लोगो को शुबहा था सन्देह था और विश्वाश नहीं था कि कोंग्रेस सरकार २ ० ० ४ में कैसे बन सकती है . पर सबूत नहीं थे वैसे सबूत मिल भी नहीं सकते। परन्तु घटनाक्रम पर गौर करे और तथ्यो को जोड़ते चले तो कोई शुबहा रहे भी नहीं जाता।
जिस दिन वाजपयी सरकार ने परमाणु का पोखरण विस्फोट किया था उसी दिन यह मालूम हो जाना था कि यह सरकार अब नहीं रह पायगी परन्तु फिर भी येन केन प्रकण भाजपा कि सरकार १ ९ ९ ९ में बनी परन्तु उतनी टिकाऊ नहीं थी जितनी उमीद थी. कारण कुछ भी हो क्यूंकि कहने वाले तो यह भी कहते है कि १९९९ में भाजपा हिंदुत्व मुद्दे पर कम राष्ट्रवाद मुद्दे पर ज्यादा लड़ी इसीलिए उसकी उम्मीद के मुताबिक परिणाम भी नहीं आये और वो राजग के एजेंडे से बंध गई उसकी परणिति यह थी कि सरकार हिचकोले खा कर चली और हिंदुत्व जो कि भाजपा कि कोर रणनीति का हिस्सा था से पूर्णरूप से भटक गई. भटकाव न केवल राजग कि सरकार में रहा बल्कि नरेंद्र मोदी कि प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने तक भी रहा और कुछ उत्तेजित सज्जन तो अभी भी भाजपा कि राष्ट्रवाद पर लोकसभा और पांच राज्ये के विधानसभा रणनीति पर भी संशित दिख रहे है खैर परिणाम पांच राजयो के आने में कुछ ही दिन है वो भी पता चल जायेगा। अंतरराष्ट्रीय हाथ दो स्तर पर दीखता है एक राजग के अंदर और दूसरा भाजपा के विरोध गठजोड़ में.
कोई कारण नहीं जो राजग कि बैठी बिठाई सरकार को "कंधार अपहरण " काण्ड में फंसाया गया. जिस तत्परता और राष्ट्रवादी तत्व को अक्षुण रखते इसका हल निकाला जाना था वो नहीं निकला और भाजपा कि छवि ध्वस्त हो गयी बाकी बची सरकार ने तो कार्यकाल पूरा किया. उस के बाद राम मंदिर पर सरकार का रुख एक दम विपरीत था और उसको एक अंधेर युग में धकेलने के लिए काफी था. अब जो राजग के अंदर भाजपा कि विरुद्ध साजिश कि बात है उसे कंधार काण्ड के प्रकरण पर अंदरूनी विचार विमर्श से समझा जा सकता है जो कि विश्वसनीयता से अभी बहार नहीं आया. खैर आज जो भाजपा है वो शिव सेना और अकाली दल के साथ है तो वो साजिश वाले तत्व तो अभी बहार ही है.
कंधार काण्ड पहला ऐसा काण्ड था जिस पर अंतराष्ट्रीय शक्तिओ का हाथ स्पष्ट दीखता है. पहले तो इस काण्ड को करने का कोई उद्देश्य स्पष्ट नहीं था अब मान भी लिया जाये कि भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार थी इसलिए यह हुआ परन्तु भाजपा नीत इस सरकार ने तो कोई भी कृत्ये इस्लामिक शक्तियो को उत्तेजित करने वाला कोई किया था नहीं फिर भी इस साजिश कि रचना हुई, साजिश इतनी गहरी थी कि अपहरण काठमांडू नेपाल से कराया गया जिस से नेपाल भारत के रिश्तो को प्रभावित किया जाये जो हुए भी फिर उन्ही को कुछ कुछ आधार बना कर नेपाल से कोंग्रेस - वाम यूपीए सरकार में पहले राजशाही ख़तम कि गई और फिर नेपाल हिन्दू राष्ट्र को झुनझुना लोकतंत्र बनायागया जो कि इस्लामिक और क्रिश्चन शक्तिओ कि हाथो कि कटपुतली बन सके. कंधार काण्ड को भाजपा के विरुद्ध पहले रचा गया, फिर उसको भाजपा कि घोषित नीति के अनुरूप हल नहीं होने दिया, टीवी और अन्य मीडिया के माध्यमो से सरकार पर गैर जरुरी दबाव बनाया गया, विदेशी सरकारो ने जानबूझ का भाजपा सरकार को सहयोग नहीं किया। और फिर सरकार के भारतीय नागरिको कि जान बचाने के बावजूद उसको मीडिया में सरकार के नकारेपन के रूप में प्रचारित कर उस समये के विपक्ष को प्रोत्साहित करने में किया गया. विदेशी शक्तिया और देश द्रोही शक्तिया भाजपा के देश को परमाणु विस्फोट के प्रतिक्रिया वश लगाये गए अंतराष्ट्रीय प्रतिबंधितो के बावजूद सुचारु रूप से आर्थिक स्थिति मजबूत करने को हतोउत्साहित किया गया और भाजपा कि सरकार को परेशान करने का कोई अवसर नहीं छोड़ा। और यह दुरभिसंधि देशद्रोही शक्तिओ और अंतराष्ट्रीय शक्तिओ के बीच थी. जिसकी झलक भाजपा सरकार के विरुद्ध झूठे स्टिग ओप्रशन किये गए जिसमे एक भाजपा अध्यक्ष को फ़साने के लिए भी था. सरकार को मीडिया कि डर्टी ट्रिक्स से विपक्ष को तर्क के हथियार दिए गए जिस से विपक्ष विशेष रूप से कोंग्रेस और वामदल सरकार को देश कि जनता के बीच बदनाम कर सके और यह २००४ तक मुसलसल चलता रहा. यह ही वो मीडिया था जिसका आज गोआ के सेक्स काण्ड में कच्चा चिटठा खुला है. यह ही वो लोग है जिनका राडिआ टेप में जिक्र किया गया है, यह ही वो मीडिया और प्रबुद्ध वर्ग है जिसका अमेरिका में पाकिस्तानी एजेंट सैयद गुलाम नबी फाई के मेजबान बन बिरियानी उड़ाने वालो में नाम थे. इसी देश द्रोही तत्वो और अंतराष्ट्रीय दुरभिसंधि के जनक मीडिया , तथाकथित प्रबुद्ध वर्ग (जो टीवी चैनल पर भाजपा और संघ के विरुद्ध प्रवचन करता था ) देशी नेताओ, बिके हुए टीवी पत्रकार और मीडिया हाउस ने संघ और भाजपा के विरुद्ध विषवमन किया। राजग के वो तत्व भी इसमें सहयक रहे जिनको राष्ट्रवादी और हिन्दू विरोधी प्रोत्साहन का पारितोषिक मिलता रहा उनको भी मीडिया से विशेष दुलार और सम्मान मिलता रहा है.
दूसरा ट्विस्ट जब आया जब नेपाल को हिन्दू राष्ट्र से पदचालित करना था. इसी वाम - कोंग्रेसी - संघ विरोधी जमात ने इस्लामिक और ईसाई घनघोरवादिओं से मिलकर नेपाल और भारत के सम्बन्धो में खटास डाल डाल कर झूठी धर्मनिरपेक्षता का लड्डू थमाया। जिस का नेपाली जनता आज तक हजम नहीं कर पाई. वैसे यह उपहार भारत सरकार ने चीन को दिया था. ऐसा क्या कारण है कि २००४ में दो धुर विरोधी पार्टियो को एक प्लेटफार्म पर लाकर सरकार ही बना दी वो चुम्बक बिना विदेश हस्तक्षेप के नहीं बनायीं जा सकती थी तो यूपीए कि प्रथम सरकार ने नेपाल इनको गिफ्ट सरूप दिया और श्री लंका को भी लगभग इनकी प्लेट में सजा कर दिया यह दूसरा सबूत है देश्द्रोहिओं और विदेशी शक्तियो के सम्बन्धो का वैसे टेढ़ी नजर तो भूटान और बांग्लादेश पर भी थी पर भला हो कुछ विशषेज्ञ लोगो का जिनको भारतपरस्ती कि बीमारी थी जिनकी वजह से यह सम्भव हो न सका.
२००४ के बाद जब भाजपा विपक्ष में आई तो इस दुरभिसंधि ने यह निर्णय किया कि कम से कम अगले २० साल तो भाजपा का इस देश में कोई नामलेवा न ही रहे वो तो भला हो नरेंद्र भाई मोदी और बाबा राम देव का जिनके कुछ एक साहसिक कारनामो से देश प्रेमी लोगो ने देश हित में कुछ बाबुओ, मीडिया वालो को संघटित करने का कार्ये किया अन्यथा सोनिए गांधी और टीम तो जवाबदेहि कि किसी भी जिम्मेदारी में है ही नहीं थी बस चार पांच महीने के अंतराल पर सोनिए गांधी मीडिया को एक दो टुकड़े फैंक देती और बेचारे कथित मीडिया के ढोल दिन रात उसी को बजाते और विश्लेषण करते रहते थे. आज जो मीडिया नरेंदर मोदी कि एक एक तथ्यो कि धज्जिया उड़ाती है, उनके देशी भाषा प्रेम का मजाक उड़ाती है, उनके हिज्जों के ऊपर टिपण्णी करती है, वो मीडिया के भेड़िए तो सोनिए गांधी के पल्लू और साडी पर सम्पादकीय लिख देते थे बेचारो को आज घी नहीं हजम हो रहा है.
फिर मीडिया ने बजरंग दल और अन्य हिन्दू संघटनो कि सीडी बना बना कर लोगो का न्यूज़ चैनल पर पुरे पांच साल मनोरंजन किया। आज मीडिया के भाडू और कोंग्रेसी मोदी के मात्र हाथ के पंजे को खूनी पंजा कहने पर मरोड़ो कि शिकायत कर रहे है और धार्मिक - सामाजिक भावना भड़काने का दोषी बता रहे है इन्ही मीडिया वालो ने २००९ के चुनाव में कोंग्रेस को मुस्लिमो का एक मुश्त वोट डलवाने के लिए वरुण गांधी कि "हाथ काटने " कि कथित और झूठी सीडी चुनाव भर चलाई जब तक कि कोंग्रेस कि मतपेटिआ भर नहीं गई. यह है इनका दोहरा चरित्र।
यह अमूमन माना जाता है कि मीडिया सरकार कि खिचाई करती है परन्तु भारत देश कि बिकी मीडिया इस नीति को नहीं मानती वो तो बेचारी और असह्य पड़ी भाजपा के पीछे ही पड़ी रही उसने राहुल गांधी के अमेठी काण्ड पर कोई रूचि नहीं ली जबकि उसपर कोंग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवी ने अमेरिका में ऍफ़ आई आर तक तर्ज करा दी थी परन्तु भारत कि द्रोही मीडिया ने संज्ञान लेना या एक लाइन लिखनी भी उचित नहीं समझी और आज नरेंदर मोदी कि सीडी कि खोज कर रही है. वो समय राहुल महाजन बनाम राहुल गांधी बहुत चलाया। एक बेचारे असह्य महाजन परिवार कि इज्जत को सड़क पर तब तक तार तार नहीं करना छोड़ा तब तक वो मरणसन्न न हो गई. इस मीडिया ने कभी राज दीप सरदेसाई से नहीं पूछा कि क्यूँ तो आपने संसद घूस काण्ड का स्टिंग किया और क्यूँ जनता को आज तक भी सच नहीं बताया। जो मीडिया तहलका कि वाह वहा करता रहा और लोकतंत्र कि दुहाई देता रहा उस से कभी नहीं पूछा कि जब लोकतंत्र देश का दाव पर था तब यह मीडिया के सुरमा देश को सच क्यूँ नहीं बता और दिखा पाये। जो संजय जोशी और नरेंद्र मोदी कि सीडी में रूचि लेते रहे उसने अमर सिंह कि सीडी में रूचि क्यूँ नहीं ली। मैं तो वारा जाऊ मीडिया कि इस सेलेक्टिविटी पर. तब हमें दिखाते रहे यह आरुषि हत्याकांड, देश के लोकतंत्र का हत्याकांड क्यूँ नहीं दिखाया तब। क्यूंकि तब भी देश द्रोही और विदेशी शक्तिओ में यह ही समझदारी थी कि नुक्लियर समझोता करने तक भाजपा को इतना कमजोर कर दो और लोगो कि नजरो में इतना गिरा दो कि उसका विरोध भी हास्यप्रद लगे और ठीक यह ही इन शक्तिओ ने मिलकर किया। और फिर इनाम के तौर पर "सिंह इस किंग " २००९ में बन कर आये श्री मनमोहन सिंह जी जिनको ५ साल देश पर राज करने पर भी यह विश्वास नहीं था कि ५५२ लोकसभा में से किसी एक पर भी खड़े हो कर जीत सके और फिर दोबारा राजयसभा के पिछले दरवाजे से ही देश के प्रधानमंत्री बने नहीं मनोनीत होये। यह है इन देशी और विदेशी शक्तिओ का सच जिस ने भाजपा कि मेहनत, भारतीयो के विश्वास और पूर्व राष्ट्रपति कलाम के २०२० के सपने को चूर चूर किया।
कहाँ तो देश २००० में २०२० तक सुपर पवार बन रहा था और कहाँ अब देश पिछड़े देशो कि जमात में धक्के खा रहा है। इन दस सालो में देशद्रोही शक्तिया और विदेशी ताकत जो आज भारत को कंगाल बनाने में सफल हुई है इन्होने बिना किसी लोगो के ताकत के केवल हिन्दुओ / भारत कि जनता को बांटकर ईस्ट इंडिया कंपनी का कृत्य ही दोहराया है। क्या आज भारत महशक्तिओ के आँखों में आँखे डाल कर बात कर सकता है जैसे कि वो पोखरण विस्फोट के बाद करता था।
देश को याद है कि कुछ एक न्याय के पुजारी भी देश को झटका देने में कामयाब रहे जिन्होंने राहुल गांधी कि एक जनहित याचिका दायर करने पर अमेठी काण्ड कि सच्चाई पर से पर्दा उठाने के लिए याचिका कर्ता पर ५० लाख का हर्जाना लगा दिया। मारेंगे भी और रोने भी नहीं देंगे।
धर्मनिरपेक्षता के आवरण में जो भी पाप किये उनका तरुण तेजपाल, बरखा दत्त, प्रभु चावला, राजदीप सरदेसाई जैसे पत्रकारो को कम से कम सच तो जनता को बताना ही पड़ेगा। इस धर्मनिरपेक्षता के आवरण में राजेंदर यादव जैसे के पाप भी सड़क पर फूटे वो अलग बात है कि वो दुनिया से विदा हो गए पर सच तो मुहं बाय जनता के सामने खड़ा है जो मीर जाफर और जय चंद को तलाश रहा है।
राजनैतिक लोगो का विभ्याचार का जवाब चाहिए वो कोई जज हो, आंध्र भवन को रंगरालिओ का अड्डा बनाने वाले हो, सुप्रीम कोर्ट के चेंबर में मनु सिंघवी हो को जवाब तो देना होगा, क्या यह लोग निर्भय काण्ड वाले प्रदर्शनो का इन्तजार कर रहे है या विपक्ष कि सीडी ढूंढ कर अपने रंग में पोत कर पाकसाफ होने कि कलाबाजी करते रहेंगे।
क्या लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के इतिहास को भूल गए राजा - महाराजा राज दरबारिओ, जमींदारो और उचे रसूख के लोगो के चारित्रिक दोषो से क्या नहीं पाया उस कंपनी ने जो आज विदेशी शक्तिअ नहीं पा रही है। दुरभिसंधि का यह पाप आज भी किया जा रहा है फर्क सिर्फ इतना है कि कलाकार बदल गए और "आप" इस राजनेतिक मैदान में कूद गए। मित्रो देश इसी ईमानदार शख्सियत के पापो का भुगतान कर रहा है आखिर कब तक व्यक्तिगत ढकोसला देश पर भारी पड़ता रहेगा। देश आज राष्ट्रवादी गुजरात के मख्यमंत्री कि बात नहीं मानता तो निश्चित रूप से कुछ एक दशक कोई भी देश को बचाने का साहस नहीं करेगा और मानवता का यह पालना केवल बाकी देशो कि विकसित होने कि गाथा का दर्शक भर बना रहेगा। और हिन्दू कुंठित हो कर एक युग का इन्तजार करेगा शायद भगवान् कल्कि का।
तो क्या अब इस दुरभिसंधि टूटने का वक्त आ गया या अभी और इन्तजार करना पड़ेगा ?????????
बहुत बहुत बढ़िया लेख है मित्र.
ReplyDeleteबेहतरीन. इसको मैने अपने फेसबुक से शेयर किया है.
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