याद आगई वो ७ दिसम्बर की सुबह, वो ६ दिसम्बर १९९२ की दुपहर भी। मैं भी उस समय १० कक्षा का छात्र था और सारी घटनाय याद आरही है। मैं किसी भी राजनीती से अनिभिज्ञ था। उस सायं (६ दिसम्बर) एक बूढी और अंधी औरत बदहवास भागती मिली। मैंने पूछा माँ कहाँ जा रही हो तो बोली बेटा सुन नही रहे यह घंटो और घड़ीआलो की आवाज। नही पता तुझे के रामजी आजाद हो गए। मैं बोला क्या हुआ ? तो बोली दुष्टों की लीला समाप्त होगई मन्दिर जा कर प्रसाद चढा रही हूँ। और बदहवास वो किसी नजदीकी मन्दिर के तरफ दौड़ती चली गई।
फ़िर मैंने भी शहर में देखा की जो जहाँ था वो वही से भगवान श्री राम की नारे लगा रहा था। तो कोई शिवालय में घंटे और घडियाल बजा रहा था। लोग मन्दिर में दोपहर के दो बजे ही आरती कर रहे थे प्रसाद चढा रहे थे। जिसे कुछ नही मिला वो चीनी या गुड चढा रहा था। और नही तो बनिया अपनी दुकान से सामान लुटा रहा था। लोग एक दुसरे को बधाई दे रहे थे। कुछ लोगो की आँखों में से अविरल आंसुओ की निर्मल धारा बह रही थी। जो जहाँ खड़ा था वही से जय श्री राम और हर हर महादेव के नारे लगा रहा था। पांडे पुजारी की इंतजार करे बिना मन्दिर के कपाट खुल गए थे। मन्दिर के पुजारी अपनी धोती को समेटते हुए अग्रणी श्रदलुओ के बीच में अपने को छोटा मान रहे थे मानो कहे रहे हो की हम पीछे क्यों रहे गए। बस में, रेल में बैठे हिंदू जये श्री राम के नारे लगा कर एक दुसरे को बधाई दे रहे थे।
एक चीज निश्चित रूप से कहे सकता हूँ की यह उस शहर की बात है जिसको की आज के समय मुस्लिमो का उत्तर भारत में गढ़ कहा जाता है। उस शहर में ६ दिसम्बर सायं तक किसी भी प्रकार का कोई भी संदेहे कोई भी घबराहट किसी प्रकार की कोई घटना नही थी। मुझे इस प्रकार की शहर में खुशी देख कर ए़सा लगा की मानो मैं इतिहास की किताब में चला गया। मुझे लगा की या तो देश की आजादी के समय इस प्रकार कुछ हुआ होगा या फ्रांस में क्रांति होने के बाद कुछ इस प्रकार से ही निश्चित रूप से घटा होगा। एक ही समय में सभी लोग एक ही स्वर में जे घोष कर रहे थे। वैसे मुझे शौक नही इस बात को कहेने का की उस समय न हिंदू को किसी मुस्लिम के प्रति विद्वेष था और न किसी मुस्लिम को हिन्दुओ की खुशी के ऊपर क्षोभ। और हिन्दुओ की भावनाओ का वो जो जवार था उसमे मुझे लगा की मैं भी किसी इतिहास को अपने सामने बनते देख रहा हूँ। और आने वाली पीढी को बता सकता हु की एक बार हिंदू भी बिना किसी भेद भावः , मान अपमान के, समूह में आत्मीयता के भावः में बहेते हुए अपने को मिटटी और ब्रहम से एक साथ जुडा महेसुस कर रहा था
मुझे याद है वो ग्रहणी जो रोटी का बेलन उठाए सर के पल्लू का ध्यान न रखते हुए मोहल्ले में चीनी बाँट रही थी, और वो छोटी सी गुडिया अपने बाप के कंधे पर बैठ कर मन्दिर का घड़ियाल बजा रही थी और उसका बाप मुह में शंख लगा कर असफल शंख बजाने की कोशिश कर रहा था।
लोग कंधे से कंधे रगड़ते हुए मन्दिर की तरफ मुह करके प्रार्थनाए कर रहे थे। मुझे हँसी भी आ रही थी और इतना उत्साह देख आँखों में आंसू भी (आ अभी भी रहे है उस क्षण को लिखते हुए)। हँसी इसलिए आ रही थी की यह वो ही लोग है जो १५ अगस्त और २६ जनवरी को १० बजे सो कर उठते है। और सरकार की जबरदस्ती से सरकारी कर्यकर्मो में नाक भों सिकोड़ कर शामिल होते है। और आज यह लोग स्वप्रेरणा से अपने परिवार के साथ बिना किसी उत्सव, तीज त्यौहार के अपना सर्वस्व लुटाते से प्रतीत हो रहे हैं ए़सा हाल इस शहर का ही नही था हिंदुस्तान के हर शहर का यही हाल था। इस हिंदू उत्साह को न किसी संघ ने जगाया था और न ही किसी लाल कृष्ण अडवाणी ने और न ही यह बीजेपी के वोटर थे और न ही किसी मुस्लमान के दुश्मन। थे तो केवल शुद्ध अन्तकरण से प्रेरणा लेने वाला विशुद्ध हिंदू जिसको की लगा हिन्दुओ के मर्यादा पुर्सोतम श्री राम अपनी प्रजा के लिए एक बार फ़िर रामराज्य लाने आगय। इस हिंदू को लगा की हजारो वर्षो पहेले जिस राम की सीता पर संदेय कर के अपने अरध्ये को उसकी सीता से अलग कर जो अपराध किया था उस अपराध से मुक्त उने का कुछ कुछ भावः था।
परन्तु जल्द ही मेरी कल्पनाओ को नजर लग गई। भारत के निवर्तमान प्रधानमंत्री ने वही पर मस्जिद बनवाने की घोषणा कर एक धरम विशेष के अन्दर एक चिंगारी धद्कादी की शायद तुम्हारे साथ कुछ ग़लत हुआ है। बस फ़िर क्या था उसकी हिन्दुओ में प्रतिक्रिया भी आगई की श्री राम जन्मभूमि पर अबकी बार कुछ भी कारस्तानी बर्दास्त नही होगी।
बस बाकि सब तो इतिहास है।
अब जब कोई रिपोर्ट आई है तो हिंदू की काली करतूत ही होगी की वो क्यो वामपंथियो का इतिहास नकारता है और नकार कर राम को अयोध्या में बताने का पाप करता है। और जब यह पाप किया है तो कोई न कोई सजा तो इन संविधान विरोधी, वाम इतिहास विरोधियो को मिलनी ही चाहिय ।
अब बात करते हैं आज की। जो बात मुझे समझ नही आती की हिंदू यदि अयोध्या, काशी, मथुरा मांग रहा था और है तो क्या ग़लत है। आप मुझे कहेते हो की आपका धरम जिन्दाबाद तो जिंदाबाद है मुझे कोई भी ओब्जेक्शन नही है। मैं तो मक्का मदीना को प्रणाम कर कर ही इस लेख की शुरुवात की है। परन्तु आप मुझ मेरे धरम को मुर्दाबाद क्यों बोलने और करने के लिए कहे रहे हो।क्यों राम का मन्दिर नही बनने देते और जो बना है राम सेतु उसे तोड़ना चाहते हो। यह कदापि स्वीकार नही। आपका धरम जिंदाबाद है परन्तु मेरा धरम भी जिन्दाबाद है। जो लोग बाबरी ढांचे और राम मन्दिर की तुलना करते है वो हिन्दुओ को हीन, कमजोर और बे-गेरत करते है।
आज मैं यदि श्री राम जन्मभूमि की बात करता हूँ तो अपने देश की धरती पर अपने आराध्य जिसका का यहाँ पर अधिपतये था और है और रहेगा। उसकी बात करता हूँ। में किसी ऐसे हिंदू राजा की बात नही करता जो श्री लंका गया या थाईलैंड गया और उसने वहा अपनी पूजा के लिए मन्दिर स्थापित किया। मैं उस मन्दिर की भी बात नही कर रहा हूँ। न ही मैं इतिहास में जाकर किसी अरब राष्ट्र से किसी भी हिंदू मन्दिर की भीख मांग रहा हूँ। मैं तो बबियान में टूटे मंदिरों के अधिकार की बात भी नही कर रहा हूँ। मैं बात करता हूँ हिन्दुओ के परम अराध्य देवी देवताओ की। मैं न बात करता उन वीर हिंदू साहसी और पराक्रमी राजा भोज और विक्र्मदितिये की जिन्होंने बहुत से आज के देशो में बिना किसी विवाद के सुंदर मंदिरों का निर्माण कराया था। उनको तोड़ दिया गया मैं उनके न तो पुनर्स्थापना के लिए लड़ रहा हूँ और न ही मुझे किसी देशो को इस बारे में कुछ कहेना।
मैं मानता हूँ जो हो चुका वो हो चुका वो उनका देश है वहा पर उनका हक़ है परन्तु अब हिन्दुस्थान में क्या बने और क्या न बने यह बांग्लादेश और पाकिस्तान के मुस्लमान निर्णय करेंगे? ६ दिसम्बर १९९२ के बाद कितने मन्दिर बांग्लादेश और पाकिस्तान में नेस्तनाबूद कर दिए गए। उन मंदिरों का क्या कसूर था? और इन ही मुसलमानों की आंख और कान खोलते हुए बता दू की हिंदू यदि विद्वेष और सुनोयोजित रूप से यह ढांचा तोड़ता जैसे की बाबरी ढांचे के बाद सारे मुस्लिम देश में हुआ था तो काशी और मथुरा के साथ साथ वो ३० हजार मस्जिदे खतरे में पड़ जाती जो मन्दिर तोड़ कर बनी है। और हिंदू यदि प्रतिक्रियावादी होता तो कश्मीर में टूटे उन हजारो मन्दिर का हिसाब इसी देश के मुसलमानों से मांगने की कुव्वत रखता है। क्या बाबरी के ढांचे के बाद एक भी मस्जिद खतरे में थी, नही थी। परन्तु उस ६ दिसम्बर के बाद लाखो हिंदू सूली पर चढा दिए गए चाहए वो मुंबई में हो या किसी और देश में, कभी बम ब्लास्ट में तो कभी ट्रेनों में । आज तक उन नेताओ को संविधान का डर दिखा कर मुस्लिम गुंडई पर सवार पार्टी उनके रसूख और प्रतिष्ठा के साथ खिलवाड़ कर रही है जिन्होंने हिंदू को हिंदू कहकर गर्व की अनुभूति कराइ ।
अरे इन नेताओ ने कुछ किया हो या नही इन्होने हिन्दुओ को बता दिया की चाहे शेर भेडो के साथ रह रह कर भेड़ जैसा व्यवहार करने लग जाए परन्तु तुम एक जिन्दा कौम हो जिसको बस एक छत्रपति शिवाजी की आवश्यकता पड़ती ही है। तुम वो कौम हो जिसके पौरुष में अभी जंग नही लगा। तुम सभ्यता की वो मूर्ति हो जिसको लाख उतेजित करने पर भी सडको पर अनान्यास ही नही उतर जाते। तुम अपनी रक्षा करनी बखूबी जानते हो बस अपने पूर्व अवतारों की तरहे पाप का घडा भरने की इंतजार करते हो। परन्तु इन सब बातो के बाद भी दुःख उस हिंदू जवार के खोने का है। वो हिंदू दोबारा से बाँट गया परन्तु इसी प्रकार जैसे सूर्य के सामने कुछ समय के लिए बादल आजाते हैं । परन्तु मुझे आशा है की फ़िर से कोई
छत्रिये कुलवंत सिन्हास्नाधिश गो ब्रह्मण पालक श्री मंत छत्रपति श्री शिवाजी महाराज जी जैसा नेतृत्व आ जाएगा। उस दिन फ़िर से हिंदू कल्कि अवतार बन न्याय करेगा।
और येंही था वो श्री राम जन्मभूमि आन्दोलन बाकि सब राजनीती और भांडगिरी है। और जो नस्ल इसको नही समझ रही वो जानले की आनेवाली पीढियो में वीर्ये नामक बीज भी समाप्त हो जाएगा परन्तु राम का अस्तित्व अक्षुण बना रहेगा.
और येंही था वो श्री राम जन्मभूमि आन्दोलन बाकि सब राजनीती और भांडगिरी है। और जो नस्ल इसको नही समझ रही वो जानले की आनेवाली पीढियो में वीर्ये नामक बीज भी समाप्त हो जाएगा परन्तु राम का अस्तित्व अक्षुण बना रहेगा.
Very Nice MR Tyagi, very Nice, bahut accha likha hai aapne, dil khush gho gaya.
ReplyDeletePlease read my blog : www.taarkeshwargiri.blogspot.com
Extremely correct....thousands of salute to u
ReplyDeletedekhiye sanatan dharm ko aur uski aata ko to puri tarah se khatm karna namumkin hai isi vajah ye sanatan hai..
ReplyDeletebaat hai humare devtao ke izzat aur samman ka...
ab aap bolenge ki jiska na adi hai na ant hai uski koi kya bejjati karega??
lekin ek aam aadmi ki najar me ye bhagwan ki bejjati hoti hai aurin kamose use gussa to aata hi hi lekin kahin ye glani bhi utapann hoti hai ki wo bhagwan kis baat ka jo apni raksha nahi kar sakta....bilkul is jagah ye wo point hai jo sochniye hai ....
lekin bada sawaal hai hamesha se santan dharm ki rakhsa ke liye kisne deh tyag diya hai?? aur usi trah se aage deh tyag kaun karega???
उस दिन लगा था, हिन्दु भेदभाव भुलाकर एकजुट हो जाएंगे. अगर ऐसा हुआ तो कौन भारत को रोक सकेगा. मगर वह सपना जल्द ही बिखर गया.
ReplyDeleteसही कहा आपने. यदि हिन्दू प्रतिक्रियावादी होता तो मुस्लिम जनसँख्या यहाँ अमरबेल की तरह न पनप रही होती
ReplyDeleteबहुसंख्यकों (मैं इस शब्द से सहमत नहीं लेकिन जब अल्पसंख्यक प्रयुक्त हो तो उसके विरुद्ध क्या कहें? )को स्वर देने के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteआप की जिम्मेदारी भी बहुत बढ़ जाती है। ग़लत के खिलाफ उबाल जायज है लेकिन नियंत्रण और तार्किकता के साथ। आशा है कि बिना किसी नकारात्मक भाव के आप इस आन्दोलन को बहुत आगे तक ले जाएँगे।
त्यागी जी आपने कमल का लिखा है | पढने मैं कहीं कहीं फॉण्ट या सब्दों मैं थोडी त्रुटी दिखी, यदि इसे सुधर सके तो आच्छा रहेगा |
ReplyDeleteआँखों मैं आँशु चालक आये, कहाँ है वो हिन्दुओं का सौर्य, एकता, बलिदान? आज तो हन्दू हर संभव संकीर्णता, जाती पे बटा है | और इसी के फायदा उठा कर क्रिश्चियन मिसनरी धड़ल्ले से हिन्दुओं को झांषा दे कर क्रिश्चियन बना रहे हैं | और हम हिन्दू चुप-चाप बैठे सारा नजारा देख रहे है, बस कभी कभी (महीने - दो महीने मैं ) दोस्तों मैं इसकी चर्चा भर कर लेते हैं ये ; क्या इतना भर कर लेने से काम चल जाएगा?
The Vedic and indigenous cultures of India are the oldest in the world. They have been developed by some of the wisest sages the planet has ever seen. This culture has given some of the most profound knowledge and deepest insights and understanding of life that mankind has ever known. It has existed for thousands of years. So who is to tell me that it is not good enough to last for another several thousand years? Who is to tell me that its philosophy is backward or not up with the times? Do not accept another person coming to tell you that your own culture is not good enough, especially a foreigner who mostly wants you to convert to his Western form of religion, or who tells you that what you do is evil. Since when did it become evil? Who is he to tell you this when his own culture or religion does not have the many years of development as your own?
So don't think you have to give up your own culture in order to meet someone else's definition of being "civilized". Some of these Western religions have been a part of some of the worst wars and most brutal carnage in world history. And so many are divided into numerous sects, like the Catholics and the Baptists, both of which fight with each other for converts. This should make you ask, how can unity come from such disunity? How can social harmony come from such disharmony? How is this a sign of advanced civilization?
So do not give up your culture or feel that you must convert to some other religion. Do not be tempted to think that your ways are backward. As Vivekananda has also said, that we only need to combine the Western technology with the Eastern philosophy. This is what helps makes for a progressive society. Develop yourself on all levels, the material and the spiritual. Simply broaden your education. You don't have to give up your culture or spiritual path to do that. Merely learn and keep up with the modern developments in the world, and use the latest technology when it's applicable to further enhance your development in your economy, ecology, agriculture, transportation, communication systems, construction of roads, and in your health systems. But there is no need to become so influenced by it that you should feel that you need to give up your own culture, your own values, or your own spiritual practices in the name of progress.
मेरी सभी हिन्दुओं से विनम्र विनती है की सबसे पहले अपने हिन्दुस्म के बारे मैं धिक् से जाने | प्रमाणिक ग्रन्थ पढ़ कर अपना ज्ञान बढाये और हिंदुत्वा को सर्वोपरि रखें |
So what should we Hindu do??
ReplyDelete1. Practice our own culture and spiritual path. Be proud of what it offers.
2. Learn it deeply. Stay familiar with your traditions, rituals and holy days, and pass it along to the youth.
3. Make sure the traditions and stories are recorded in books so they can be studied, remembered, practiced, and handed down through the generations.
4. Compile the books of prayers, songs, and stories and make them available to everyone.
5. Make the proper and benevolent images to worship where and when it is helpful.
6. Construct centers for prayer, worship and practice.
7. Congregate together regularly, and be supportive toward one another.
8. Celebrate and enjoy your festivals, and know and discuss the meaning of them so they are not lost, and be willing to share the beauty and joy of them with all others.
9. In a friendly way, encourage others to participate as the basis of a united community.
10. Recognize the need to be pro-active in working to keep your culture. Join or form the organizations that help you preserve and protect your culture.
11. Establish the means or campaign that will assist people to realize the value of their own culture.
12. Form political action committees to (A) to make sure politicians are aware of your issues, (B) to make sure that they are representing you properly, and (C) to unite voters to bring in a better political representative for the indigenous culture or vote out those who are ineffective.
13. A group should be established in every village, if possible, to encourage people in this way.
14. Come together in groups regularly to participate in and discuss your culture, and develop the ways of defending it, especially when it is under attack or threatened by conversion groups who are under an alien influence.
15. Also recognize the need for true harmony and unity, and know that a true religion or spiritual path does not create disharmony by dividing people into the "sinners" and the "saved" simply because of following different religions or spiritual traditions systems.
16. There must also be the maturity to balance the old traditions with any new modifications.
17. Unite with other groups or tribes who have similar interests and concerns for cultural preservation, and share information and support with other groups.
18. Start your own schools. Write or compile teacher's guide books on ways to teach children and others the culture. In this way the culture will more likely be preserved and passed down through the generations.
19. Work on ways for economic self-sufficiency to be free from the need of support from organizations or religions that actually disdain your own original culture.
India's civilization is the oldest in the world. It has withstood the test of time when others have crumbled. It has weathered the onslaught of many foreign invaders and has still retained its religious and spiritual values, along with its original customs and traditions, which are unique in nature. It is the Eastern culture which has shown itself to be the most respectful and tolerant, allowing all forms of deities and spiritual paths to remain, and permitting the expression of every form of spirituality. It has given liberty of individual thought as the ultimate freedom, which other tyrannical civilizations have denounced, which has also brought about their own demise. Therefore, you have every reason to value what you already have and continue practicing it.
mai aapke lekh aur sanjay ji se sahmat hu
ReplyDeletetyagi g lekh dil se likha gaya hai.mere blog par bhi aayen.
ReplyDeleteati uttam mitra ..
ReplyDeletebhasha badi sundar hai aur vichar ojaswi.
Aap sabhi ki bhaavnaon ki main kadra karta hoon. Par jab tak Hindu Vote ki ekta ke mahatva ko nahi samajhega sab soch vichaar vyatrh hi pani main bahata chala jayega.
ReplyDeleteराम का अस्तित्व अक्षुण बना रहेगा.
ReplyDeleteसत्य वचन.
dil khush ho gaya
ReplyDeletevaha kya baat hai. maan bhar aya.
ReplyDeleteसही है लेकीन इसे समजणे वाले काम है |
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