ए़सी बहुत सी बाते जो आपकी भी समझ में नहीं आती होंगी. आज में भी वो सभी बातें आपके साथ बाँटने आया हूँ। कभी कभी लगता है की हमे बस हांका ही जा रहा है और हम हंक रहे है एक भेडो और बकरियो के समहू की तरह. बात करते हैं सिलसिलेवार की यह सब हो क्यों रहा है। मुझे ख़ुशी होगी की इनके कोई उत्तर भी दे तो।
पूरी दुनिया में एक ही चित्रकार की पेंटिंग इतनी मेहेंगी बिकती है हुसैन की अब पता नहीं एअसा क्या बनता है।दूसरी और यह है जो कश्मीर को भारत का अंग नहीं कहेती, सुप्रीम कोर्ट को नहीं मानती उसी अरुन्धिती राय को इंटरनेशनल पुरुस्कार।
यह हबीब तनवीर के चेले ही बता दें की पोंगा पंडित (सभी के द्वारा सराहा गया हबीब तनवीर का नाटक)। यह पंडित ही पोंगा क्यों। यह मौलाना और पादरी क्यों नहीं? क्या हैं इसका जवाब।
- ८५% जनता का पेट भरने वाले किसान की राजनीती में पूछ न होना. यह प्रशन बहुत ही परेशां करता हैं की आखिर लोकतंत्र का सबसे बड़ा वोटर समहू। देश की राजनीती का सबसे मजबूत वोटर एक समय देवीलाल और चरण सिंह जैसे दिगाजो का अखाडा आखिर क्यों संसद में दफ़न होगया। एसा एक दम से क्या घाट गया जिसे से किसान लोकतंत्र में गायब होगया। जिन तीन राज्यों में सबसे ज्यादा किसानो ने सरकार की दमनकारी और निर्मम नीतियो की वजह से आत्महत्या की उनिही तीन राज्यों ओडिसा, महराष्ट्र (लोकसभा के परिणाम) और आंध्र में सरकारे आगई और वो भी भारी बहुमत से।
- आज कोई राजनेतिक दल किसान की बात ही नहीं करता। मोनसेंटो जैसी बड़ी कंपनी देश को लूट रही है। किसान बी टी काटन या बी टी बैंगन से त्रस्त है। सरकार जो कारो और ग्रह ऋण सस्ते करती है परन्तु ट्रक्टर और बीज पर लोने सस्ते करने का मतलब नहीं।
- किसान के बाद एक और बड़ा विषय की देश और विदेशी सारे पुरुस्कार कुछ ही विशेष विचारधारा के लोगो को क्यों।अभी तीन बहुत ही विद्वान् और महान कवि मध्य प्रदेश में दुर्घटना ग्रस्त होगय। मजाल है किसी टीवी चैनल ने इनका जिक्र किया हो हाँ प्रिंट वालो ने दो चार लाइन छाप दी आज भी यह लोग दिल्ली और भोपाल के हस्पतालों में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे है। कम से कम राहुल महाजन से तो बड़े ही है यह कवि परन्तु मीडिया का इन पर ध्यान नहीं हाँ इस सब के बीच हबीब तनवीर जी का इंतकाल हो गया। तो मजाल है किसी पत्रकार ने इस पर एक लम्बा लेख न लिख मारा हो। हर अख़बार और चैनल भरा पड़ा था इस खबर से। मैं यह नही कहेता की यह दुखद कबर नही वास्तव में उनके परिवार वालो के लिए बहुत ही हृदयविदारक रही होगी परन्तु वो कवि भी तो कुछ थे ही.
- यह तो बात थी मीडिया कवरेज की। अब बात पुरुस्कारों की। अब आप निगहा दौड़ा ले पिछली सरकार के पदम भूषण पर। सारे पत्रकार सारे लेखक सारे चित्रकार सारे खिलाडी सभी एक ही विचारधारा के लोग।
- सारे नए पुराने समाचारपत्र और टीवी चैनल एक ही विचारधारा के।
- बोलीवुड में भी यही हाल है।
पूरी दुनिया में एक ही चित्रकार की पेंटिंग इतनी मेहेंगी बिकती है हुसैन की अब पता नहीं एअसा क्या बनता है।दूसरी और यह है जो कश्मीर को भारत का अंग नहीं कहेती, सुप्रीम कोर्ट को नहीं मानती उसी अरुन्धिती राय को इंटरनेशनल पुरुस्कार।
- अच्छा यहाँ आप छोडो घर जाता हूँ तो गृहशोभा एक घरेलू पत्रिका देखता हूँ तो वो भी एक विशेष विचारधारा हीलिखती है। सड़क पर जाऊँ तो एक विशेष परिवार की सड़क, बगल की कोलोनी का नाम पुछा तो एक परिवार विशेष के ही नाम पर।
यह हबीब तनवीर के चेले ही बता दें की पोंगा पंडित (सभी के द्वारा सराहा गया हबीब तनवीर का नाटक)। यह पंडित ही पोंगा क्यों। यह मौलाना और पादरी क्यों नहीं? क्या हैं इसका जवाब।
- एक और मेरे समझ के बहार है की कोई भी अपने बारे में गलत बोलने के लिए अरे यहाँ तक की गलत आरोप के लिए कोर्ट जाकर हर्जाना (मानहानि का) मांगता है। कई बार तो विभिन् कोर्ट ने अपनी माँ और बहेन के साथ सामने ज्यातती होने पर हत्या को भी जज्बात में आकार किया मान माफ़ किया है। अब यह कोनसा कानून है की अपनी ही सीता, लक्ष्मी, दुर्गा का नगन चित्र बनाने वाले को ८५% हिन्दू जनता वाले देश में पदम पुरस्कार और मीडिया का देवता बनाया जाये। हमारे ही सामने हमारी माँ की नंगी तस्वीर बनाय और भारत सरकार इसे पुरुस्कार दे। अब भारत सरकार की बात मानकर ताली बजाऊ और गर्व करू तो आत्मा की गलानी होती है। और भारत सरकार (जो वर्तमान में है) की बात न मानु तो देशद्रोही होने की सम्भावना है। कुछ लोग इस चित्रकार का विरोध करे तो मीडिया द्वारा भगवा गुंडे केहे लाये जाए। इसको कला झंडा देखाए तो मीडिया इनकी छवि तालिबानी (समकक्ष) बना दे.
- भारत माता को डायन कहेने वाला सबसे बड़ा सेकुलेर हो। मतलब की पता नहीं कोन सा कानून है स्त्री का तो सम्मान करो पर स्त्री की माँ का नहीं। यार कैसी उलटबंसिया हैं। मतलब मंदिर की बात मत करो (आप घोर रूप से पापी हो) हाँ उसपर टॉयलेट की बात सेकुलर हैं। औरंगजेब और अकबर को महान घोषित करने में अरबो टन कागज काला करदो परन्तु चाणक्य और विक्र्मदितिया तो घोर रूपसे सामपरदायिक हैं।
- दिल्ली जैसे कोस्मोपोलिटन शहर की मुख्यमंत्री भगवा रंग के लेम्प पोस्ट नहीं देख सकती हटवा कर मानी और यदि कोई इस रूप में हरे रंग पर ओब्जेक्शन करदेता तो उसका बेचारे का नरेंदर मोदी बना दिया गया होता। देखा नहीं आज अख़बार में एक सूरत शहर के रैप की तुलना २००२ के गुजरात दंगो से कर दी। मुझे नहीं समझ आता इस प्रकार से आतंक भड़काने वाले पत्रकार को जो की देश की राजधानी का अंग्रेजी का बड़ा अख़बार है परन्तु हैड लाइन में ही इस तेरहे की तुलना है। क्या करेंगे आप किसी भी जियतति, पर दलित विरोध कर सकते है, जैन कर सकते है, सिख कर सकते है, आदिवासी कर सकते है। पर हिंदू (मीडिया को इन सब के एक जुट होने पर जिसको की हिंदू कहेते है।) नही करसकता। और येही साजिश है हिन्दुओ के खिलाफ और मैं इसी का विरोध करता हूँ और करता रहूँगा। मीडिया हमे टुकडो में तो सत्कार करती हैं परन्तु सामूहिकता का अपमान। यदि हिंदू इसे समझ जाए तो इन सफेदपोशों के चहेरो पर से ढोंग का नकाब उतर जाए.
अब मुझे कोई बताए की यह कोन सी चीज़ हैं जो इन सब को कंट्रोल कर रही है। क्या इस देश की जनता अमरीका से भी बड़ी प्रगतिशील हो गई है?
अरे भाई कोई बताय ८५% जनता का कोई जिक्र ही नहीं बाकि १५% जनता ही को विशेषाधिकार।
भाई जो करलो मना नहीं करता परन्तु सुन्नत को राष्ट्रीय कर्म घोषित मत कर देना।
इन सारे सवालों का सम्भावित जवाब देती एक पोस्ट जल्द ही देने की कोशिश करूंगा… बहुत ही अच्छा लिखा है आपने, असल में यह सब एक विचारधारा के तहत "गैंग" बनाकर किया जाने वाला काम है…
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