Wednesday, July 6, 2011

भारत क्या वास्तव में धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है ????????????????????/


भारतवर्ष आज जिस प्रकार की अवस्था से गुजर रहा है उसको समझना बहुत ही जरुरी है. मुझे कहने में कोई गुरेज नहीं की इस देश के साथ जिस ने चाह जिस रूप में चाह उसका शोषण किया है. इस भारत की आत्मा को न केवल दुखाया बल्कि उसको दमित और बंधक भी बनाया. देश के नागरिको के साथ सरकार का रवैया वाकई हैरान परेशान करने वाला है. कांग्रेस की सप्रंग सरकार का बहुसंख्यक हिन्दू के साथ सलूक वाकई न केवल निन्दनिये है बल्कि घोर आक्रोशित करने वाला भी है.

सरकार जिस सेकुलरता का दावा करती है क्या वाकई में वो सच है या सेकुलर होने का सारा जिम्मा हिन्दू समाज का है. पिछले कुछ अरसे में ऐसे वाकया हुए है जिसने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया की देश के यह तथाकथित सत्ता के संचालक चाहते क्या है.

सबसे पहेले आते हाल फिलाल की घटना पर मुसलमानों के अराध्य की तस्वीर ( रेखाचित्र ) छापने पर हुए बवाल पर. यहाँ देखे. अब हमें एक बात नहीं समझ आती की सरकार वो चीजे पढाना क्यूँ चाहती है जिसको छात्रों को समझा न सके. कक्षा ४ के बच्चो को सरकार समझाना और पढ़ना क्या चाहती है यह पहले निश्चित करले फिर निर्णय करे. एक कक्षा चार का बच्चा जिसके बारे में पढ़ रहा है उसके बारे में उसके मन में जिज्ञासा तो अवश्य होगी ही. तो बिना फोटो के वो समझेगा क्या. सरकार ने तुरंत फुरत में तस्वीर लगी किताबे वापस लेली है और माफ़ी भी मांग ली. तो अब आप हमें बताय की क्या सरकार को वो पूरा का पूरा चेप्टर ही नहीं निकाल देना चाहिए. क्यों तो सरकार बच्चो के कोमल मन को जबरदस्ती धर्मनिरपेक्षता की घुटी पिलानी चाहती है. यह सब विषय बच्चो के मन में सिवाय विद्वेष के कुछ और नहीं भरते. जैसे की पब्लिशर का कहेना है की वो बिना तस्वीर के पुस्तक छापेगा तो क्या बच्चे यह नहीं पूछेंगे की यह मुसलमानों का अरध्ये है कौन. या सरकार स्कुलो को यह निर्देश भी देगी की माँ बाप और स्कुल अध्यापक भी कोई रेखाचित्र नहीं बना सकते बच्चों को समझाने के लिए. पहेल तो सरकार यह सब ढकोसला कर क्यूँ रही है दूसरा सरकार के तवरित कार्यवाही हैरान करती है.

दूसरा घोर आश्चर्य का विषये है की अहमदियो (मुसलमानों) को हज पर न आने दे एसा दारुल उलेमा देवबंद ने साउदी अरब सरकार से मांग की है. खबर देखे   प्रथम मेरा मानना यह है की किसी दुसरे धर्मो के अधिकार छेत्र में अतिकार्मन नहीं करना चाहिए. परन्तु यह भारत सरकार की साख का सवाल है की क्या किसी धर्मनिरपेक्ष राज्य में कोई भी संघटन या आदमी ऐसी मांग कर सकता है जिस से दुसरो के धार्मिक अधिकारों का हनन होता हो. लाखो अहमदिय मुसलमान भारत में रहते है तो क्या दारुल उलेमा देवबंद ऐसी मांग कर सकता है. घोर आपत्तिजनक रैवैया केंद्र की कांग्रेस सरकार का है जिसके राज में बहुसंख्यक मुसलमान अपनी मनमानी कर रहे है और सत्ता भी उनके होंसले बढ़ा रही है. क्या धर्मनिरपेक्षता का चरित यह ही होता है. सोनिया गाँधी और भोंदू राहुल गाँधी की राष्ट्रीय सलहाकार समिति क्या इसको अलाप्संख्यको का शोषण और उनके धार्मिक मामलो में हस्तक्षेप नहीं मानेगी. देखना यह है की कांग्रेस शासित केंद्र सरकार किस प्रकार शक्तिशाली मुस्लिम शोषको का प्रतिकार करती है जिस से के कोई भी अहमदिया मुसलमान किसी भी प्रकार की प्रतिकिर्या सरूप हिंसक कार्यवाही न करे जैसे की पाकिस्तान में मुस्लमान ही मुस्लमान के खिलाफ कर रहा है. देखते है की भारत के बौधिक घमंडी ग्रहमंत्री इस पर क्या प्रतिक्रिया देते है.

तीसरा मुद्दा है सरकार का हिन्दुओ के भगवान् विष्णु के खजाने पर अपनी टेडी नजर करना. कांग्रेस की सरकार की नियत अब हिन्दुओ के मंदिर के पैसो पर है. खैर हिन्दू मंदिरों के चढ़े पैसे को तो पहले से ही सरकार मुस्लिमो को हज करा रही है इसाइओ को बेह्थालम यात्रा करा रही है और बेशर्मी से यह हिन्दुओ के ही पैसे पर अपने धार्मिक अनुष्ठान कर रहे है. सरकार एक तरफ तो हिन्दुओ की अमरनाथ यात्रा का रजिस्टरएशन फीस लेती है, मानसरोवर की फीस और वीसा के पैसे अलग है. हिन्दुओ का इस देश में इतना शोषण है की वो कसाई भी शर्मा जाये जो बेहरहमी से निर्दोष पशुओ का क़त्ल करता है. आज जब हिन्दुओ के परम्परागत धन का खोज करवाने का उपकर्म इसी सरकार के लोगो द्वारा हो ही रहा है तो यह भी बता दिया जाये की इससे भी कई गुना पैसा काशी विश्वनाथ में था, कृष्ण जन्मभूमि और सोमनाथ में था जिसको की मुसलमानों ने लुट कर अपनी मस्जिदे और महल खड़े किये. आज सोनिया गाँधी का स्विस में पैसा और उन लाखो कांग्रेसी लोगो का काला धन वापस न आ जाये तो बड़ी ही चतुराई से भगवन पद्मनाभस्वामी के धन का मामला मीडिया में चालू करवा दिया. खैर कांग्रेसी टाइमिंग की दाद तो देनी ही पड़ेगी. अब मीडिया वाले इस धन का जिक्र ऐसे कर रहे है जैसे कोई काला धन निकल रहा हो. हिन्दू संतो, हिन्दू समाज को परिताडित करने के बाद उनके पैसे को इस प्रकार से तुलना की जा रही है की जैसे यह पैसा वाकई में देश की सरकार का हो. और सरकार अपनी जीभ ऐसे लपलपा रही है की अब बस वो पैसा उसके ही पास न आ रहा हो. सरकार का यह ही रैवैया पुट्टपर्थी के साईं बाबा के धन के बारे में है. सरकार हिन्दुओ के धार्मिक अनुष्ठान के पैसे को इस प्रकार से प्रचारित क्यूँ कर रही है. सरकार की इन मंदिरों के धन पर अचानक से नियत क्यों ख़राब हो रही है. क्या ऐसा तो नहीं सरकार जब काले धन को देश के अन्दर लेन की मांग करने वाले हिन्दू संतो और समाज को ब्लेकमेल करना चाहती हो. की आप यदि इस प्रकार की काल धन की जाँच की बात करोगे तो हम हिन्दुओ के जमा मंदिर पर भी जाँच करवायेगे. हिन्दुओ को इस बात पर कांग्रेसी सरकार की मंशा को बड़े ध्यान से समझना होगा.

प्रशन यह है की जब सरकार हिन्दू धर्म को सरकार (राज्य) का धर्म नहीं मानती तो हिन्दुओ का पैसा सरकार का कैसे हो सकता है???????    

3 comments:

  1. इन्होने सदैव से ही हिन्दुओं का शोषण किया है.अगर हम नहीं जगे तो यह जरी रहेगा.आँख खोलने वाले लेख के लिए धन्यवाद

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  2. सोचने वाली बात है...

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