालू जैसे लोगो को मनाकर अपनी ताकत का अहेसास दिखाती रहेती थी और हर समये अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रहेती थी परन्तु अब तो मनमोहन को हड़काए बिना यह संभव ही नहीं और मनमोहन जो की कमजोर प्रधानमंत्री (घोषित रूप से) नहीं है वो उसका जवाब किस रूप में देंगे वो ही सोनिया के लिए अपनी ज्यादा होशियारी दिखने की परिणिति होगी.
कुछ लोगो के मन में यह लेख पढ़कर दो प्रकार के विचार आएंगे एक होगा बीजेपी की हार से खीज कर लिखा लेख हैं यह. दूसरा ग़ालिब मन बहेलाने का ख्याल अच्छा है.
निर्णय जनता ने सोनिया जी को सुनादिया है जिसको की वो कतई सुनना चाहती थी. नहीं तो - कौत्रोची को जल्दी में न भागती.
- सरदार मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री घोषित न करती.
- ६५००० करोड़ के किसानो के लोन माफ़ न करती.
- अफजल, कसाब को न रौकती.
- स्विस बैंक का पैसे वापस लाने की हामी न भारती.
- और फिर नीतिश, चंद्रबाबू नायेद्दु की तारीफ न करती.
- जयललिता की चिरौरी न करती.
- कमसे कम राहुल गाँधी को तो पीछे न ही रखती.
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