Thursday, April 2, 2009

हिन्दू क्यों सर्वश्रेष्ठ?

वाकई क्या हिन्दू सर्वश्रेष्ठ है? मेरा जवाब हां हैं। परन्तु इस चर्चा को छेड़ कर मैं हिटलर नहीं बनना चाहता। इस चर्चा का मतलब यह भी नहीं की मैं नसलवाद को बढावा देना चाहता हूँ. मैं तो केवल अधयात्मवाद का भौतिक संसार मैं विश्लेषण करने की चेष्टा कर रहा हूँ. वैसे तो मेरी बात को सिद्ध करने के लिय विषय बहुत ही बड़ा हैं जो इसमें मैंने अधयात्मवाद का विश्लेषण अधिक किया तो फिर समेटना सम्भव न होगा । अथ: मित्रो मेरा अधिक जोर हिन्दू की भौतिक संसार मैं श्रेष्ठता की चर्चा करकर आपका ध्यान आकर्षित करना है. और आज यह विषय क्यों मौजूं हुआ उसका कारण भारतवर्ष मैं हिन्दू हितों की बात करने वालो को दण्डित किय जाने ने मुझे व्यथित किया.
  • हिन्दुओ की शाररिक, सामाजिक और धार्मिक स्वछता: - इस विषय का अर्थ कदापि नहीं की मैं हिन्दुओ को बाटने का काम कर रहा हु। मैं तो एतिहासिक पहेलुओ पर गोर कर रहा हूँ। हिन्दू की इसी स्वछता के कारण दलित शब्द का इस्तेमाल हुआ. इसी कारण से मुस्लिम जिनके पूर्वज हिन्दू थे वापस हिन्दू धर्म मैं नहीं आ पा रहे हैं. इसी स्वछता की हम सही रूप मैं परिभाषित नहीं कर पाए या कहे की बदलते वक्त के साथ इस को ढंग से लागु नहीं कर पाए. इसी का कारण था यवनों या अंग्रेजो ने भारतवर्ष पर शासन किया. और चार वर्गों मैं से सबसे निचला परतु महेत्व्पूर्ण अंग को 'दलित' के रूप मैं प्रभाषित किया. येह तो इसी प्रकार से था की शारीर मैं पैर तो हैं निचे परन्तु हैं तो अति म्हेत्व्पूर्ण भाग. हा आज तो इस पर राजनीती हैं सो मुश्किल हैं इस को अभी ठीक करना. मुस्लिम जिसे पूर्व मैं मलेछ शब्द भी कहा गया हैं को धार्मिक स्वछता की वेजहे से अलग रखा गया हैं. जो की सही भी था और ,हैं क्योंकि उनलोगों की धर्म (पंथ) संस्थ्पना हिन्दुओ के विपरीत ही जानबूझ कर की गई थी। और इसी स्वछता के कारण हिन्दू ने कभी भी अपने धर्मं का विस्तार नहीं किया.
  • हिन्दुओ मैं कबीलाई संस्कृति का न होना :- येह भी एक विचार हिन्दू संस्कृति मैं हैं की हम कबीले बना कर कभी नहीं रहे हा सयुक्त परिवार एक अलग धारणा थी परन्तु कबीले की तेरह हिन्दू कभी नहीं रहा. उसी कर परिणाम है के आजकल एक सामान सहिता लागु करने मैं दिकत हैं। क्योंकि अपने यहअ तो कोस कोस पर पानी और वाणी बदलना था। कोई अरब और वैटिकन का पैसा तो है नही जो एक जैसे भेडो की तेरहे तनखा पर काम करते दिखे। और परिणाम सवरूप मुस्लिम और कोमुनिस्ट इस बात को हिन्दुओ के विरुद्ध इस्तेमाल करते हैं। परन्तु हिन्दू निर्भीक, स्वतंत्र और परम्परा का पालन करते हुए रहा हैं.
  • हिन्दू सहनशील है :- कई लोग हिन्दुओ के सहनशीलता पर भी प्रशन चिन्ह लगते हैं. मैं भी हिन्दुओ की सहनशीलता गलत मानता हु. परन्तु बात सहनशीलता के सही रूप मैं परिभाषित करने की हैं. यदि अहिंसा की परिभाषा गाँधी से लोगे तो गलत ही होगा. क्या शिवाजी, गुरु गोबिंद सिंह सहनशील नहीं थे. हा थे. अरे हम हिन्दुओ का तो पेड़ से फल तोड़ना भी वर्जित था सिर्फ धरती पर पड़े पके फल ही हम खाते थे. तो एअसे भारत मैं कोई हमे सहनशीलता का पाठ पढाए वेह तो गलत ही हैं. परन्तु गाँधी की अहिंसा गलत थी उसका पालन गलत है वो अहिंसा नहीं नपुंसकता हैं और यह बड़ा अंतर हैं और इसका अर्थ यह भी नहीं के मैं गाँधी का अपमान कर रहा हूँ. मैं सिर्फ गाँधी की अहिंसा को गलत रूप मैं परिभाषित करने के खिलाफ हूँ और इसके भी की गाँधी ही अंहिंसा का पुजारी था और उसी ने इस सिदान्त को बनाया था. क्या चाणक्य सहनशील नहीं थे मैं कहूँगा के सब से बड़े वोही थे. उन होने सहनशीलता से चन्द्रगुप्त का निर्माण कर हिन्दुओ को एक रहने योग्य देश दिया और कई सौ वर्षो तक भारत सुरक्षित, निर्भय और शांत रहा. और दूसरी तरफ गाँधी की अहिंसा है उसके मानने पर दो देशो का हिन्दुओ को बलिदान देना पड़ा, लाखो लोगो को जान देनी पड़ी, लाखो बहनों को इज्जत गवानी पड़ी और उस अहिंसा के देवता गाँधी की पिछले साठ साल मैं सारे देश मैं हिंसा ही हिंसा हैं. तो क्या उसे ठीक माना जाये या चाणक्य ठीक थे. अथ: बहुत सारी बाते हिन्दुओ के संदर्भ मैं गलत और एक दम ठुसी हुई हैंगाँधी की झूठी अहिंसा मैं हम ने भू भाग तो खोया ही परन्तु करोडो लोगो का खून भी बहाया गया और अभी भी बहाया जा रहा है.
  • हिन्दू धरम प्राक्रतिक है :- हिन्दू धरम मैं एक भी चीज़ अप्रकर्तिक नहीं है. क्योंकि मानव सभ्यता मैं हिन्दू ही एक धरम और बाकि सब एक पंथ हैं. और यह पंथ हिन्दू धरम से चिड कर या उसके बारे मैं अज्ञानता से बने हैं।
  • स्त्री जाती सबसे ऊपर:- हिन्दू धर्म के ऊपर अज्ञानवश आरोप लगता हैं के हिन्दुओ मैं स्त्री जाती का स्थान उचित नहीं हैं। जो की घोर रूप से गलत आरोप हैं। सर्व्पर्थम तो एसा कदापि नहीं हैं. और यदि आज के सन्दर्भ मैं हैं भी तो येह १००० वर्ष गुलामी और पंथ के समक्ष अपने को मानने के कारण ही हैं. जैसे आप देख ले कही पर पर्दा प्रथा हैं तो अज्ञान और यवनों के कारण ही हैं. जैसे कभी किसी ने देखा हैं रामायण मैं सीता जी और महाभारत मैं किसी स्त्री को पर्दा किया हुए या किसी भगवान् की फोटो मैं पारवती जी को पर्दा करते औए. असल मैं यह न तो हमारी संस्कृति है बस है तो संक्रमण कल की एक कुरीति. दूसरा स्त्री जाती आज कलयुग से ज्यादा स्वतंत्र थी पूर्व मैं, इस कलयुग मैं उसकी स्वतंत्रता कम हैं और यह भी यवनों के कारण। स्त्री कभी भी सजाने की वास्तु नहीं थी वह तो पुरुष की तेरह बराबरी पर थी परन्तु अर्धांग्नी होने पर पति उसके लिय भगवन सामान था। इसी बिंदु को समझने की आवश्यकता हैं।
  • एक विलक्षण धर्म :- लाखो वर्षो से हिन्दुओ धर्म हैं यह सब मानते हैं यहाँ तक की जिसने वेदों को गडेरियो के गीत माने उसने भी यही स्वीकारा। परन्तु इसने कभी भी एक देश या एक भू भाग बता दे जहा इसने अपना विस्तार किया हो। हैं न एक विलक्षण और अदभूत सत्य। और यह भी सत्य यदि किसी भी धर्मं का विस्तार हुआ हिंदुस्तान से तो वो बोध धरम ही था। परन्तु आज तक हिंदुस्तान ने इसका भी विरोध नहीं किया। क्या आप अरब या वेटिकन मैं येह सोच सकते भी हो।
  • आज भी आधुनिकता और सहनशीलता का सागर:- आधुनिक युग मैं जहा भारत हिन्दुओ का है वहा पर २५% वो लोग सीना चौडा करकर रहेते हैं जिनके बाप दादो ने हिन्दुओ की नस्ली सफाया किया। यूरोप, अमरीका या अरब मैं एसा संभव है क्या। तीनो बड़े देव मथुरा, अयोध्या, काशी मैं बंदी हैं फिर भी कानून और जनादेश की बात हिन्दू करते हैं। अपने ही देश मैं अलाप्संक्यक हो कर हिन्दू रहते हैं। (ऊपर दोनों ही बातो का पूरजोर विरोध मैं तो करता हूँ सतही रूप से ये सहनशीलता के मिसाल लगे परन्तु यह नपुंसकता हैं.) क्योंकि हिन्दुओ को अहिंसा का अर्थ ही स्पष्ट नहीं है. सागर मैं भी लहेरे उठती हैं परन्तु यहाँ एसा नहीं है. शिक्षित हिन्दू :- आप यदि आकडो को देखे पिछले १००० वर्षो से गुलाम रहेने का बाद भी यदि शिक्षा मैं किसी से पीछे हैं तो सिर्फ इसाइओ से। ऊपर लिखित सारी बाते हिन्दुओ की श्रेष्ठ के साथ साथ उसके कायरपन और बुजदिली को भी दर्शाता हैं. मेरे ऊपर लिखी बाते लिखने का अर्थ हैं की हिन्दू सर्व्श्रेसाठ तो है परन्तु आज के परिपक्ष मैं सभी बातो को सही परिपेक्ष मैं परिभाषित करना है. और तभी हिन्दू विश्वगुरु बन पायेगा. ये कलियुग के लिय आवश्यक हैं. क्य्नोंकी जिस प्रकार पुरष माँ, बहेन, स्त्री, बेटी, से अलग अलग रूप मैं बात करता हैं परन्तु होता एक ही है इसी प्रकार कलियुग मैं कुछ बातो को चाणक्य के रूप मैं पारभाशित करनी होगी तभी इन बातो की सार्थकता होगी. नहीं तो तब तक वेदों को गडेरियो के गीत मानकर सुनते रहो को रोक रहा है.

3 comments:

  1. क्‍या बात लिखी है लगता है जैसे मेरे मन को टेलीपैथी से पढ कर आपने लिखा हो

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  2. अगर इतना ही श्रेष्ठ है हिन्दू तो धार्मिक मोर्चे पर मार क्यों खाया करता है भाई ? हम बतलाएं, थोड़ा सा संगठित हो जाए तो क्या कहने ? वो कभी होगा नहीं ! आह ! अस्ल बात यह है जनाब के मानव मानव ही रहेगा श्रेष्ठ ना हो सकेगा। क्या हिन्दू, क्या मुसलमान, क्या कोई और ?

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  3. फर्जी धरम है , हिन्दू धरम से अच्छा है नास्तिक बन जाओ...?अगर कोई हिन्दी धरम अपनाना चाहे तो वो ये निश्चित नहीं कर पता है की वो किस जाती में जायेगा ! हिन्दू धरम का दूसरा नाम अन्धविश्वास ......

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