उप्रोलिखित टाइटल का आपस में कोई सन्दर्भ होगा ऐसा मुझे अह्साहस नहीं था. परन्तु इस टोपिक पर लिखने को मुझे कई बातो ने प्रेरित किया. जैसे की अन्ना टीम के कुछ लोगो ने बार बार इस बात को रेखंकित किया की हमें आर एस एस का न तो कोई समर्थन है और न ही कोई समर्थन चाहिए. बाद में गोविन्द्चार्य जी ने अनशन में मंच से जाकर भी कहा की १०% लोग यहाँ आर एस एस के ही है, फिर श्री सिंघल जी ने भी कहा की विहिप के ही लोगो ने अनशन में खाने की व्यवस्था की थी. उसके बात परम पूजनिये आदरनिये सरसंघचालक जी ने भी अन्ना के कार्यो को समर्थन जताया. उसके बात भी श्री केजरीवाल ने इस प्रकार के समर्थन को गैर जरूरी और अनावश्यक बताते ही यह कहा हमें न तो आर एस एस का समर्थन था और न ही चाहिए. खैर हमने तो पहेले ही केजरीवाल जी को एक तानाशाही रूप से परिपूर्ण व्यक्ति कहा ही था. एक सज्जन तो टीवी चर्चा में इतने उतेजित हो गए और बोले के इस केजरीवाल का संघ लोक सेवा में जिसने इंटरविउ लिया है उस पहेले बर्खास्त करना चाहिए. वैसे मैं श्री केजरीवाल जी को एक बात और बता दू की वो इसी प्रकार का दूसरा आन्दोलन करने का सपना न पाले अब. जो जैसा हुआ उस पर संतोष करे. जिस प्रकार का आन्दोलन हुआ विगत सप्ताह उस पर हमने पहेले भी बहुत कुछ लिखा है और क्यूँ वो सफल हुआ उस पर अभी भी प्रकाश डाला जा रहा है. परन्तु एक बात समझ नहीं आई जो ओम पूरी, शाहरुख़ खान, गाली गलोज की भाषा की फिल्म बनाने वाले आमिर खान, भ्रष्टाचार की वजह से पदच्युत श्री विलासराव देशमुख जी का समर्थन स्वीकार कर सकता है उसको आर एस एस पर इतनी आपत्ति क्यूँ है?
एक बात जो बहुत से लोग इस आन्दोलन की सफलता पर नहीं समझ पाय उनको एक अदभुत सत्य बतलाना चाहता हूँ की अन्ना का आन्दोलन को मीडिया के वृहद समर्थन का बहुत बड़ा कारण टी आर पी तो था ही परन्तु उसमे इंग्लेंड में भारतीय टीम की जबरदस्त हार भी एक बहुत बड़ा कारण थी. मैंने कौशिश की थी की क्रिकेट टीम के खिलाडियो पर ब्रांड इंडोर्समेंट का कितना पैसा कोर्पोरेट का लगा है पता लगाया जाय. तो पाया कई हजार करोड़ रुपया इन क्रिकेट खिलाडियो पर कम्पनियो का लगा है. अब ऐसे में मीडिया में ४-० से शर्मनाक हार को यदि भारतीय मीडिया में प्राइम टाइम में दिखा दिया जाता तो इन खिलाडियो की क्या कीमत रह जाती ? जिस क्रिकेट को ७.३० से ८.०० बजे साय हर टीवी चैनल से जबरदस्ती लोगो के ऊपर थोपा जाता है, एक केच पकड़ने को ब्रेकिंग न्यूज़ बनाया जाता है उस क्रिकेट (जो की भारत में दुनिया का सबसे अमीर बोर्ड है) की छवि भारतीय जनमानस में क्या होती? देश का क्रिकेट बोर्ड और कंपनिया इतनी समझदार तो आवश्यक ही है की ऐसे समय में मीडिया को क्या दिखाना और क्या नहीं दिखाने के क्या निर्देश देने है. जो मीडिया विश्व की सबसे महान क्रिकेट टीम की शेखी बघारती है कई टीवी चैनलों की दूकान ही क्रिकेट और उनके विज्ञापनों से चलती है, ऐसे में क्या आप उमीद करते है वो क्रिकेट की सत्ता को चुनोती देती ? तो श्री केजरीवाल जी मीडिया से जाकर पूछो की आपके खांसते हुए भाषणों को दिखाने की क्या मज़बूरी मीडिया की रही होगी? सरकार के पास गिरती अर्थव्यवस्था और शेयर मार्केट के ऊपर जवाब नहीं थे इस मज़बूरी में आपके चोक्टे इस मीडिया ने दिखाए.
खैर मित्रो यह बात तो इस तताकथित अनशन की पापुलरिटी पर थी. अब आते है की संघ की क्या मज़बूरी है ऐसे आन्दोलन से अपने को सलंगन करने की. कुछ लोगो में एक बड़ी धारणा यह है की संघ अपने को मेन स्ट्रीम मे दिखाना चाहता है. अब इसमें कुछ गलत भी नहीं है परन्तु प्रशन है की बहार कब था. यह बात अलग है की मेरे जैसे आम हिन्दू की संघ से अपेक्षा कुछ ज्यादा ही है. बीजेपी कहे की हम अन्ना के साथ है यह तो समझ में आता है परन्तु संघ को इसमें नहीं शामिल होना चाहिए (यह मेरी व्यक्तिगत राय है) जब संघ कहेता है की हम देश का चरित्र निर्माण करते है तो इसमें समर्थन देने या न देने का वो भी इस आन्दोलन का मुझे कोई औचित्य समझ नहीं आता. संघ के अनुषांगिक संघटन स्वतंत्र रूप से इस आन्दोलन के साथ थे इसमें कोई दो मत नहीं है. परन्तु समग्र रूप से बार बार अन्ना को समर्थन जाताना मेरी समझ के बहार है. इस आन्दोलन को जितनी तेजी से हाइप दिया गया है उसका मुलम्मा उतनी ही तेजी से नीचे आएगा. आन्दोलन में हिन्दू आत्मा से कटने का जज्बा इस कदर हावी था की जो अन्ना अप्रैल में हुए आन्दोलन में प्रष्ठभूमि में भारत माता रखते थे बाद के अनशन में वो सिर्फ गाँधी के फोटो पर आगए. इस बार डर गए की कहीं मीडिया बायकाट ही न कर दे. यह आन्दोलन कितना भटका हुआ था वो आप इस आन्दोलन के कोर ग्रुप के स्वामी अग्निवेश की विडियो से अंदाजा लगा सकते हो. शांति भूषण और प्रशांत भूषण की सीडी की प्रमाणिकता से अंदाजा लगा सकते हो. हेगड़े जी तो सरासर अनशन का ही विरोध कर बैठे और अंत में मित्रो मैं तो बड़ी द्र्ड़ता से कहूँगा की अन्ना और उसकी टीम को मिला क्या ? जिन नेताओ और संसद के मुर्दाबाद के नारे वो लगा रहे थे. जिस विपक्ष को अन्ना टीम और सरकार दोनों दरकिनार कर रहे थे. और बड़े मजे में सरकार की गलबहिया करके जोइंट ड्राफ्ट कमिटी बनाई थी. उस समय क्या एक भी अन्ना टीम के सदस्य ने यह बोला था की एक दो आदमी विपक्ष से भी ले लो इस कमिटी में. परन्तु उस समय तो सरकार के प्रेम और उनके परोपकार से दबे जा रहे थे. मीडिया भी ख़म ठोक कर कह रहा था की विपक्ष निकम्मा है इसलिए सिविल सोसाएटी विपक्ष की जगह ले रही है. और अब अंत में उसी विपक्ष ने हल निकाला, उसी स्टेंडिंग कमेटी के पास जाना पड़ा जिसके पास सरकार अन्ना टीम को जाने के लिए कहे रही थी. जो येनकेन प्रकारेण इस अनशन का पटाक्षेप किया है उसके कोई परिणाम आने से पहेले ही उसको सफल घोषित कर दिया गया.
अब मुझे जेपी आन्दोलन तो पता नहीं परन्तु आन्दोलन देखा है "श्री राम जन्मभूमि मुक्ति" का. जिस आन्दोलन से देश का बच्चा बच्चा जुड़ा था, जहाँ मीडिया सहयोगी नहीं विरोधी थी, जिस आन्दोलन को सफल बनाने के लिए दिल्ली पुलिस कमिश्नर एस एम् एस कर रहा हो की आज अन्ना जी को उठायंगे या नहीं वहां उस आन्दोलन के लिए पुलिस गोलीओ से कार सेवको को छितरा रही थी हर तरफ हथियारबंध पुलिस का पहरा था. जहाँ घायल हुए लोगो के लिए उनके जख्मो पर केवेल मिटटी रगड़ दी जाती थी न की फाइव स्टार हॉस्पिटल के डॉ. हर एक घंटे बाद मीडिया के केमरो के सायें में मेडिकल बुलेटिन दे रहे थे. आन्दोलन में नारे गढ़े नहीं गए थे बल्कि स्वम बन गए थे. जहाँ किसी केजरीवाल ने देश की सरकार को यह नहीं कहा था की राम लीला मैदान को साफ़ करना चाहिए ताकि लोग आ सके बल्कि लोग कच्छे और बनियान में ही सरयू पार कर गए थे. खाने को चांदनी चौक से पैकेट नहीं थे बस गमछे में बंधे चने और मुरमुरे थे. गाव और देहात से अनपढ़ (यह वो ही थे जिन्हें ओम पूरी जैसे व्यवस्था का हिस्सा बनते देख आक्रोशित होते है) लोग बस एक ही नारा की "राम लल्ला हम आयेंगे और मंदिर वही बनायेंगे" से सरोबार थे. जिनको न तो किसी चैनल में बाईट देनी थी और न ही किसी यज्ञे में शामिल होना था जिनको एक ही बात वैसे तो आज तक भी समझ में नहीं आई की जब १९४७ में दो देश दे दिए गए तो बाकि के देश में भी अपने आराध्यो के मंदिर क्यूँ नहीं बन सकते से मतलब था.
मित्रो वो क्या कारण था की आन्दोलन सफल हुआ नहीं, मैं उन मुद्दों पर अभी नहीं आना चाहता परन्तु यदि आन्दोलन की स्प्रिट देखनी है और परिस्थितियो के विपरीत आन्दोलन का विराट रूप देखना है तो "श्री राम जन्मभूमि मुक्ति" का आन्दोलन समझना होगा. इस आन्दोलन ने ही बीजेपी को सत्ता के शिखर पर बिठाया था. हिन्दुस्तान का जो आन्दोलन ७०% जनता को छु लेगा वो ही आन्दोलन देश में सत्ता परिवर्तन का कारण बनेगा. जो लोग इस महाभ्रम में है की श्री अन्ना जी का आन्दोलन लोगो को उद्वेलित कर के सत्ता ही बदल देगा क्षमा करे मित्रो वो लोग गलत है. इतना जरुर कहना है की २००९ के लोकसभा के चुनावो में वो ६०-७० सीट जो महानगरो में कांग्रेस को जीता ले गई थी वो जरुर कांग्रेस के हाथ से निकल जाएगी. यह तो मित्रो निश्चित है. परन्तु जो लोग इस आन्दोलन की सफलता ग्रामीण और अर्ध ग्रामीण क्षेत्रो में देख रहे है वो गलत है.
जो मेरा इस बारे में मौलिक मुद्दा है वो संघ से जुड़ा है. संघ को देश हित व्यवस्था बदलने के लिए स्वम निर्णय का उपक्रम करना होगा उसका रूप क्या हो यह विचार विमर्श का विषय हो सकता है परन्तु किसी का समर्थन या विरोध करने जैसे कृत्यों से दुनिया के सबसे बड़े संघटन को अब इस से आगे जाना होगा. आज जो लोग संघ में भी गाँधी जी का समावेश कर रहे है या भगत सिंह का समावेश करने पर जौर दे रहे है वो जान ले की क्या भगत सिंह जी एक बार भी संघ की शाखा में आये जब की संघ को खड़े हुए तब तक ६ साल हो चुके थे (जब उनको फांसी हुई) . क्या गाँधी जी ने कभी आकर ध्वज प्रणाम किया, क्या जवाहर लाल नेहेरू ही शाखा में आये? मेरा मित्रो इन महापुरुषों का अपमान करना अर्थ नहीं है और न ही इन लोगो के संघ से न जुड़ने पर संघ का महत्व कम हो जाता. मेरा कहेना यह है की गुलाब गुलाब है कमल का फूल कमल का है इनको मिक्स मत करो. इन दोनों कर रुतबा है परन्तु इनको जबरदस्ती घाल मेल मत करो. भगत सिंह जी से आज भी लाखो लोग प्रेरणा लेते है, हम भी लेते है परन्तु उनकी अपनी एक विचारधारा थी जिसका स्थान अपनी जगह है. इन दोनों ही महान व्यक्तिओ में भी पूर्णता नहीं थी और इनकी कमीया समझ कर ही डॉ. हेडगेवार जी ने "भगवा ध्वज" गुरु बनाया और संघ जैसा संघटन हिन्दुओ को दिया. ठीक इसी प्रकार अन्ना जी है उनका अपना एक संघर्ष है और अपनी एक विचारधारा है वो संघ को अपनाने में जब हिचक रहे है तो उनको सलाम "बस" इतना काफी है. संघ कम से कम अपने स्वम सेवको को भ्रमित न करे. लाखो लोग जो संघ से प्रेरणा पाते है, जो एकलव्य की तरह गुरु माने हुए है उनको क्या सन्देश संघ देना चाहता है. अरे भाई जब यह शख्स स्वामी राम देव जी पर एक शब्द नहीं अपने मंच से बोला. केजरीवाल ने पता नहीं कितने लोगो के नाम गिना दिए अनशन के अंतिम दिन शुक्रिया करने के लिए परन्तु न तो "स्वाभिमान ट्रस्ट से जुड़े अनशन पर बैठे (जो बाद में प्राण त्याग गय) का जिक्र किया, न गोविन्द्चार्ये जी का जिक्र किया, न आर एस एस का जिक्र किया, न राम देव जी का जिक्र किया. क्या न ही विहिप का जिक्र किया. तो क्या अब भी हम बिना मतलब के समर्थन देते रहे. इस बात को बड़ी गहराई से समझना होगा संघ को की अपने करोडो स्वयम स्वेको के आत्मसम्मान की रक्षा का दायित्व भी उसी का है और निर्वाह भी उसे ही करना होगा.
बीजेपी एक राजनैतिक पार्टी है वो क्या करे क्या न करे उसके इतने दूरगामी परिणाम नहीं होंगे जबकि संघ क्या करता है और क्या नहीं इसके परिणाम दूरगामी होंगे. संघ को मूल मुद्दों पर आना ही होगा की किस प्रकार इस देश की गलती और सडती व्यवस्था में शुचिता का शंखनाद करना है, कैसे इस व्यवस्था में चरित्रवान, देशाभिमान और साहसी लोग पैदा करने है, और उसके लिए कैसे अपना बेस बढ़ाये जैसे संघ के समाज के हर क्षेत्र में संघटन है तो क्यूँ नहीं आई टी क्षेत्र में है, क्यूँ नहीं मीडिया में है, क्यूँ नहीं व्हाईट कॉलर जॉब में है, क्यूँ नहीं फ़िल्मी लोगो में है इस पर विचार करना होगा. जब की किसानो में मजदूरो में, वनवासियो में, पूर्व सैनिको में, विदेशो में, विद्यार्थियो में हर क्षेत्र में है. कम से कम संघ इन क्षेत्रो में पहेल तो करे पर इसमें बीजेपी के भरोसे से काम नहीं चलेगा. क्यूंकि मुझे बड़ा आश्चर्ये हुआ की अभी पिछले हफ्ते श्री वरुण गाँधी जी एन डी टीवी पर बड़े गर्व से बता रहे थे की उनका आर एस एस से कोई भी तालुक नहीं वो कभी आर एस एस की शाखा में भी नहीं गए. अब मुझे समझ ही नहीं आया की अपने को आर एस एस से इतना अलग बताने में श्री मान अपना कौनसा हित साध रहे है. मेरा तात्पर्य यह कहेने का है की जब स्वम्सेवक आप नहीं हो फिर हम अपनी उर्जा किसके लिए खपा रहे है. हिन्दू समाज आज दो व्यवस्था को देख रहा है एक गाँधी परिवार और एक संघ परिवार, एक व्यक्तिगत अकांक्षाओ पर टिका है और एक सामूहिकता पर, एक सत्ता के लोलुपो का दल है तो एक जुझारो का, एक तरफ स्वार्थी तकते है तो दूसरी और परम देशभक्त. इन दोनों की तुलना वास्तव में तो हास्यपद है परन्तु यह दो प्रतीकात्मक ताकते है जिनसे लोग जुड़े है.
हिन्दू स्वाभिमान से जुड़े लोगो को समझना होगा जब तक सत्ता के शिखर पर बैठ कर परिवर्तन नहीं किया जायेगा टहनियो और डालियों पर बैठ कर उन पर पानी डाल कर वृक्ष को मजबूत नहीं किया जा सकता. इस देश में सेकुलर का ढोंग आधी शताब्दी के षड्यंत्र का नतीजा है जिसको भारत का समाज भुगत रहा है, १९९१ से आज तक एक नव अमरीकी युग दो दशक से खड़ा किया जा रहा है जिसके शुरुवाती परिणाम और कुपरिणाम भुगतने शुरू हो गए है. क्या हिन्दू स्वाभिमान से जुड़ा कोई भी संगठन इस दिशा में प्रगति कर रहा है? हर बार बार - बार किसी न किसी षड्यंत्र का शिकार होकर हम अपनी उर्जा का क्षय इन सब में उलझ कर अवसर गवां देते है. क्यूँ हम बार बार कायरता को अहिंसा का मुलम्मा चढ़ा कर परतिष्ठित करते है? क्यूँ हम बार बार गाँधी सिद्धांत से ऊपर उठ कर नहीं देखते ? क्यों हर बार हिन्दू समाज के अन्दर डर को बैठाया जाता है? कौन लोग है जो हिन्दुओ के जागृत होने से डरते है? यदि लोकतंत्र में सहमति ही सबसे बड़ा सिद्धांत था तो हिन्दू के ऊपर किसी भी बड़े निर्णयों के लिए आम सहमती हुई है? किसकी सहमति से बंगलादेश और पकिस्तान दिए गए थे ? ऐसे ही लाखो मुद्दे है जिनसे की हिन्दू समाज पीड़ित है. भारतीय समाज को बहुत अच्छे से समझना होगा की यह १०० करोड़ हिन्दुओ के होते, धन्ना सेठो के होते, उन हिन्दू अमीरों के जिनके कुत्ते खा खा उलटी करते है के होते भी, यमुना नदी गन्दा नाला बन गई, गंगा नदी गंदगी से बेहाल है, बहुत से पौराणिक मंदिरों का हाल दारुण है, अयोध्या, वृन्दावन और न जाने कितने सेकड़ो धर्मस्थलो का गंदगी से आलम यह है की मैं हिन्दू होकर शर्म से धरती में गड जाता हूँ. तो क्या आप समझते है की हिन्दू इतना विद्वान है की और पैसा आ जाने से वो इन हिन्दू स्थलों का विकास कर देगा. नहीं मित्रो गलत है. १०० करोड़ हिन्दुओ के पैसे से सरकार ८% की दर से आर्थिक विकास का दम तो भरती है पर क्या वो देश के ८०% लोगो के धार्मिक भावनाओ का ध्यान रखती है?
देश के हिन्दू स्वाभिमान से जुड़े संघटनो को कम से कम एक एजेंडा ही २०१४ के इलेक्शन से पहेले बना कर समाचारपत्रों में छपवा देना चाहिए की जो दल इन वादों को पूरा करेगा हम हिन्दू उसी को वोट देंगे (क्यों मीडिया बन्धु हम हिन्दू यह तो कर ही सकते है ? ) जब तक देश के मंदिरों से सभी पुजारी एक जुट होकर देश की सरकार को मंदिरों का पैसा देना बंद करने का आवाहन नहीं करेंगे, धर्म के साथ दुर्गति होती जाएगी. और एक दिन ऐसा आयेगा की देश तो होगा पर हिन्दू कोई नहीं होगा. नेपाल जैसे राष्ट्र को रातो रात हिन्दू विहीन बना दिया गया, क्या उसके लिए किसी ने विचार विमर्श किया या कोई आम सहमति बनाई, आज इस्लाम और इसाई की गति से वहां पर धर्म परिवर्तन कर रहे है किसी हिन्दू संघटन ने चूं भी नहीं की है. जब वो राष्ट्र पूर्ण उप से हिन्दू विहीन हो जायेगा तब हम उसके इतिहास की गाथा गा गा कर अपने पौरुष में बिन मतलब का उबाल लाते फिरेंगे. हम हिन्दुओ की बड़ी समस्या है हम पूर्व में हुए वीरता की बड़ी बड़ी गाथाये गाते फिरते है, परन्तु वर्तमान में कायरता को अहिंसा का कलेवर चढ़ा कर अपनाते है की भविष्य में शांति स्थापित की जा सके. मित्रो अहिंसा और कायरता में एक बड़ा अंतर है मजबूत शरीर या समाज जब किसी को क्षमा करता है या कुछ सहता है उसको अहिंसा कहेते है परन्तु कमजोर शरीर या समाज किसी को क्षमा करता या कुछ सहता है तो उसको कायरता कहा जाता है. क्षमा शोभिती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो, वो क्या जो दन्त रहित और सरल हो.
आज भी हिन्दू समाज साजिशो का शिकार है, क्या कारण थे की राजग की सरकार में भी हिन्दू समाज का उद्दार नहीं हुआ, पूरे का तो छोड़ो, विवादितो को भी छोड़ो, पर और कहीं क्या कुछ विकास हुआ? मित्रो मेरा कहेना यह है की सुश्री उमा भरती जी हो, राजीव दीक्षित जी हो, गोविन्द्चार्य जी हो सभी हिन्दू समाज के पटल पर होने के बाद यकायक साजिशो के शिकार क्यूँ हो जाते है? पता नहीं श्यामा प्रसाद मुखर्जी कैसे मरे, दीन दयाल उपाध्याय जी कैसे मरे, लाल बहदुर शास्त्री जी कैसे मरे, सुभाष चन्द्र बोस जी कैसे मरे, क्यूँ उन लोगो का मरना हमेशा संदेह का कारण रहा जो प्रखर भारत और मजबूत हिन्दू की बात करते है. इन एतिहासिक तथ्यों को झुटलाया नहीं जा सकता. इन ही के परिपेक्ष में आज भी हिन्दू और हिन्दू वीरो के लिए षड्यंत्र कम नहीं है. हिन्दू प्रखरता की बात चाहे कोई हिन्दू उठाये हमेशा ही संदेहास्पद स्थिति में उनके साथ अन्याय हुआ है. इनका कारण ढूंड लिए तो राम देव जी का आन्दोलन सफल और अन्ना जी का हिट के कारण भी अपने आप मिल जायेंगे. इस देश पर राज करने वाली प्रमुख शक्ति नहीं चाहती की हिन्दू आत्मसम्मान से भारत देश को प्रगति के रास्ते पर ले जाये. वो हमेशा से एक लुंज पुंज शासन व्यवस्था भारत में चाहती है. वो आधी अधूरी प्रगति भारत को देना चाहती है. भीख में विकास दर देना चाहती है और संसार में हिन्दू को आत्मनिर्भर नहीं होने देना चाहती और समय समय पर हिन्दू समाज, हिन्दू वीर, हिन्दू शक्ति को खंड खंड करती रहेती है. ऐसा कोई कारण नहीं जो "श्री राम जन्मभूमि मुक्ति" के आन्दोलन असफल हो जब तक हिन्दू हितो से संबधित संघटन इस आन्दोलन की असफलता के कारणों को नहीं खोज लेते तब तक भविष्य में कोई भी आन्दोलन होगा उसमे हिन्दू समाज का हित भी हो इस में मुझे संदेह है. तब तक अफीम की गोली खा कर पड़े रहो कोई उठाने नहीं आएगा, क्यूंकि आन्दोलन खड़े करने वालो से आन्दोलन असफल करने वालो की शक्ति ज्यादा बड़ी है और ऊपर से व्यक्तिगत आकांक्षा, महत्वकांक्षा, प्रसिद्दी अपना रोल अलग निभाती है.
संघ के कार्यो से लाभान्वित राजनेतिक पार्टियों से भी अनुरोध है की कम से कम अपने अपने राज्ये में तो हिन्दू हितो पर ध्यान दे, बड़े नहीं छोटे छोटे कानून बना कर हिन्दू हितो की रक्षा करे. जो लोग अन्ना के आन्दोलन से अभिभूत हुए जा रहे है वो जान ले की हिन्दुस्थान ने गाँधी के आन्दोलन से अंतत क्या पाया था? आन्दोलन करना गलत नहीं परन्तु किसी एक बिल के आन्दोलन को हजारो वर्ष के पुरातन देश की आजादी का आन्दोलन बताना गलत है, यह जनता को भरमाना है. हिन्दू जनता का विश्वास १९९२ में हिला था वो आज तक नहीं लौटा, यदि अन्ना जी के आन्दोलन को भी हिन्दू संस्कृति का पुरुधा अपना समर्थन जता ने लगा तो उन करोडो स्वाम सेवको का क्या होगा जो "परम वैभव" पर समाज और देश को पहुचने का संकल्प लिए बैठे है ?
अंत में एक बात जरुर कहूँगा हिन्दू समाज का यदि कोई एक दुश्मन मुझे चुनने के लिए कहे तो मैं "व्यक्तिगत महत्वकांक्षा" का ही नाम लूँगा. अब चाहे वो हिन्दू राजा दाहिर को हराने के लिए मुसलमानों की फोज को सहयता करने वाला हिन्दू ही क्यूँ न हो. जब तक हम में व्यक्तिगत न होकर सामूहिकता का जज्बा और बोध नहीं होगा, सफ़लत का सूरज दूर ही रहेगा. परन्तु यह ही हिन्दू समाज का दुर्भाग्य है और इसी दुर्भाग्य से संघ पिछले ८५ सालो से लड़ रहा है. परन्तु जीत बाकि है.
जय भारत जय भारती.
संघ द्वारा समर्थन पर आपने जो विचार दिया है उससे शत-प्रतिशत सहमत हूँ |
ReplyDeleteलगभग तीन माह पूर्व सुरेश चिपलूनकर जी ने दो लेख लिखे थे- गाँधी टोपी सेकुलरिज्म और अन्ना हजारे- भाग १ और २ (http://blog.sureshchiplunkar.com/2011/04/jan-lokpal-bill-national-advisory.html,
http://blog.sureshchiplunkar.com/2011/04/anna-hazare-jan-lokpal-bill-secularism.html), तब से ही सारी पूर्व नियोजित षड्यंत्य्र हमारे समझ में आ रहा है | आपके हाल के अन्ना से सम्बंधित सभी लेख का मैंने खूब जोरों से प्रसार किया और इस आन्दोलन की अदुरदर्शिता पर खुलेआम मित्रों से चर्चा की | सभी (हाँ सभी) मुझसे असहमत थे | मैंने वही तर्क रखे थे जो आपके ब्लॉग से पढ़ा था | आज सबको मेरी बातें (आपके ब्लॉग से ) बिलकुल सच्ची लग रही है | आशा करता हूँ की शीघ्र ही सारे भंडाफोड़ होंगे |
वन्दे मातरम |
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ReplyDeletehttp://in.jagran.yahoo.com/news/opinion/general/6_3_8145613.html
Hi,
ReplyDeleteGood Analysis on whole episode but you are wrong in praising Baba Ramdev, even he too disassociated himself from Sangh he even couldn't defend Sadvi Rhitambara's presence at Ram Lila Maidan.
Cant a single Sangh leader say that when US don't have any problem of her visiting US then why Secular congress should have? Sadhvi arrived straight to ground after returning from US that day, what is it wrong on her part that she gave importance to corruption and Baba Ramdev's Andolan?
Not new Sangh has committed similar mistakes time and again so this time also it is not new..take example of Tarun Vijay speaks lot of things Hindu Hindu even he might be reciting Hindu word when he sleeps but had Sheehla Masood as member on board of Sayma Prasad Mukeerjee Trust what was need to have her now trapped in her murder case...Let him enjoy with CBI...CBI and time will tell was she brave lady or clever lady...
After Ramjanbhoomi's verdict next day Hindu Mahasabah lawyer told to one local news paper that those who trust RSS they don't know that it is group of traitors..Sangh will not do anything for this temple nor they are trying to get land for Ram Mandir..
We need to wait till we get a strong Hindu organization till then we will have to support Sangh only...No other option left with us.
bhut acha likha apne..............mujhe bda afsos hai is bjp par ki isne kuch nhi kiya hindus ke liye...
ReplyDeletepar mera ye mat hai jab tak ye centre m brahmin,mandir ko nhi rakhenge inka kabhi uthan nhi hoga, kyonki ye apne raj m haj ke liye susbsdi bda dete hain, kaise bharosa karian,mera to manna hai kuch bjp ke senior leader mar jayain tabhi is desh ka bjp bhala kar sakti hai.
प्रिये जोशी जी
ReplyDeleteलड़ाई को वैचारिक ही रहेने दे तो ज्यादा उचित होगा, आज के समय में लाख बुराई है बीजेपी में परन्तु हिन्दुओ के सम्मान के लिए यह ही पार्टी उचित भी है. जरा इस बात पर गौर करे.
www.hindubloggersmilan.blogspot.com
ReplyDeletePlease check
बेहतरीन लिखा हुआ लेख,
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