Thursday, July 9, 2009

क्यों अजमेर पर ही चादर जाती है? शिव पर किसी का गंगा जल क्यों नही?

मैं आज बात करना चाहता हूँ उस ढोंग की जिसको हमारा कोरपोरेट वर्ल्ड का हिंदू तबका भी करता है। क्योंकि सबसे ज्यादा गाफिल यह ही तबका है। सन्दर्भ और भी महत्वपूर्ण तब बन जाता है जब आम हिंदू इन को अपना नायक बनाना चाहता हो। और सही भी है, भाई आर्थिक प्रगति का युग है यदि हिंदू, धीरू भाई अम्बानी और श्री लक्ष्मी मित्तल को अपना आदर्श बना भी लेते है तो ग़लत क्या है? यह लोग तो अब प्रतिक बन ही गए है। परन्तु गहरई से विश्लेषण करने से पता चलता है की मुद्दा आर्थिक रूप से संपन्न और तथाकथित एलिट क्लास के सबसे ज्यादा भ्रम से जुडा है। और आज मैं उनको ही बतलाना चाहता हूँ की क्यों भारत असली में सेकुलर नही है और जिसको तथाकथित सेक्लुरिसम कहा जाता है वो खाली मुसलमानों की चिरौरी और ढोंग मात्र है। अब निर्णय आपका है की इन को आप अमेरिका के नेताओ की तरह सेकुलर माने और चीन के नेताओ की तरह अपने देश के बारे में स्पष्ट राय वाले। या नहीं। क्योंकि सुपर पवार भी तो बनना है।

  • सबसे पहले मुझे कोई यह बात बताये की यह मानसून के लिए सोनिया जी और बड़े धर्मनिरपेक्षता के ठेकेदार नेता अजमेर शरीफ पर ही क्यों चादर चढाते ? क्यों नही शिवजी पर गंगा जल या हर की पौडी पर आरती करा देते। क्यों एसा नही होता की भारत के कबिनेट मंत्री सावन के महीने में अपने हाथो से शंकर जी पर जल चढ़वाने के लिए जल देते और फोटो खिंचवाते जैसे की जियारत पर जाने वालो को प्रधानमंत्री जी, सोनिया जी और बाकि ओदेदार देते है और पूरी बत्तीसी का फोटो खिंचवाते है? मुझे एक बात और समझ नहीं आती की दो फर्लांग की ये चादरे भेजते फिर रहे है क्यों यह एक हाथ छोटी चुनरी माँ वैष्णव देवी पर चढाने को किसी को नहीं भेजते?

  • भाई तुम लोग और मीडिया मुशरफ या और किसी मुस्लिम राष्ट्राध्यक्ष के आने से उसके ताजमहल जाने और अजमेर जाने के लिए बड़ी हायतौबा मचाते हो। कभी ढाका जाओ तो ढाकेश्वरी देवी के दर्शन भी करलिया करो, पाकिस्तान जाते हिंगलाज देवी के भी दर्शन करलिया करो। या केवल वो बीजेपी वालो का ही काम है। तुम क्यूँ यह भगवानो को भी सुविधा के हिसाब से बाँट लेते हो

  • क्यों भारत देश और उसके राज्ये मंत्री छुप छुप कर पूजा करते है? क्यों सामूहिक रूप से पूजा में शामिल नही होते?

  • क्यों पूजा अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए ही करते है? परन्तु राष्ट्र की बात आती है तो तुंरत सेकुलर हो जाते है? क्या इसका मतलब मैं यह न निकालू की जब अपने स्वार्थ की बात आती है तो सही, और सच्चा भगवन का रास्ता परन्तु जब राष्ट्र की बात आती है तो झूटी धरमनिर्पेक्षता। यह झूटी नौटंकी क्यूँ? यह दोहरा चरित्र क्यों? यह दोरंगा व्यहवार क्यों? जब अपनी बेटी और बेटे की शादी करनी हो तो गौत्र और जन्मपत्री क्यों? परन्तु राष्ट्र की जन्मपत्री की बात करू तो खिल्ली क्यों उडाई जाती है? जब इन नेताओं को अपने घर में सेम्लेंगिक पसंद नही तो देश में पसंद क्यो? जब व्यक्तिगत त्याग नही कर सकते तो सामूहिक त्याग की अपेक्षा क्यों?

  • जब सोनिया जी दशहरे में राम लीला मैदान में रावन पर तीर छोड़ती है और प्रधानमंत्री रामनवमी पर बधाई देता है तब फ़िर राम मन्दिर और राम सेतु पर राम को क्यों नाकारा जाता है यह आधा अधुरा राम क्यों? क्यों वो लालकिले के रामलीला मैदान में जोश से भरे राम भक्त और रामलीला कमिटी की विचित्र राम भक्त इन से प्रशन का उत्तर नही मांगते? क्यों वो पत्रकार प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के रामनवमी की बधाई संदेश लिखते सोचते नही की किस राम के जनम की बधाई छाप रहे हो जिस राम को न वो मानते और न उनकी सरकार उसके अस्तित्व को स्वीकारती।

  • होली पर किस जनता को रंग लगाते हो? प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति क्यों विकलांगो और बच्चो के साथ होली मनाते है? क्यों उनपर होली के दिन रंग लगा कर बधाई देते है? जब इतिहास परुष राम को नही मानते तो वैदिक देवता विष्णु को कैसे मान सकते हो? तब किस प्रहेलाद की जीने और होलिका के मरने की खुशी में होलिका दहन करते हो?

  • दीवाली पर यदि हम लक्ष्मी पूजन करते है तो बता दू यह एक तांत्रिक अनुष्ठान है जो दुनिया के सभी हिंदू करते है। कोर्पोरेट वर्ल्ड के वो धुरंधर भी करते है जो सेंसेक्स के जगमग सितारे है। क्योंकि अमावस की रात वो एक बहुत ही शुभ समय होता है लक्ष्मी पूजन का तो फ़िर बाकि हिंदू विधि और अनुष्ठान को हिकारत भरी नजर से क्यों देखा जाता है?

  • देश की गौरावशाली सेना के सैनिक क्यों दुश्मन से लड़ते हर हर महादेव, जये बजरंगबली और भारत माता का नारा लगा कर उसके हलक में से प्राण खींचते है? क्यों नही सरकार उन्हें कोई अल्फा वन या राजीव गाँधी और मोहन दस करम चंद गाँधी का नारा लगवा लेती . राष्ट्रपिता तो बहुत बड़ी चीज होता है तो क्यों सरकार सैनिको और पुलिस के लिए एक सर्कुलर निकलवा देती (जो की अब तो २०७ सीटे आगई हैं और भी आसान है) की कल से सभी सैनिक किसी भी युद्घ से पहले हुंकार भरते हुए जवाहर लाल नेहरु, राजीव गाँधी या महात्मा गाँधी की जय बोलेंगे। नहीं करोगे तुम क्योंकि तुम्हे अपनी जान प्यारी है और देश को बेवकूफ बनाने के लिए १०० करोड़ हिन्दू है ही । जब तक यह हैं तुम अपनी दोरंगी अफलातूनी जोकरी करते रहोगे।

मुझे समझ नहीं आता हिन्दू लोग इन नेताओ से कुछ कहेते क्यों नहीं? क्या उन्होंने वास्तव में दब्बू और बेवकूफ बनने का निश्चय कर लिया या फिर इस हिन्दुस्थान के अन्दर ही कोई और दुनिया ढूंड ली है।

  • जो सरकार कुम्भ के मेले पर करोड़ खर्च करने का बजट बनाने का स्वांग करती है। जो हिन्दुस्थान की मीडिया और एडवरटाईसमंट कंपनिया कुम्भ के मेले से करोडो कमाती है। जो सोनिया गाँधी और नेता अपने मोक्ष के लिए गंगा में अपने पाप धोकर आते है। वो इसके पीछे की वैदिकता को क्यों नहीं स्वीकार करते। जब गंगा में नहाने से मोक्ष होता है तो फिर जिसकी जटाओ से गंगा निकली है वो शिव भी होता है। और शिव है तो उसकी काशी भी होती है। तो फिर उस पर मंदिर क्यों नहीं होता?

  • मित्रो, गला फट गया हज, अमरनाथ, सब्सिडी, मदरसों की दोरंगी नीति के खिलाफ बोलते परन्तु इन नेताओ से कोई पूछे जिस अमेरिका की तुम बीन बजाते रहते हो उसकी सारी नीतिया क्यों नहीं मानते? जो प्रोफेशनल और कंपनी डारेक्टर भारत सरकार पर हर अमेरिकी नीति का अनुसरण करने का दबाव बनाते है वो इस सरकार को संसद सत्र अमेरिका स्टाइल में वैदिक मंत्रो से क्यों नहीं करने को कहते? अमेरिका तो पराये हिन्दू धर्मं को अपनाने के लिए उत्सुक हैं और हम अपने धरम को अपनाने की नक़ल भी नहीं कर पर रहे।

  • ओ कोर्पोरेट के धन्ना सेठो, तिरुपति पर करोडो चढाने वालो, वैष्णो देवी पर लंगर करवाने वालो, सावन में शिव भक्तो को भंडारे करवाने वालो, अपने कार्यालय में गणेश जी की मूर्ति रखने वालो। जब तुम सब कुछ मानते हो तो उसको राष्टीय स्तर पर, सामूहिकता में क्यों नहीं स्वीकारते? क्यों इस प्रकार का स्वांग करते हो? क्यों नहीं ऑफिस में राम राम कह सकते? क्यों देश के सेकुलर नेता अपनी सीट बचाने के लिए देवी देवताओ के चक्कर लगाते है और जीतने के बाद उसी राम को नकारते है जिसके की चरणों में अभी अभी लोटे लोटे फिर रहे थे । यह किस प्रकार की भीरुता और ढकोसला है। जब तुम सभी व्यक्तिगत तौर पर भगवान् को मानते हो। जिसके की तुम्हारे हाथो पर बंधी वो डोरी चुगली करती है। अपने ऊपर आते हर दुख से बचने के लिए भगवान् के हर जगह माथा टेकते हो। तो फिर २६ जनवरी के या १५ अगस्त के दिन लाल किले से जय श्री राम और हर हर महादेव का नारा क्यों नहीं? एसा क्या डर है जिसकी हमे जानकारी नहीं जो तुम्हे अपने हिन्दू संस्कार को सामूहिक रूप से प्रर्दशित करने से रोकता है? वो कौन सी शक्ति है जो तुम्हे झूठा जीवन जीने के लिए प्ररित करती है?

  • ए़सी क्या बात है की जिस लालू यादव को सपने में भगवान् शंकर आते तो है और बताया भी जाता है परन्तु जब काशी में मंदिर की बात आती है तो हलक में सहारा मरुस्थल का सुखा पड़ जाता है। वो मुलायम जो अखाडे में बजरंगबली की शपथ खाता हैं राम मंदिर के नाम पर दस्तावर हो जाता है।

  • मित्रो वो कौन सी शक्ति है जो १०० करोड़ वोट की परवाह न करने से रोकती है? परन्तु १० करोड़ के लिए शीर्ष शासन। ए़सी कौनसी शक्ति है जो आई आई टी और कैट की परीक्षा देते तो हर भगवान् के चक्कर लगा लेंगे परन्तु मंदिर की बात आते ही राम सेवको को हिकारत की निगहाओ से देखेंगे। एसा क्यां हैं उन अभिनेताओ और अभिनेत्रियों में जो शुक्रवार को पिक्चर रिलीस होने से पहले सिद्दि विनायक की चोखट पर जाएँगी और इन वैदिक अरध्यो के समाज में समानजनक स्थिति को तुंरत राजनीती कह कर पल्ला झाड़ लेंगे। जब फैक्ट्री या कंपनी की नीव के वक्त पूजा हो सकती तो राष्ट्र के लिए पूजा क्यों नहीं?

  • बड़ा प्रशन इस दोहरे चरित्र को जीने के पीछे कारण जानने का है। की वो कौनसे कारण हैं जो सच को सच बोलने से रोकता है। भगवान् को भगवान् कहने से रोकता है। १०० करोड़ हिन्दुओ के देश में अपने अरध्यो के नाम से संसद, लालकिले या इंडिया गेट पर एक ध्वनि में सामूहिक रूप से श्रद्धा और भक्ति से "जय श्री राम" और "हर हर महादेव" को कहने से रोकता है। जब सरहद पर सैनिक हर हर महादेव और जय श्री राम के नारे लगा सकते है तो मैं गणतंत्र दिवस पर लाल किले पर क्यों नहीं? कौन मुझे अपनी सच्ची भक्ति राष्ट्र के लिए करने से रोकता है? जब मैं अपनी भलाई के लिए अपने परिवार के साथ अपने ग्रहप्रवेश हवन या यज्ञ से कर सकता हूँ अपना और अपने बच्चो का जन्मदिन सुबह मंदिर जा कर या घर हवन कर कर मनाता हूँ (इन सभी सेकुलर नेताओ की तरेह) तो इन ही नेताओ के साथ देश का जन्मदिन क्यों नहीं मना सकता? इन की "न" के स्वांग के पीछे क्या कारण है?


और जब मैं यह नहीं कर सकता तो फिर मैं इस देश को अपना समझने का स्वांग ही करूँगा। जैसा की सभी कर रहे है। और शायद इसीलिए इस देश में लोग देश की अस्मिता की कीमत पर देश को ही दाव पर लगाने से नहीं हिचकते। जब लोग अपनी आत्मा को अलग कर के देश से प्यार का स्वांग करेंगे तो देश का यह ही हाल होगा जो पिछले 60 वर्षो से होता आ रहा है। और सरकार जबरदस्ती झूठा देशभक्ति का पाठ पढ़ा रही है। यदि यह न होता तो सरकार अभी तक परम पूजनीय प्रात: स्मरणय , महान देश भक्त वीर सावरकर के नाम पर एक छोटे से पुल के नामकरण पर करोड़ हिन्दुओ को अपमानित न करती। मुझे नहीं पता फिर कैसे देश के लोगो में देशप्रेम की हूक उठेगी। अब तो स्वांग बंद करो।

11 comments:

  1. बेहतरीन… उम्दा… उत्तम…

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  2. हे राम,तुम कौन हो,
    एक कवि की कल्पना,
    या इस देश के दुर्भाग्य की अल्पना,
    कौन हो तुम प्रमाण चाहिये,
    तुम्हारे होने का सूक्ष्म ही सही,
    इतिहास में कुछ परिमाण चाहिये,
    ऐतिहासिक प्रमाणों के बिना हम कुछ भी नहीं मानेंगे,
    यदि इतिहास में दर्ज नहीं होगा तो अपने बाप को भी बाप नहीं मानेंगे,
    क्यों नहीं कराया अपने पैदा होने का रजिस्ट्रेशन,
    बिना मतलब में करा दिया इतना फ्रस्ट्रेशन,
    पता नहीं बाल्मीकि ने तुमको कहां से खोज लिया
    और तुलसी ने क्यों रच दिया एक ग्रन्थ,
    संभवत: साम्प्रदायिकता की भट्टी में झोंकना चाहते थे ये कवि,
    और लोकतन्त्र में गद्दी हडपना चाहते थे ये सभी,
    इसीलिये रचना कर दी राम की,
    कल्पना की उडान तो देखिये, न काज की न काम की,
    बापू तुम्हें भी कोई और नहीं मिला,
    और धर्मों के भी ईश्वर थे,किसी को भी चुन लेते,हमें इस पचडे में डाल कर तुम्हें क्या मिला,
    तुम तो सबसे बडे धर्म निरपेक्ष थे,
    मानवता के सापेक्ष थे,
    तुम्हें भी नहीं सूझा और कोई नाम,
    अन्तिम समय में भी बोल गये हे राम,
    और राम ने भी क्या दिया,
    राम-जन्म भूमि विवाद,
    दंगा और फसाद,
    एक पुल,
    जो है पुराना कुछ एक हजार साल,
    पुरानी चीजों को स्टोर करेंगे,तो बदबू ही पायेंगे,
    परिवर्तन संसार का नियम है,
    नया पुल बनता
    है तो कमीशन तो कम से कम मिलता है,
    राम को जपेंगे तो क्या पायेंगे,
    सारे वोट तो धर्म-निरपेक्षी ले जायेंगे,
    दूसरों के भगवान भगवान हैं, अपने तो हैं बस एक कल्पना,
    जिसके लिये क्या कलपना,
    राम कौन सा वोट दिला देंगे,
    कौन सा चुनाव जिता देंगे,
    क्या बनवा देंगे पार्षद, सांसद या विधायक,
    इसलिये हे नालायक,
    बन्द कर जपना राम का नाम,
    सुबह और शाम.

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  3. सीधा सा जवाब है...वोट के लिए...और दोष हिन्दुओं का है....

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  4. बिलकुल सच कहा आपने.............. जनाब ये तो जरूरत पड़ने पर अपने सगे बाप को भी पहचानने से इनकार कर देते हैं और जरूरत की ही खातिर गधे को भी बाप बना लेते हैं.........
    दोष हम हिन्दुओं का ही है जो हम एक वोट बैंक की तरह बर्ताव नहीं करते ............ यही कमजोरी गद्दारों को हमारे ऊपर शासन करने का मौका देती है.

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  5. ram kisi ko maare nahi nahi hatyara ram apne aap mar jayage kar kar khote kaam.

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  6. भई ये अपना देश कहाँ है...हम तो आर्य हैं न,जो कि ईरान से आकर यहाँ बसे हैं!!

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  7. NO, U r wrong. Ur belief is taught in schools which is absolutely wrong.
    INDIAN HINDU culture is Initiated & developed here in INDIA only.

    We are ARYANS Who were here on INDIAN Subcontinent for more than past 10000 years.

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  8. i have read jst 2 of ur posts n belive me u're jst awesome!!! hats off to u.. wht a perfect analysis.....yes i too believe tht all hindus are cowards n they believe in relaxing back ki PARBHU JAISA CHAENGE...... sach kahoon to prabhu ke astitva k liye hi hum hinduon ko ekjut hona hai....

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  9. जागो तो एकबार हिन्दू जागो रे , जागो तो एकबार हिन्दू जागो रे
    जगे थे जब शेर शिवाजी भागे सरे मुल्लाह काजी,
    स्थापित किया स्वराज्य जागो जागो रे ......................

    जगे थे गुरु गोबिंद प्यारे, देश पे चारो बच्चे मरे ,
    लुटा दिया परिवार जागो जागो रे ............................
    जागो तो एकबार हिन्दू जागो रे , जागो तो एकबार हिन्दू जागो रे

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