अब यह मजाक नहीं तो क्या है की विश्व के १२० करोड़ हिन्दुओ के एक मात्र राजा (सिम्बोलिक ही सही) श्री ज्ञानेंद्र जी को नेपाल के राजपाट से पदच्युत कर नेपाल को भी लोकतंत्र का झुनझुना दे दिया गया। किसी ने नहीं पूछा की इस राजा का कसूर क्या था? बस दुनिया को बता यह दिया गया की वो नेपाली जनता की नहीं सुनता, और किसी ने यह बता दिया की वो भारत के लिए खतरा है, तो दुसरे किसी ने यह बता दिया की वो और उसका बेटा नेपाली जनता का शोषण करता है। हलाकि इन सभी बातो का सबूत कोई भी नहीं परन्तु आधुनिक युग के नए धंधे 'लोकतंत्र' का डीलर नेपाल को भी बना दिया गया। ठीक भी है क्यों वो इस नए नशे "लोकतंत्र" से मेहेरुम हो।
अच्छा हमारे यहाँ तो नशा स्वयं सुप्रीम कोर्ट के न्याय के देवता ही बाँट रहे है। हम भारतवासी "सेम्लेंगिकता" के नशे को आत्मसात करने में पीछे न रह जाये।
उसके लिए हमारी मनीनिये अदालत ने हमे आदेश भी दे दिया की आधुनिकता की इस रेस में पीछे नहीं रहेना और ऊपर से जवाहर लाल नेहेरू का १९४६ का प्रवचन भी उस आदेश में घोल दिया जिस से की कोई जस्टिफिकेशन भी देना न पड़ जाये।
हम हिन्दू कहाँ कुछ बोलते है सर झुका कर हर बात तो मानते ही है, अब अदालत की भी मान लेंगे। हिन्दुओ ने तो पिछले ८०० सालो के इतिहास में कभी आज्ञा की अवहेलना की ही नहीं उसने तो तुर्को, मुगलों, अंग्रेजो की आज्ञा का पालन किया है. यहाँ तो अपने ही लोग अदालती हुकम बजाने को कह रहे है। हमे कभी खुजरह्हो को कामशास्त्र के नज़रबट्टू से देखने को कहेते है, तो कभी हमे ही हिन्दुस्म की वामपंथी किताबो से हिन्दू धर्म को हज़म करने का दुसाहस कराते है। परन्तु जिस प्रकार हम ८०० साल से कुछ नहीं बोले, बस आज्ञा का पालन ही करते जा रहे है ।अभी भी उसी मुद्रा में खड़े तमाशा देख रहे है बिना इसके पता करे की अगली आने वाली पीढी दोयम दर्जे की होगी इस "सेम्लिन्गिकता" से। पर किसको परवाह है ?
परन्तु यह क्या हुआ इस सेम्लिंगिकता के अदालती निर्णय से सत्ता के ठेकेदारों की चूल्हे हिल गई की चर्च और इसलाम दोनों ने इसे अपने खिलाफ साजिश बता दिया। अब सत्ता के दुकानदारो की सांसे हलक से पसीने पसीने होकर निकल रहे है। चलिए देखते है क्या होता है?
परन्तु इतना बताता दूँ की जो लोकतंत्र, आधुनिकता और प्रगतिशीलता का गन्धर्व राग छेड़े है उसका हिन्दुओ के शासन तंत्र की दो महत्वपूर्ण पुस्तक मनुसमृति और चाणक्य रचित अर्थशास्त्र में भी इस कुकृत्य पर दंड का प्रावधान है। हम हिन्दू इस अप्रकर्तिक, घृणित, अनैतिक और घोर आपत्तिजनक कुकृत्ये के सदैव खिलाफ है। आज आपने जो आदेश मर्द - मर्द और औरत - औरत के बीच मान्य किए है अदालत जी। क्या पता की जिन लोगो के लिए आपने यह कृत्य किया है कल इनकी "काम" इन्द्रिया पेडो के साथ भी यौन सम्बन्ध बनाना चाहे और परसों को दीवारों और पत्थरों के साथ तब अदालत कब तक और कहाँ तक इनका साथ देगी क्योंकि इसका तो कोई अंत ही नहीं। तो क्या दुनिया की सारी चिंताए छोड़ कर बस इन मानसिक विकृत पापियो का किस्सा ही डीसकस करते रहे।
मित्रो हम बात कर रहे थे नेपाल राजा और भारत की प्रजा की। मैं इस बहस में नहीं पड़ना चाह रह हूँ की राजा का चरित्र क्या तो और क्या होना चाहिए। क्योंक इस राजा के दुषचरित्र का तो कोई सबूत है भी नहीं परन्तु लोकतंत्र के ध्वजवाहक श्री बिल क्लींटन और श्री जवाहर लाल नेहेरू जो दुनिया के दो बड़े लोकतंत्र (भारत और अमेरिका)चलाने का लाइसेंस लिये थाई। कितने बड़े चरित्रवान थे. और एक राजा ज्ञानेंद्र को हटाना था तो पूरी हिन्दू राज संस्था को हमेशा हमेशा के लिए निर्वासित क्यूँ कर दिया ? फिर मैं कहे दू की मेरी "व्यक्ति" में रूचि नहीं, मेरा आक्रोश विश्व में एकमात्र हिन्दू सत्ता का हमेशा हमेशा के लिए जबर्दस्तरी हटाने पर है और दुर्भाग्य से भारत की कथित लोकतान्त्रिक, सदैव प्रगतिबाधक, हीनता से ग्रसित, लोकलाज रहित, देश की मिटटी से दूर, गूड पोंगापंथी मेरे वामपंथी मित्र उस कुत्सित रणनीति के वाहक थे।
हाँ दोष उनका भी है जिन्होंने नेपाल की हिन्दू जनता को भारत के बीच "बहादुर" नामक उपनाम से रोपित किया। आने वाला समय हिन्दुओ को इस बात के लिए हमेशा रुलाएगा की एक शक्तिशाली कौम को दोयम दर्जे के लोगो ने हिन्दुओ को नख और दंतवहिन करने का पाप किया है. हिन्दुओ के लिए बहुत ही भरी पड़ेगा। इन ही लोगो ने अपनी सेम्लेंगिक टाइप हंसोड़ता के लिया हमारे अपने गुरु गोबिंद सिंह जैसे हिंदुत्व के पुरुधा की संतानों हमारे अपने सिख भईयो और बहेनो को अलग करने का भी दुसहास किया है। 12 बजे की चुटकले इन्ही हिन्दुओ ने सुना सुना कर सुख प्राप्त किया है।इन बहादुर दलितों को भी अलग कर हम हिन्दुओ को एक घनघोर अंधकार में धकेला जा रहा है और हम हैं की अपनी ही निर्लाजता और नंगई पर भोंडी हंसी हंस रहे है। इसी षड्यंत्र के तहेत तुम्हारी ही बहु, बेहेन, बेटी को टैलेंट शो के नाम पर सरे आम टीवी पर भोंडा नाच नचाया जा रहा है और हम इसे प्रगति के नाम पर हाँ में हाँ मिलाकर सामूहिक निर्लाजता से अधीर होकर देख रहे है। याद रखना अपनी बहनों, बेटियो को इस तरह नाचते देखने का दंड षड्यंत्र के दुसरे हिस्से में इनको पोर्न स्टार के रूप में पेश
करके मिलेगा।
नेपाल देश को भी एक षड्यंत्र के तहत इसी प्रकार की अफीम चटाई गई है और उसको भी लोकतंत्रता के नाम पर फुँड़ता का स्वांग भरने के लिया प्ररित किया जा रहा है। मेरे भारत देश के हिन्दुओ को एक कुत्सित साजिश के तहेत नेपाल के हिन्दुओ के समीप ही नहीं जाने दिया गया। मैं नही बात करता बुद्ध और महान हिन्दू ऋषि गुरु पदम्संभव द्वारा तांत्रिक महायान बोध पंथ की जिसमे भूटानी समाज बना है. न ही मैं उस फूनान हिन्दू राज्य जो मेकंगंगा के किनारे कम्बोडिया में था। न ही उस शिव भक्त खमेर राजवंश की जिसने विश्व की सबसे बड़ी धरोहर अंगकर वोट मंदिर की कम्बोडिया में स्थापना की। और न ही थाईलैंड के महान राजा तक्षीन के आयोध्या राज्ये की। बात तो अपने सबसे समीप नेपाल के गरीब और धरम रक्षक हिन्दुओ की है। जिनको की हम जान ही नहीं पाए. सही कहूँ तो जानने ही नहीं दिया गया। हमें तो बस कहा गया और उनकी बेचारो की हंसी बहादुर चोकीदार कहकर उडाई गई बिना यह जाने की इस से भारतीये हिन्दुओ को कितना नुकसान हो सकता है।
अरे हिन्दुओ यह ही वो नेपाल है जिसमे तुम्हारे ऋषि तपस्या करते थे। जहाँ भगवन शंकर अपने अघौड़ रूप में विराजते है। यह शिव की वो भूमि हैं जहाँ पर साक्षात् भगवान् पशुपति नाथ बसते है। और तो और शंकराचार्य जी ने दक्षिण भारत के ही किसी एक पुरुहोइत को यहाँ का पुजारी नियुक्त रहेने की व्यवस्था रखी थी। और आज न वो पुरोहित है और न आम भारतीये हिन्दुओ के अन्दर बुदि, जो नेपाल में विराजे साक्षात् शिव के दर्शन करने को आतुर हो। पशुपति नाथ वो विरला स्थान हैं जहाँ पर आदि शिव के दर्शन होते है। वो दिव्ये स्थान जहाँ पर चिता पर मृत मानव शारीर जल कर काठमांडू की वायु में शिव का दर्शन कराता हैं तो दूसरी और वो शम्भू को आवाज लगाता (माओवादियो को मुह चिडाता) आधुनिक वैदिक हिन्दू। वो पशुपतिनाथ की बागमती जो किसी षड़यंत्र के तहेत आखरी सांसे गिन रही है। अपनी गंगा की तो सुध किसी ने ले ही ली चाहए पर्यावरण के नाम पर ही सही। परन्तु उस बागमती नदी , जिसको की उतने पानी का हजारवा हिस्सा भी नहीं जितना की आपके दिल्ली के सोनिया विहार प्लांट में है। परन्तु कुछ नहीं वहां पर तो वो १०-१२ साल के ओजस्वी हिन्दू बालक वैदिक शास्त्रों की पढाई पढ़ते और बोलते तो लगता की मुहं से फूल बरस रहे हो। वो अघौड़ संत जिनको की आपके पैसे की परवाह नहीं. जिस धन से वो भी आसमान में अट्टहास करती ईमारत अपने आश्रम के लिए बनाये। बस लालच हैं तो इस बात का की वो शम्भू के मंदिर के कपाट कब खुलेंगे और कब अपने पशुपतिनाथ के दर्शन होंगे। तंत्र और मन्त्र के एक से एक धुरंधर बिखरे पड़े है परन्तु न किसी की इच्छा और न किसी का स्वांग बस एक ही आवाज जय शम्भू और शम्भू और शम्भू। यह हिन्दू, उस चेतना से की शिव अब मिला और कब मिला, न परवाह इस बात की की माओवादियो ने शंकराचार्य द्वारा स्थापित पुजारी परम्परा का पुजारी अपना बोरिया बिस्तर वापस हिन्दुस्थान के लिया बांध चूका, न परवाह इस बात की की भगवन विष्णु का अवतार नेपाल नरेश अपने वंशजो की साथ सिंगापूर पठा दिया गया है।
वो शिवरात्रि का दिन जिस दिन आपको इतनी लम्बी लाइन में लगना होगा की एक छोर तो पता होगा की पशुपतिनाथ पर है परन्तु दूसरा ढूंडने के लिए काठमांडू ही पार करना पड़ जायगा। इसीको भक्ति भावः कहेते है। इसी को तो हिन्दू, परमात्मा से साक्षात्कार कहेता है। और इन्ही हिन्दू राज संस्था के हत्यारों ने विष्णु का अवतार राजा और शिव की नगरी काठमांडू की हिन्दू परम्परा के अविरल अदभुत संगम को सृष्ठी से अलग करने का महापाप किया है।
मैं पूछता हूँ की यह हिन्दू नेपाली राजा क्या उन अय्याश इस्लामिक शेख और खालिफाओ से भी क्रूर था जिनके के हरम में दस दस बारह - बारह साल की असंख्य लड़किया होती है। या उनसे भी क्रूर था जो अपनी सत्ता बचाने के लिए लाखो सर कटवा दिया करते है। या उस लोकतंत्र से भी योग्य नहीं जिसमे धर्मपत्नी और जवान बच्ची की होते भी व्हाइट हाउस से अपदस्थ नहीं किया गया। या क्रूरता उस रॉबर्ट मुगाबे से भी ज्यादा थी जहाँ एक अमेरिकन डॉलर १०० करोड़ जिम्बावे डॉलर के बराबर होगया हो और सैकडो रोज मर रहे हो पर जब भी सत्ता से चिपका है । क्या उसका चरित्र इंग्लेंड के युवराज चार्ल्स से भी गया गुजरा था। या मिया मुशरफ से भी ज्यादा बड़ा दुश्मन था जिसने की भारत को हजार घाव देते रहेने और एक और कारगिल युद करने का संकल्प लिया था। जिसके लिए आज भी भारत का मीडिया कानक्लेव में बुलाने के लिए पलक पावडे बिछाती हो। कम से कम इतना तो नहीं था और यदि तुमको नेपाली राजा में कोई कमी लगी भी थी तो पूरी की पूरी हिन्दू राजसत्ता को ही क्यों समाप्त करने दिया गया? क्या कोई भी हिन्दू राजा नहीं बन साकता था? क्या एक छोटी सी हिन्दू ख़ुशी भी बर्दास्त नहीं ?
क्या मुझे कोई जवाब देगा की किस नेपाली और किस हिन्दू ने नेपाली राज संस्था हटाई है? अरे आज नेपाल में न धर्मगुरु है न राजा है। और नेपाली गरीब जनता जिसके अन्दर हिन्दू धरम की जड़े इस प्रकार से है जैसे की दूध में मक्खन हो। और भारत का लोकतंत्र उसको राष्ट्रपिता कहेता है जिसने की तुर्की के खलीफा के लिए असहयोग आन्दोलन चलाया था। जिसमे की निरही हिन्दू जनता को बिना किसी उसके हित के इसलाम की जड़ो को ही मजबूत किया गया था। अब आज के हिन्दू को आप पूछ कर देख लो नेपाल के राजा को हिकारत भरी दृष्टि से देखेगा और बिना तथ्य के जाने उसे पोलपोट (कम्बोडिया में नरसंहार का दोषी) श्रेणी में डाल देगा।
यह सब मीडिया का करा धरा है एक विदेशी सद्यन्त्र के तहत.
दोस्तों समय आगया हिन्दुओ को अपने अच्छे और बुरे सोचने का, नहीं तो वो समय दूर नहीं जब हिन्दू अपने आपको अजायबघर के किसी कोने में खडा पायेगा। अपने पर गर्व करना सीखो और अपनी जड़ो की तरफ लौटो, उनको पहचानो और पाओगे की सारी समस्या का हल इसी मानवता की धरोहर हिन्दू जाति में है। मेरा एसा विश्वास है की बिना हिन्दू के समझे कोई भी इसकी सहयेता नहीं कर सकता। हिन्दू को समझना होगा, यह कोई प्राग - इतिहास की बात नहीं परन्तु तुम हिन्दू समझने को तैयार नहीं, तुम्हें इन लोगों ने एसा इतिहास पढाया और समझाया की तुम जो विश्व के बहुत बड़े भूभाग के स्वामी थे उसे आज के बचे खुचे भारत में ही समेट दिया और उसमे भी तुमेह अलाप्संख्यक बनाया जा रहा है।
तुम भूल जाओ खेमेर वंश को, भूल जाओ तक्शिन को, भूल जाओ अपनी मेकंगंगा को, भूल जाओ जावा और सुमात्रा को, याद मत करो उस परम्परा और गौरव को जो तुम्हारी शिराओ में बिजली का संचार करती हो, भूल जाओ उस गाथा को जिसने जापान और कोरिया तक में अधिपत्य किया था, भूल जाओ इंडोंएशिया की उस अवधारणा की जिसने उसको अपनी वायुसेना का "गरुड़" नाम रखने को प्रेरित किया, भूल जाओ थाईलैंड की स्वर्णभूमि को जो तुम्हे तुम्हारी हिन्दू परम्पराओ की दुहाई देती है, भूल जाओ अपने भूटानी भईयो को जिसको के तुम्हारे गुरु पदम्संभव ने हिन्दू तंत्र का उच्कोटी का श्रेष्टतम ज्ञान देकर एक भव्य महायान बोध हिन्दू पंथ दिया हो, भूल जाओ अपनी अधिष्टात्री ढाकेश्वरी देवी को, भूल जाओ अपने पूर्वजो के चीन के साथ घनिष्ठ संबंधो को। और याद रखो चार या पांच दशक के इतिहास को और मरे हुए साँप की भांति उसे ही गले से लटका कर संसार भर में बनो हंसी का पात्र। कौन रोकता है नेपाल की हिन्दू विरासत को नेस्तनाबूद करने से और अपने बच्चो को सेम्लेंगिक बनाने से। कोई नहीं रोकता झूटी और मक्कारी हंसी हंसने से।
कोई नहीं याद रखना चाहेगा की तुम ही मानवता के ध्वजवाहक हो। परन्तु परम्परा का बोझ कौन ढोना चाहेगा? उसके लिए तो वीर्यवान, तेजस्वी, सौम्य, प्रचंड, अदम्य और अभिलाषी हिन्दू युवक चाहिय और हमे धकेला जा रहा है एक "नव हिजडा संस्कृति" की ओर। और उसपर भी ठप्पा "प्रगतिशीलता" का लगा दिया गया।
देखो स्वयं एक गलता और सड़ता देश, देखो एक नपुंसक पीढ़ी का प्रादुर्भाव. क्या यह ही नियति है? जिम्मेदार आप स्वयं है क्यूंकि धर्म आपका देश आपका तो गति भी आपकी ही है।
इस ओजस्वी लेख के लिए बधाई.......आज हर सच्चे हिन्दू के ह्रदय के यही उद्दगार हैं..........
ReplyDeleteकृपया वर्तनीगत अशुद्धियों को सुधार दें
क्या किया जाए।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
uttam aalekh !
ReplyDeletehaardik badhaai !
आप बहुत अच्छा लिखते हो, नब्ज तो सही पकड़ते है पर इलाज भी होना चाहिये।
ReplyDeleteबहुत सही कहा है अपने त्यागी जी | थोडा इसपे भी गौर फरमाएं |
ReplyDeletehttp://raksingh.blogspot.com/
भा.ज.पा. की हार से एक सच्चा हिन्दू हतास और किकर्तव्यमुड की अवस्था मैं है | हम हिन्दुओं को सच पूछे तो समझ मैं ही नहीं आ रहा है की क्या करें अब ? भा.ज.पा. अपनी पुराणी गलतियों से सबक लेना नहीं चाहती, पार्टी के बड़े-बड़े नेता बस अपनी ही रोटी सकने मैं लगे हैं | सच्चा हिन्दू दिग्भ्रमित है, क्योंकी उनकी अपनी पार्टी भा.ज.पा. कांग्रेस के रस्ते पे चल चुकी है | कई ऐसे मित्रों से मिलता हूँ जिसकी आँखें भर आती है आज हिन्दुओं की दुर्दशा पे | आज हिन्दू किसे अपना कहे, भा.ज.पा. तो अपने को एक बूढा हारा हुआ सेर मान बैठी है जो आगे संगठित हो कर लड़ने की इच्छा शक्ती भी खोती जा रही है |
जो हुआ सो हुआ, आखिर कर कब तक हम हिन्दू ऐसे ही शोक मानते रहेंगे? उठो भाइयों अपनी जाती , धन के लिए किसी भी हद तक निचे गिरना वाली संकीर्णता को छोडो और उठ कर दिखाओ की हिन्दू मरा नहीं है और ना मरेगा | पूरा EUROPE एक दसक मैं ही क्रिश्चियन बन गया किन्तु भारत १००० साल गुलाम रहे के बाद भी हिन्दू बाहुल है, ये क्या साबित नहीं करते की हिन्दू हार नहीं मानाने वाला | खड़े हो, बड़े लेवल की छोडो अपने आस पास ही कई ऐसे मौके आयेंगे जहाँ हम ये साबित कर सकते हैं की देखो भगवान् मैंने बिना अपने स्वार्थ के ये सब अपने देश, धर्मं के लिए किया | कोई देखे या न देखे भगवान् देख रहा है बस यही सोच कर हम हिन्दुओं को अपने देश धर्मं के लिए काम करना पड़ेगा |
एक पढ़ा लिखा हिन्दू आम तौर पे यही बोलता है की आर.एस.एस. वाले कुछ करते नहीं | अरे भाई जब हम खुद ही अपने को आर.एस.एस. से नहीं जोडेंगे तो आर.एस.एस. का काम कोई मशीन आकर कर देगा ? आर.एस.एस. या हिन्दू संस्था से जुड़ने मैं सरम कैसी, कोई चोरी डाका तो नहीं कर रहे हैं | गुलामी वाली मानसिकता को त्यागो और अपने वैदिक संस्कृति को जानो, सम्मान करो | सिर्फ मुह से हिन्दू-हिन्दू और कर्म से कुछ और ये नहीं चलेगा | माइकल जेक्सन, मेडोना आदि अच्छे लगते हैं तो ठीक है पर कभी कभी अपने भीमसेन, जसराज जी ... को भी सुन लिया करो | हैरी पॉटर के साथ साथ कभी सच्चे मन से एक-दो पुराण की कहानी भी पढ़ लिया करो | बच्चे को इंग्लिश के सारी रायाम्स याद करा दिए अब अपनी पंचतंत्र की एक-दो कहानी भी याद करा दो | जींस तो रोज पहनते हो, मंदिरों मैं ही सही कभी कभी धोती तो पहन लिया करो | क्या एक मुस्लिम दुसरे मुस्लिम भाई को देख कर सलाम आलेकुम कहने मैं कोई सरम महूस करता है ? नहीं , तो फिर हम हिन्दू क्यों नमस्कार, प्रणाम, या राम-राम कहने से जी चुराते हैं ? अपने को PURE WESTERN बना के रखना और बाकियों से ये आशा करना की वो सभ्यता - संस्कृति का रक्षा-पालन करे, क्यों ऐसे ही चलेगा हम पढ़े लिखे लोगों का धर्मं, सभ्यता-सांस्कृतिक प्रेम ? युद्ध तो हमें ही लड़नी है, भगवान् तो हमें सिर्फ रास्ता दिखायेंगे |
कांग्रेस ने सही मायनों में धर्म-निरपेक्ष होने की जगह प्रो-इस्लामिक रवैया अख्तियार कर लिया. हिन्दू तो हिंसा के नाम पर ही तोबा करता है. अहिंसक हिन्दू को इन नामुरादों ने रौंद कर रख दिया जिसमें पूरा दोष ही हिन्दुओं का स्वयं का है. मैं यह नहीं कहता कि अन्य धर्मानुयायियों को रहने मत दो, लेकिन अपनी हत्तक तो मत कराओ या अपने लिये तो बलिवेदी पर मत चढ़ने दो.
ReplyDeleteHindu Samaj ko sangathit karne ka ek prayas to aisa ho sakta hai ki nischit samay aur din pratyek saptah yuva bandhu ekatrit ho apne aas-paas ke kisi mandir prangan mein.. Sangh ki shakha dharmik manch nahin hai aur isiliye maine mandir-prngan ki baat rakhi hai..
ReplyDeletebahut se bhaiyon ko khabar bhi nahin milti ki kya ho raha hai hum Hinduon ke sath kyunki unki duniya apne parivar tak hi simit hoti hai.samlaingikta ka mudda kitna gambhir hai ye sochne ke liye bhi log taiyar nahin..
Humari sanskriti kitni samridhh hai iss par vicharna jyadatar ne priority list mein nahin rakha.
mujhe yaad hai 1990 ki Deepawali mein har ghar mein pahla diya 1 hi shrot se jala tha jo 1 rath mein laaya gaya tha...
wo 1 achha kadam tha hinduon ko ikattha karne ka..
hum aisa kuchh aur bahut kuchh kar saktein hain...
I think its not our right to decide the future of Nepal. Our intervention will be just like PAK's muslims are doing in Kashmir. Lets people of Nepal decide their fate thr'u democracy. don't u believe on it?
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