हिन्दू! तू ही मानव हे बाकि बनने है बाकि !!!!!!!!!!!!!
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तो दोस्तों अपने आस पास की समस्याओ पर गौर फरमाओ तो देखोगे की कुछ एक समस्या ए़सी है जिनकी जड़ में हिंदू विरोध ही है। जैसे की समस्या ग्लोबल वार्मिंग की ही ले लो। हिंदू सनातन काल से पेड़, नदी, सरोवर, और असंख्य प्राकर्तिक चीजो की पूजा करता आ रहा है। परन्तु उसकी हंसी उडाई जाती रही है. मैं आज दावे और गर्व के साथ कहेता हूँ की दुनिया के जितने भी समुदाये है यह जान ले की जान बचानी है तो हिन्दू धर्म को समझो. और एक बात मैं उन नाटकशाला के कलाबाजो को भी बता देना चाहता हूँ जो हर दम हिन्दू के विरोध में अपनी उर्जा का विनाश करते रहते है की हिन्दू ही एक मात्र धरम है बाकि सभी पंथ है. सुप्रीम कोर्ट की जो वियाख्या हिन्दू धर्म के बारे में है वो ही उचित है। बाकी सभी पंथो (इसलाम, क्रिश्चेन आदि ) को हिन्दू पद्वति अपनानी चाहिए और अपने जो भी पंथ की पूजा उपासना है उसे आप अपनाते रहो तभी मानवता बची रहेगी अन्यथा आप समझे की मानवता का अंत आ चूका है.मेरा आग्रह उन सभी विभिन्न पंथो के अनुयियो और पंथ गुरुओ से है की सभी विश्व में हिन्दू पद्वति पनाते हुए अपने अपने पंथ की पूजा विधाओ और परम्पराओ का पालन करे. और इसको हिन्दू धर्म की संकीर्ण व्याखा से न जोड़े.
- अब आप देखिये हिंदुस्तान में ही कितने ही पंथ रहेते है परन्तु वो सभी हिन्दू धर्म के वृहद वृक्ष के नीचे बड़े प्रेम और उदार तरीके से रह रहे है। अब आप सोचो की यदि विश्व में इसलाम और क्रिश्चन जो की दो मुख्य पंथ है भी हिंदुत्व पद्वति अपना ले तो देखिय विश्व में कितना बड़ा मानवता का विकास होगा। और मित्रो आज से ५००० वर्ष एअसे ही संसार था भी।देखो दोस्तों कुछ एक काल खंड में कुछ एक समुदायों पर बड़ा भरी धन आगया और उस धन से उन लोगो ने बड़े ही क्रूर तरीके से अपनी स्वार्थ और संकीर्ण मानसिकता से एक पंथ विशेष को ही जब्रदास्त्री थोपा है और थोपे जा रहे है. अभी कुछ एक शताब्दियो से क्रिश्चन पंथ पर थोडा धन आगया तो उसने पुरे विश्व का स्वरूप ही बदल दिया. फिर पेट्रोल और अन्य तैलिये उत्पादों से इस्लाम पर पैसा आगया तो उसने भी अपने मध्यकालीन तरीके से अपना विस्तार शुरू कर दिया और जब दोनों ही पंथो के पास सामान पैसा आगया तो एक होड़ शुरू होगई. दोनों ही पंथो ने हिन्दू पद्धति त्याग दी और अपने पंथो को धर्म का दर्जा देदिया. और दुर्भाग्य से सभी शिक्षा (अंग्रेजी और आधुनिक) पर अमूमन क्रिश्चन पंथ का ही कब्जा है तो जिस चश्मे से उसने देखा और दुनिया को बताया तो सारी दुनिया ने पैसे के और बहुबल की वजह से उसे स्वीकार किया और माना है. और इधर हिन्दू धर्म के संस्कृत और अन्य भाषाओ में लिखे ग्रंथो को न समझने के और भारत - हिन्दू के कमजोर होने से उसमे किसीने रूचि भी नहीं ली फिर तो सभी ने पश्चिमी सिदान्त को माना. हिन्दू धर्म को पिछड़ा मान उसी रूप में व्याख्या शुरू कर दी. आप इस बात को कुछ इस प्रकार से समझे की आज से २0-३० साल पहले सभी लोगो अमरीकी बाजारवाद और रुसी समाजवाद दोनों एक बराबर थे और कुछ एक देश एअसा मानते थे तो कुछ एक वैसा परन्तु यह कोई नहीं कहेता था की यह गलत है और वो सही सब की आर्थिक प्रगति के पेरामीटर पर उस सिदान्त को अच्छा और बुरा माना जाता था.
- और दोनों ही एक दुसरे को गलत ठहराने में लगे रहेते थे. परन्तु आज जब अमेरिका एक छत्र विश्व पर काबिज है तो अब रुसी अर्थशास्त्र पर लोग हंसते है और उसकी खिल्ली भी उडाई जाती है. मेरा कहना है की जिसके हाथ में लठ होता है बात उसी की ठीक है भाई, बड़ी मछली छोटी को निगलती ही है, शेर हिरन का शिकार करता ही है। सो कुछ इसी प्रकार का हिन्दू धर्म के साथ भी हो रहा है.
- आज जब मैं बड़े बड़े वाम विचारो के घोषित विद्वानों को नदी, तालाब बचाने के लिए प्रेरणादायक भाषण देते और काम करते देखता हूँ तो बड़ी हंसी भी आती है और सुख का भी अनुभव होता है. यह बेचारे विद्वान् बस अपनी झेप ही मिटाते है और यमुना और गंगा की सफाई में जुटे रहते है. अरे हम हिन्दू उसको माँ मानते है और उसकी पवित्रता अक्षुण रखते है और आप उसकी पहेले हंसी उडाते रहे और अब प्राणों को संकट में देख जुट गए उसकी रक्षा में. चलो जो हो सो हो परन्तु आपको देर सबेर हम हिन्दुओ की पद्वति ही माननी ही पड़ेगी. और इस पर मुझे ख़ुशी नहीं की आप लोगो को हम हिन्दुओ की विद्वत्ता माननी ही पड़ी और न अंहकार ही है बस एक ही बात है की चलो इस बहाने ही सही परन्तु शुरुवात तो हुई। धीरे धीरे आप लोग हमारी सनातन संस्कृति और विचारो को मानोगे ही।
- अभी आपको हमारी भाषा संस्कृत की विज्ञानीकता भी स्वीकार करनी है और फिर अभी सेकुलर भाइओ ने ध्यान और योग तो अपना ही लिया है। दोस्तों यह तो शुरुवात है. हिन्दू धर्म और बाकी पंथो में अंतर इतना ही है की यह पंथ पैसे और ताकत के बल पर अपनी अस्पष्ट सोच को बाकि बचे हिन्दू धर्मावलंबियो पर थोपना चाहते थे.
- हिन्दू स्वेछा से सभी चीजो का पालन करता है चाहे वो नदियो की पूजा हो या पहाडो की चाहे वो शाकाहार हो या शांति का जीवन सब के पीछे अध्यात्मिक सोच है और आत्मा का परमात्मा से मिलाने की नियति है। परन्तु अन्य पंथो को अभी शाकाहार को भी मानना बाकी है और आप देखना अभी आयुर्वेद पद्वति भी आप अपनाएंगे। क्योंकि वो प्राकृतिक है और उचित भी.
- क्या आप सोचते है चीन के लोग इसी प्रकार से ही रहेंगे, नहीं गलत! जब उनका भी आर्थिक रूप से मन भर जायेगा वो भी दलाई लामा की सत्ता स्वीकार करलेंगे.
- क्योंकि अंत में तो सभी को शांति चाहिए. आप नहीं देखते पैसे से भरे अमरीकी लोग नेपाल और हिंदुस्तान के आश्रमों में पड़े हुए है वो पागलो की तरह शांति की खोज कर रहे है. यदि माइकल जैकसन इसलाम नहीं स्वीकारता तो वो भी आज किसी आश्रम से हिन्दू जीवन पद्वति सीखकर अपने को चाहे तो रिचर्ड गैर की तरह नहीं तो कैट विंसेट की तरह शांति से जीवन बीता रहा होता. क्योंकि माइकल जैकसन भी अंत में "क्या करू? " का शिकार होगया. हिन्दू जीवन पद्वति ही मनुष्य को आर्थिक चमौत्कर्ष के बाद बताती है की अब क्या आपको करना चाहिए।
- आज मुझे एक कहानी भी याद आती है. कहानी लियो टोलसटोए एक रुसी विद्वान की लिखी है. एक बार कुछ एक पादरियो का दल अपने इसाई धर्म के प्रचार प्रसार के लिए अफ्रीका के देशो के लिए रवाना हुआ. उसका मानना था की इसाईओ की आलावा बाकी सभी लोग अनपढ है और न ही उनको ईश्वर का ज्ञान और इन पादरियो का ही कर्तव्य है उन बाकि लोगो को ईश्वर प्राप्ति का ज्ञान देना. इस तरह वो एक अफ्रीका देश पहुँच गए. वहां के आदिवासी लोगो ने उनका बड़ा आदर सत्कार किया और सोचा की बड़े ही विद्वान लोग आये है. पादरियो को इतना मान मिलने के बाद उन्होंने अपने धर्म के बारे में बताना शुरू कर दिया. और लगे बाइबल का गुण गान करने. और बताने लगे की इस प्रकार इस बाइबल से प्राथना याद करके आप लोग भी हमारी तरह से ईश्वर को पा सकते हो. अब बेचारे आदिवासियो ने बाइबल रटनी शुरू कर दी. कुछ समय बिताने के बाद जब पादरियो ने देखा की अब यह लोग बाइबल पढ़ सकते है और प्रार्थना इन को याद होगई तो सोचा यह तो ईश्वर प्राप्ति का साधन जान गए अब किसी दुसरे देश में अपना प्रचार किया जाये और उनको बाइबल का ज्ञान बांटा जाये. ऐसा सोच कर वो लोग उन आदिवासियो से विदाई लेने लगे. आदिवासियो ने उन विद्वानों का धन्यवाद किया और उनको बड़े मान सम्मान के साथ विदा करने लगे. पादरी लोग अपने समुंदरी जहाज से अगले देश की यात्रा करने के लिए निकल्गाये किसी अन्य देश की ओर यह मान की उनका यहाँ आना सफल होगया और एक देश और अब बाइबल के रस्ते पर चलेगा. अभी पादरी लोग समुन्द्र में कुछ ही दूर चले थे की उनको कुछ एक पानी पर चलती परछाई नजर आई वो पादरी लोग घबराने लग गए की यह क्या हुआ. तभी वो परछाई और पास आने लगी तो देखा यह तो वो ही आदिवासी है जिनको वो बाइबल की प्रार्थना सीखा कर आय है. वो आदिवासी उनके पास हांफते - हांफते उनको प्रणाम करते है. पादरी लोग बड़े आश्चर्य से उनको देखते हुए की यह इतने लोग पानी पर धरती की ही तरह दौड़ते, बिना किसी सहयता के उनके पास आ कैसे गए. अपने सांसो पर काबू करते आदिवासी पादरियो से अनुरोध करते है की आप विद्वान लोग जो बाइबल की प्रार्थना उनको सीखा कर आय है वो तो यह भूल गय उनको वो प्रार्थना दुबारा सीखा दी जाय. अब पादरी अपने सूखे गले में तरावट लाते हुए बड़े आश्चर्य से कहेते है " अरे आप लोग वो बाद में सीखना पहेले यह बताओ की तुम बिना सहारे के धरती के सामान इस समुन्द्र के पानी पर चल कैसे रहे हो" आदिवासी बोलते है यह तो बड़ा आसान है आपके हमारे देश आने से पहेले हम जिस प्रकार आसमान की तरफ मुह कर कर बात करते थे हमने वैसे ही आसमान की तरफ मुह किया और बोले की हे आसमान! वो विद्वान लोग आय थे हमे कुछ अच्छी प्रार्थनाए सीखा कर गए थे और हम अनपढ लोग भूल गए. हम वो सीखना चाहते है परन्तु हमारे पास न ही कोई नौका है और न ही कोई साधन और अभी वो पादरी लोग ज्यादा दूर भी नहीं गए होंगे. बस ऐसा कह कर हम समुन्द्र के तरफ दौड़ने लगे और देखते क्यां है की हम समुन्द्र के पानी पर चलने लगे. और आप लोगो के पास आगये. बस अब क्या था पादरी लोग उनके आगे हाथ जोड़ते है की आप लोग महान हो आप को जो प्राप्त करने के लिए हम प्रार्थनाए सीखा कर आय है आप तो उस से भी बहुत अधिक आगे हो. प्रभु आप लोगो को यह सिखने की जरुरत नहीं है। आप लोग तो इतने सादे और भले लोग हो और आप ने तो हम से पहेले ही परमात्मा के सामान शक्ति को पा रखा है। आप जाइए और अपने पहली वाली पूजा ही कीजिय और हमे भी सीखाइए. और इस प्रकार उन पादरियो का घमंड भी चूर चूर हो जाता है की परमात्मा पाने का तरीका उनको ही आता है.
- तो मित्रो हमारा भी यह ही हाल है हर प्रगति और आधुनिकता हिन्दुओ को आती है परन्तु इन थोथे और अल्पज्ञानी लोगो को हमे ही समझने में समय लग रहा है। जो बहुत गहराई में गय है उनको मालूम है की अल्बर्ट अंसटाईन जो की बहुत बड़ा वैज्ञानिक था को सारा ज्ञान भारतीये ऋषियो की पुस्तकों से ही मिला था. अब हर कोई तो वो पादरी नहीं जो अपनी भूल स्वीकार करेगा परन्तु एक दिन आयेगा जब इनलोगों को उन पादरियो की तरह अपनी गलती का अह्साहस होगा. तब तक आप अपने रास्ते और मैं अपने।
त्यागी भाई ... आपके तर्क मैं दम है |
ReplyDeleteकहानी बहुत अच्छी लगी |
त्यागी जी, मैं आपसे सौ फीसदी सहमत हूँ. हिंदुत्व को धर्म कहकर जो विवाद पैदा किया जा रहा है वह भ्रम और अज्ञानता के कारण ही है. दरअसल हिन्दू कोई धर्म नहीं वरन एक जीवन दर्शन है जो हमें प्राकृतिक जीवन पद्यति सिखाता है. हिन्दुओं के जिन ८४ करोड़ देवी-देवताओं का मजाक उड़ाया जाता है, उनमे से प्रत्येक पशु-पक्षी, नदी, वायु या किसी अन्य प्राकृतिक अवयव का प्रतीक है. हिन्दू धर्म प्रकृति से प्रेम करना, उससे जीवन प्राप्त करना और बदले में उसे जीवन देना सिखाता है. इन्ही विश्वाशों के कारण भारत की अकूत प्राकृतिक सम्पदा की हजारों सालों तक रक्षा हो सकी परन्तु जब से हमने इस जीवन पद्यति से मुंह मोड़ लिया है प्राकृतिक आपदाओं से देश ग्रस्त है. बाढ़, सूखा, महामारियां, खाने -पीने की वस्तुओं में जहरीले पदार्थों का समावेश, जल स्रोतों का सूखना, जमीन का धंसना आदि समस्याएं अचानक नहीं प्रारंभ हुई है परन्तु इसका उपाय हिन्दू जीवन पद्यति में ही है. इसक मजाक उडाने के बजाये यदि आधुनिक समाज इसके पीछे छिपे हुए गहन दर्शन को समझे तो बेहतर होगा अन्यथा मानव सभ्यता को समाप्त होने में शायद कुछ दशक या उससे भी कम समय ही लगेगा.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है मित्र!
ReplyDeleteकहानी बहुत पसंद आई!!
bahut achchhi post hai.
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