Tuesday, October 19, 2010

संघ ! स्वयंसेवक ! हिन्दू ! क्रांति ! विश्व और रोड मेप !!!!!!!!!!!

विजयादशमी की शुभकामनाये 
"भारत राष्ट्र" एक बहुत ही पुरातन सोच है. पश्चिमी देशो की खींची  लकीरों से बढ़ कर है यह जिसको हम 'भारत राष्ट्र" कहेते है. परन्तु यह समझना उतना ही मुश्किल है जितना "हिन्दू धर्म" को  समझना और जैसे की नासमझबेवकूफ और तथाकथित बुद्धिजीवी "हिन्दू धर्म" को अन्य धर्मो के समकक्ष मानकर उसी चश्मे से "हिन्दुओ" को परिभाषित करते आ रहे है. जो की निश्चित रूप से गलत है. असल में विश्व भर में हिन्दू जितना प्रीताडित है उतना कोई और या कोई कौम नहीं है. आज बड़े ही शुभ अवसर पर इसको विस्तार से समझते है की हिन्दू गुलाम क्यूँ हैक्यूँ बना और कैसे छुटकारा मिले. अभी गुलाम बोला तो कई आदमी इसी पर प्रशन चिन्ह लगा देंगे. मतलब आप आज भी क्यूँ गुलाम बोल रहे हो. मेरा मानना यह है की चाहे भारतवर्ष में कोई कितना भी धनाड्य हो वो भी असल में गुलाम ही है. अब वो कोई औद्योगिक घराना ही क्यूँ न हो जो हिंदुस्तान की जनता के "पैसे" को हमारे धुर विरोधी हॉवर्ड स्कूल को देता हो जो की भारत विरोधी अभियान चलाते है. यह हिंदुस्तान के गुलाम मानसिकता का ही परिचायक है. इस गुलामी को राजनैतिकआर्थिक और सामाजिक तीनो परिपेक्ष में समझना पड़ेगा. और मेरा अपना मत यह है की राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से बड़ा हिन्दू रक्षक और भारत रक्षक इस धरती पर कोई नहीं है. इस को कुछ ऐसा समझा जाये जैसे मनु महाराज ने मानव बीज सुरक्षित रखा था बाकी जीव और वनस्पति बीजो के साथसंघ भी उसी प्रकार से हिन्दू बीज को इस वैश्विक आंधी में सुरक्षित रखे है. इसके लिए संघ का हिन्दू धर्म और भारतवर्ष पर कोटि कोटि उपकार है और मेरा नमन उन कोटि स्वयं सेवको को जिन्होंने हिन्दू और भारत के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है. और मेरा निश्चित ही मानना है की भारतवर्ष यदि (यदि) विश्वगुरु बनता है तो वो संघ के ही नेत्रित्व में संभव है बाकि सब ढकोसलाराजनीती और आडम्बर है. परन्तु हर चीज की एक सीमा होती है उसी प्रकार संघ भी इस से अछुता नहीं है उसकी भी एक सीमा है. इसको कुछ इस प्रकार से कहूँगा जैसे मनेजमेंट में होता है "प्रोडक्ट लाइफ साइकल" उसमे प्रथम अवस्था "प्रोडक्ट का विकास"दूसरा उसका "उभार"तीसरा "पराभाव" और चौथा "गिरावट" है. और यह ध्रुव सत्य भी है. जो पैदा होता है वो मिटता भी है, यह एक भारतीय और हिन्दू दर्शन है. और उसी प्रकार से कंपनी के अन्दर भी उसके प्रोडक्ट के साथ होता है, परन्तु समझदार कंपनीया क्या करती है की तीसरी स्टेज "पराभाव" को ही लम्बा खींच देती है और उसकी गिरावट को होने ही नहीं देती. इसी प्रकार संघ को भी अपनी विचारधारा के मामले में कुछ बहुत ही गहन मुद्दों पर विचार करना होगा. और निश्चित रूप से विचार गंभीर और स्वार्थ से परे होना होगा. तभी  ८५ साल के संघ के विस्तार को नया आयाम दिया जा सकेगा. क्यूंकि जैसे मेने ऊपर जिक्र किया है की संघ को सुरक्षित रखना हिन्दू धर्म और भारत राष्ट्र को सुरक्षित रखना होगा. कुछ गंभीर प्रशन है जिन पर संघ को विचार करना होगा. 
वैसे एक बात कहूँ की परम आदरनिये श्री मोहन भगवत जी ने इन प्रश्नों का उत्तर खोजने की शुरुवात कर भी दी है मुझे ऐसा प्रतीत होता है. परन्तु यह शुरुवात इन प्रश्नो के परिपेक्ष में हो तो "परम वैभव" को पाया जा सकता है. आज संघ को स्थापित हुए ८५ वर्ष हो गए है परन्तु ऐसी क्या बात है की ८५ वर्षो में हमने वो नहीं पाया जिसको की हमे पा लेना चाहिए था. ऐसे कितने ही काल खंड आए जब संघ ने इन प्रश्नो को अनुतरित छोड़ दिया जबकि हम इतिहास बनाने के मुहाने पर थे. हम विगत के कुछ हिन्दू वीरो का जिक्र करते है जिन्होंने अपने जीवन काल में ही हिन्दुओ को "परम वैभव" का लक्ष्य दिलवा दिया था और वो लोग आधुनिक युग के ही है जैसे चाणक्य जीछत्रपति शिवाजी महाराज और उनका जीवन ८५ वर्ष का तो था ही नहीं जैसे की संघ का होगया और उनको भी हिन्दू को संघठित करने में दिक्कत आज से कुछ ज्यादा ही आई थी अब तो फिर भी संसाधन ज्यादा ही हैजब हिन्दुओ को इन  महापुरुष अपने जीवनकाल में वहा पंहुचा दिया था तो संघ अब तक क्यूँ नहीं पंहुचा पाया. आज एक गाँधी (महात्मा गाँधी मात्र एक व्यक्ति) ने अपने जीवन काल में ही कोंग्रेस को ६० साल तक भारत जैसे देश की सत्ता का वारिस बनवा दिया तो संघ तो उस से बहुत बड़ी चीज है. तो फिर क्यूँ संघ ही कुछ नहीं बन पाया और न ही कोई वारिस पैदा कर पाया? 
  • एक जयप्रकाश नारायण देश में क्रांति कर सकता है और संघ को उनका समर्थन करना पड़ता है और आज संघ से प्रेरित उसकी राजनेतिक शाखा (बीजेपी - संघ से प्रभावित अलग संघठन) को उनका और उनके अनुयाइयो (नितीश कुमार) का साथ देना पड़ रहा है. इसका अर्थ या तो यह है की व्यक्ति के आगे संघठन छोटा होता है या फिर डॉ. हेडगेवार जी का सिधान्त ही गलत था की उन्होंने भगवा ध्वज को गुरु बनाया ना की स्वयं अपने को और थोप देते हिन्दुओ और देश पर अपने ही परिवार का कोई वारिस या फिर हेडगेवार जी के बाद के संघचालक ही उनके लक्ष्य को समझने में और पूरा करने में असमर्थ रहे. मुद्दा यह है की देश में एक गाँधी क्रांति कर सकता हैएक जयप्रकाश क्रांति कर सकता है तो ८५ साल का संघ क्यूँ नहीं अब ८५ साल का कालखंड कोई छोटा कालखंड तो है नहींमैं अपनी छोटी से समझ से यह मानता हूँ की कहीं ना कहीं रणनीति में कोई त्रुटी है. और मेरे अनुसार त्रुटी यह है की "समाज सत्ता से बन रहा है ना की समाज से सत्ता" इस सिदान्त का ना मानना है ही संघ की सबसे बड़ी भूल है. क्योंकि हिन्दुओ को आज के समय संघटित करना "मेंडेको को तोलने" के समान है (क्षमा करे इस तुलना के लिए) इसका कारण है १२०० साल से हिन्दू ऑक्सीजन पर जी रहा है. उसको विश्वाश ही नहीं होता की उसकी विरासत सतयुगत्रेता और द्वापर में स्वर्णिम थी. उसने तो कुत्ते और बिल्ली से जीवन को ही अंगीकार कर लिया. कुछ भी कर लो इन को सत्ता ही की भाषा समझ में आती है फिर वो तुर्क होमुग़ल होअंग्रेज हो या फिर गाँधी की कोंग्रेस हो उन्ही की बात इनको समझ आती है. तो फिर संघ सत्ता पर क्यूँ दावा नहीं ठोकता और हिन्दू को सबल बनाने का बीड़ा उठता ? बहुत हो चूका समाज जोड़ने का प्रयास (क्यूंकि बहुत ही लम्बी प्रक्रिया है)इस प्रयास में ही खोट है (क्यूंकि ८५ साल में भी लक्ष्य नहीं पा पाए). ऐसा क्या है की एक मायावती जिस पर सभी दलित फ़िदा हैऔर क्यां हम नहीं जानते की संघ ने अपने सर्वोतम प्रयासों के बावजूद वो नहीं पाया जो लगाव दलितों का मायावती ने पाया. मैं तो समझता हूँ फिर दो चार मायावती ही संघ पैदा कर दे. 


इस लिए मेरा मानना है की संघ सत्ता हांसिल करे (प्रथम) फिर उसे उसके ८५ साल के बनाये संघठन का भी लाभ मिलेगा. वो पुरषार्थ व्यर्थ नहीं है क्यूंकि संघ जितना करता नहीं उतना तो यहाँ बिगाड़ने वाले है और फिर वही के वही सिफ़र (शून्य) है. संघ इस बात को जितना शीघ्र  समझ लेगा उतना ही जल्दी हिन्दुओ और देश का भला होगा. क्या हम नहीं जानते संघ के सामने ही सामने डॉ. आंबेडकर ने हिन्दू धर्म छोड़ दिया था. क्यूँ संघ ने प्रयास नहीं किया उनको हिन्दू धर्म में रखने का. ऐसे कई प्रशन के उत्तर संघ को ही देने होंगे. कोई भारत के राष्ट्रपति या कांग्रेस से नहीं पूछेगा. क्यूंकि अग्नि परीक्षा सीता ही देती है तुच्छ प्राणी तो उसकी सोच भी नहीं सकते.  
  • दूसरा बड़ा ही आलोचनात्मक रुख लेकर मुझे कहेना होगा की जो टीवी पर अपने को संघ का स्वयम सेवक बताते फिरते है उनके बच्चे संघ से विमुख क्यूँ है? गंभीर प्रशन है मित्रोएक  स्वर्गीय सज्जन जो की बीजेपी के बड़े नेता भी रहे है. वो जब संघ में दीक्षित थे और उनके विचारो से लाखो प्रभावित भी होंगे तो उनके खुद का पुत्र क्यूँ नहीं. यह ढोंग नहीं तो क्या है की आप दुनिया भर में बात तो शुचिता और नैतिकता की करते हो परन्तु अपने स्वयं के पुत्र उसके ठीक विपरीत है. ऐसा क्यूँ ? स्वर्गिया नेता जी का जिक्र इसलिए कर रहा हूँ की वो टीवी पर घोषित एक बड़े स्वयमसेवक थे और उनके पुत्र ने टीवी पर स्थान (कवरेज) मिलने पर संघ को उपहास का पात्र बनाया था. चिराग तले अँधेरा क्यूँ ? उधारण इस लिए देना पड़ रहा है की  बात वही है की संघ इतना बनाता नहीं जितना इसके विरोधी संघ के लोगो की नादानियो से संघ को नुक्सान पहुचाते है. संघ जब स्वयं सेवक के रूप में एक बीज रोपित करता है तो उस से उम्मीद करता है की वो अपने चरित्र से दुसरो को प्रभावित करे. तो क्यूँ उसके ही भाईबेटे और अन्य प्रभावित नहीं होतेमेरा प्रशन है की कहीं ना कहीं इस दीक्षा में कुछ दोष रहे गए. उन दोषों को दूर किया जाये. परन्तु ऐसा भी नहीं की सभी स्वयमसेवक ऐसे ही है मेरे जानकार की चौथी पीढ़ी है जो स्वयं सेवक है मतलब उसने अपने एक साल के पुत्र को भी शाखा में ले जाकर ध्वज प्रणाम करा कर उसकी संघ आयु की शुरुवात करा दी. पर प्रशन यह है की ऐसे कितने है ? हर चीज की शुरुवात "मैं" से होती है फिर परिवार से फिर समाज से और बाद में देश से और यह संघ की भी घोषित नीति है. संघ के आलावा जो भी स्वयं सेवक मुख्यधारा की राजनीती करते है वो कही से भी संघ के स्वयं सेवक सा आचरण नहीं रखते है. इसके ऊपर आगे चर्चा करेंगे की कैसे हो सकता है यह संभव.
  • अब आते है राजनेतिक पक्ष पर बिना किसी लाग लपेट के है की बीजेपी जब संघ को अपना सर्जनकर्ता  मानती है तो बिहार में अपनी भद्द क्यूँ पीटवा रही है. नितीश के सामने सारी बीजेपी शीर्षासन क्यूँ कर रही है? और लालू को हटाना इतना ही बड़ा एजेंडा है तो पिछले पांच साल में बिहार में बीजेपी ने अपने कौन से एजेंडे सरकार से लागू करवा लिए है ? याद रखना बीजेपी को नितीश के रूप में एक बहुत ही बड़ा झटका लगेगा. अरे बीजेपी विपक्ष में होकर भी अपने मुद्दे नितीश से नहीं मनवा पाई (राष्टीय मुद्दे) तो सत्ता में आकार कैसे कर पायेगी अब (केंद्र में) तो खोने को भी कुछ नहीं है तो फिर अपने तपे तपाये स्वयंसेवको को बीजेपी में भेज कर क्या ले रहे हो ? जब स्वयम सेवक को बीजेपी में मंत्री बन कर कुर्सी ही गर्म करनी है तो संघ क्यूँ बदनाम हो इनके कर्मो और कुकर्मो से ? आज बीजेपी लोकसभा के दो लगातार चुनाव हारने के बाद भी अपने राजग के घटक दलों को अपने (हिंदुत्व और राष्ट्रवादी) मुद्दों के बारे में समझा नहीं पाई तो एक बार फिर सत्ता में आने के बाद क्या कर लेगी? अभी तो कुछ खोने को भी नहीं और समय भी बहुत है. या फिर से ममता, समता और जयललिता वाला खेल खेलना है ? 
  • और यदि संघ भी यह सोचता है की सत्ता लेने के बाद भी अपने मुद्दों को बीजेपी से लागू नहीं करवाया जा सकता है तो फिर अभी इस पर विचार करना होगा. आजादी से पहेल गाँधी से भी लोगो को उम्मीद थी. जिस उम्मीद पर उसने आम हिन्दू को बरगला रखा था "राम राज्य" और फिर सत्ता का अंग्रेजो के हाथ से काले अंग्रेजो के हाथ में आकर उसका तकनिकी हस्तांतरण मात्र ही हो पाया वास्तविक नहीं. इसी प्रकार आज की बीजेपी भी वो ही कर रही है श्री राम मंदिर मुद्दा छोड़ दियाधारा ३७० छोड़ डी (क्यूंकि केंद्र में बीजेपी ने कुछ नहीं किया अटल जी के समय में) और जो बीजेपी वाले संघ को कहेते है की सत्ता मिलने के बाद करेंगे वो भी संघ का प्रयोग मात्र कर रहे है. अरे आज क्यूँ नहीं अपने घटक दलों को संघ के वास्तविक मुद्दों पर मनाते, समझाते, केंद्र की सत्ता में थे तो यह चिंता थी की सत्ता ना चली जायेअब अपनी छवि की चिंता क्यूँ करते फिर रहे हो? बिहार में तो संघ के स्वयमसेवक ( श्री नरेंद्र मोदी जी) और हिन्दू वीर  वरुण जी का अपमान बल्कि घोर अपमान किया जा रहा है. आज अडवाणी जी ही यह बयान दे रहे है की जद (यू) को अडवाणी जी के नितीश के साथ मंच शेयर करने में कोई आपत्ति नहींअरे नितीश डंके की चोट पर क्यूँ नहीं कहेता की मुझे कोई आपत्ति नहीं अडवानी जी के साथ आने पर. आप बीजेपी अपने से क्यूँ कहेते फिरते हो. यह उनकी भी जिमेदारी है आखिर आपके घटक है. अरे मित्रो, आप कितना गिरोगे ! बिहार में सच्चा देशभक्त बीजेपी में घुट रहा है, इसलिए नहीं की नितीश की सरकार से कुछ दिक्कत है परन्तु उन विचारो का क्या जीन का घोटा उसने लगाया है उनको कैसे पिए वो. यदि उन विचारो को संबोधित और लागू  किया जायेगा तो ठीक, नहीं तो एक क्रांति का आगाज तो अव्श्यम्भी है. प्रिये अडवाणी जी आपने ही कहा था की इन्द्रा गाँधी के समय आपातकाल में उन्होंने झुकने के लिए कहा और हम रेंगने लग गय. अरे अभी हिन्दू हितेषी आप पिटवा कर बिहार की सत्ता ले भी लोगे तो संघ के विचारो का क्या ? हाँ यदि पांच साल में उनको लागू किया होता तो यह चोट भी बर्दाश्त थी. बीजेपी एक बात गांठ बाँध ले की  संघ ने बीजेपी नेताओ का ठेका नहीं उठा रखा है सत्ता तक पहुचने का. तो वास्तव में संघ को भी निर्णय करना पड़ेगा की ऐसे करने से यदि सत्ता मिल भी गई तो वैसे ही होगा जैसे गाँधी के "राम राज्य" का नेहरु ने किया. ऐसी सत्ता संघ को चाहिए भी नहीं. 
  • ऊपर राजनेतिक बात इसलिए करनी पड़ी के आम देशवासी (जो संघ से नहीं जुड़े) संघ को इन नेताओ के ही आचरण से समझने की कौशिश करते है और इसी से अर्थ का अनर्थ हो रहा है. जो कभी भी संघ से नहीं जुडा और वो राजनैतिक प्राणी नहीं है उसने तो बीजेपी को राम नाम से ही जाना है की एक पार्टी है जो राम मंदिर बनवाएगी, आप हँसे नहीं परन्तु उस आम आदमी ने संघ को भी बीजेपी के माध्यम से ही जाना. और जब अब वो संघ को जान गया है तो बीजेपी के अन्दर स्वयंसेवक ही उसकी रडार पर है संघ को समझने के लिए या फिर टीवी मीडिया में जो दिखाया जा रहा है उस से वो समझेंगे.
  • अब संघ को क्या करना चाहिए - संघ को अपने संघठन के प्रारूप पर ध्यान देना पड़ेगा. जैसे की प्रशन है - की क्या एक अच्छे हिन्दू राजा को एक से ज्यादा स्त्री के साथ सम्बन्ध रखने पर अयोग्य माना जाना चाहिए या नहीं ? अरे राजा का व्यक्तिगत सम्बन्ध नहीं देखा जाता उसके द्वारा प्रजा के लिए किये गए निर्णय इतिहास की कसोटी पर कसे जाते है. अब वो अपनी प्रजा की रक्षा के लिए किसी राजा की बेटी से संबध रख कर यदि देश की रक्षा कर सकता है तो करे,  इतिहास उसे दूरदर्शी राजा ही कहेगाऔर यदि वो राजा अपने चरित्र के ही चक्रविहू में फंसा रहा तो ना प्रजा माफ़ करेगी और ना ही इतिहास. अरे महाभारत से कुछ तो सीखो श्री कृष्ण से कुछ तो सीखोयदि संघ राजनीती (हिन्दू हितो की रक्षा करना एक राजनीती है) कितने ही स्थान पर रक्षात्मक होता आया है. जैसे किसी स्वयमसेवक के पारिवारिक मामलो पर खास तौर पर स्त्री के मामले पर. 
  • मेरी समझ में नहीं आता की संघ अपने दुश्मनों के सामने चरित्र (सात्विक) के मामले पर इतना रक्षात्मक रुख क्यूँ रखता है. यह मैं इसलिए कह रहा हूँ जब राहुल गाँधी जैसे दो पैसे की बुद्धि वाले भी संघ पर आरोप लगाने के कुव्वत रखते है. जिनका कोई ना ईमान है और ना ही कोई चरित्र. अरे जब "संघ के दुश्मनों" का चरित्र ही नहीं तो वो चरित्र की बात किस आधार पर करते है. व्यक्तिगत चरित्र एक अलग चीज है उस से राजनीती का कोई भी फायदा नहीं (यदि है तो बोनस है). अरे परम वीर हिन्दू ह्र्दय सम्राट आदरनिये श्री बाल ठाकरे जी से ही सीख लो जूते की नोक पर रखते है अपने विरोधियो को और संघ भी जान ले की यदि हमारा दुश्मन हमारी नेतिकता और इमानदारी को हमारे ही विरुद्ध हथियार बनाता है तो एक मिनट भी नहीं लगनी चाहिए उसको छोड़ने में. ऐसी नीति पर नहीं चलता तो बड़े लक्ष्य की राह में ऐसे ही रोड़े आते रहेंगे फिर ८५ साल नहीं १८५ साल में भी हम हिन्दू हितो की रक्षा नहीं कर पाएंगे जैसे की हम विगत में नहीं कर पाए. फालतू की झूटी शान और वीरता के ढोंग ने मुग़ल काल में हमारे पता नहीं कितने हिन्दू वीर "युद्ध में पीछे न हटने की" और "पीठ न दिखाने" की मुर्ख सोच से समूल हिन्दू जाति को गुलाम बना बैठे. एक शिवाजी ने इसकी तोड़ निकाली और मुगलों की ईट से ईंट बजा दी. हिन्दू राजाओ को मालूम ही नहीं था की समय की नजाकत देख कर पीछे लौटना भी "समझदारी" है. परन्तु हिन्दू न तो वर्तमान से सबक लेते और न ही भूतकाल से. और मुर्खता की परकाष्ठा यह है की पूर्व में भगवान् श्री कृष्ण के जीवन से भी सबक लेने को हिन्दू तैयार नहीं है. श्री कृष्ण को "रणछोड़" भी कहेते है. उन्होंने भी एक समय, वक्त की नजाकत देखते हुए रण छोड़ दिया था, क्यूंकि उनको भी मालूम था जिस कार्य के लिए उन्होंने अवतार लिया है "अधर्म से मुक्ति" वो उनका लक्ष्य है फ़ालतू के कार्य के लिए अपने प्राण गवाना नहीं.  
  • आज संघ भी है और उसके प्रखर राष्ट्रावादी स्वयंसेवक भी तो क्या उन्होंने कश्मीरी पंडितो की रक्षा कर ली और यदि वो नहीं आज कर पा रहे है तो विश्व के इतने बड़े संघठन का क्या आचार डालेंगे ? (क्षमा करे आक्रोशित होने के लिए) या फिर भगवान् कल्कि का ही इन्तजार करना है तो फिर यह संघठन - संघठन क्यूँ खेला जा रहा है. बंद करो इसे और राम भजो. जब एक स्वयं सेवक श्री रवि शंकर प्रसाद (राम जन्मभूमि पक्ष के वकील) ही न्याय दिला सकते है तो फिर इतने बड़े अभियान का क्या ? सत्ता से सरकार हैसरकार से न्यायालय है और इन न्यायालयों से देश के नागरिको के घेरेलु मुद्दे सुलझाये जाते है देश (हिन्दू) की अस्मिता और संप्रभुता के नहीं. और जो ऐसा सोच रहे है वो गफलत में है विरोधी पक्ष इतना कमजोर नहीं जितना सोचा जा रहा है.
  • संघ को सबसे पहेले आपने मुख पत्र पर ध्यान देना होगा. पांचजन्य की सर्कुलेशन बहुत गिर चुकी है, दूसरा एक श्री राम  स्वरूप जी, मुज़फ्फर हुसैन जी को छोड़ कर कोई खास विचारक लेख भी नहीं होता, खाली इधर उधर की खबरे ही होती है. दूसरा न तो इसको आप शिवसेना के "सामना" की तरह सन्देश वाहक और बाला साहेब के मुखपत्र की तरह इस्तेमाल करते और न ही किसी कोमेर्शिअल पेपर की तरह इसकी पाठक संख्या बढाने के उपाए करते. भाई मानना पड़ेगा तरुण विजय जी के जाने के बाद पांचजन्य की आक्रामकता तो बिलकुल ही ख़त्म होगई. एक अच्छा प्रयास है साधना टीवी के माध्यम से जनता तक अपना सन्देश पहुचाने का परन्तु आप शायद जानते नहीं कांग्रेसी राज में इस चैनल को महत्वपूर्ण समय पर ब्लाक कर दिया जाता है. दूसरा टीवी मीडिया में पूरा का पूरा एक कांग्रेसी-वामपंथी - इसाई गैंग है उसका मुकाबला संघ के लिए अभी संभव ही नहीं. सो प्रिंट मीडिया पर ध्यान दिया जाये. हाँ इन्टरनेट पर संघ के स्वयमसेवक बहुत मुखर है. यह एक संतुष्टि वाली बात है. पांचजन्य  को दोबारा से खड़ा करना एक भागीरथी प्रयास होगा और हमे आशा है यह किया भी जायेगा.
  • दूसरा एक ऐसी बात कहूँगा जिस पर संघ को आपत्ति हो सकती है क्यूंकि संघ घोषित रूप से जाति को नहीं मानता. परन्तु मैं बात कहूँगा जरुर. "ब्रह्मण जाति" का संघ उपयोग सही ढंग से नहीं कर पाया. पिछडो और दलितों पर पुरे दो से ज्यादा दशक लगा कर कुछ भी बड़ा नैत्रेत्व पैदा नहीं हो पाया. इस बात को मैं बड़े विस्तार से लिखूंगा. पता नहीं संघ बंगारू लक्ष्मण पर बीजेपी में पैसे लेते रक्षात्मक क्यूँ हो गया, और उनको बीजेपी अध्यक्ष पद से हटा दिया. जैसे की उस समय के विपक्ष (कांग्रेस) में किसी ने कभी पैसे लिया ही नहीं. अरे यहाँ तो अमेरिका के एक लेखक ने लिखा है इन्द्रा गाँधी ने अमरीका से पैसा लिया रूस से पैसा लिया , डॉ. स्वामी यहाँ हिन्दुस्थान में कहेते ही आ रहे है की सोनिया गाँधी ने के.जी.बी. (रूस की गुप्तचर एजेंसी) से पैसा लिया. तो बंगारू लक्ष्मण के मामले में पहाड़ क्या टूट गया था? सोनिया गाँधी ने अपने शासन में कानून मंत्री भरद्वाज से कुओत्रोच्ची को आजाद भी करा दिया और पैसा भी ले जाने दिया. किसने सोनिया गाँधी का क्या उखाड़ लिया? और देखते है की राष्टमंडल के घोटालो में कौन किसका क्या उखाड़ लेता है.  
  • संघ अब हिन्दू आतंकवाद जो की एक साजिश के तहत गढा गया शब्द है पर भी रक्षात्मक हो जाता है. मेरी समझ में नहीं आता की क्या कर्नल पुरोहित के सेना में बड़े पद पर काम करने से सेना आतंकवादी होगई ? क्या सेना कही पर भी सफाई देती फिरती है ? और कर्नल पुरोहित का तो संघ से सीधे कोई संबध भी नहीं था. तो मुझे समझ नहीं आता जब सेना कसूरवार नहीं जब की वह वहां एक अधिकारी थे. तो संघ कैसे जिम्मेदार होगया. यही साध्वी प्रज्ञा के बारे में है और अपने  ऊपर आरोप लगते देख संघ ही इसमें रक्षात्मक होगया. संघ को साफ़ करना चाहिए कल ही कांग्रेस का एक विधायक आतंकवादी  को शरण देने के लिए बंगाल पकड़ा गया है तो क्या सोनिया गाँधी ने कोई बयान जारी कर दिया? या कोई माफ़ी मांग ली ? क्यां दन्त दिखाऊ कांग्रेस नेता आतंकवादी हो गए? नहीं. अरे जो कानून को लगता है गलत है उसको फांसी चढाओ मेरा इसमें साफ़ मानना है. इनके इस देश के कानून से जो लोग खिलवाड़ कर रहे है वो ५-५ साल से फांसी की सजा पाए अफजल गुरु को तो फांसी पर लटका नहीं पाए. असम का कांग्रेस का एक सांसद कितना बड़ा देशद्रोही है सब जानते है परन्तु क्या कांग्रेस रक्षात्मक है ? नहीं है! 
  • अब यही बात नरेंद्र मोदी जी में भी आ गई वो भी कह रहे है की इस बार नगरपालिका में हमे मुसलमानों ने वोट दिया, कांग्रेसी सरकार की इतनी बड़े तुष्टिकरण मुसलमानों का करने के बाद, उनको पिछले ६ साल से सर पर बैठाने के बाद, डंके की चोट पर मुसलमानों को देश के सभी संसाधनों पर पहेला अधिकार बताने के बाद भी कांग्रेस तो कभी नहीं कहेती की इस बार हमे "हिन्दुओ" के वोट मिले. अरे राजनीती भी करनी है तो अपने मौलिक विचारो की करो कांग्रेसी भांडगिरी से क्या सीखना. 
  • कोंग्रेस पर परिवारवाद के कितने आरोप लगाये गए है और क्या बिगाड़ लिए बल्कि बीजेपी उससे भी ज्यादा कर रही है. क्या आपके साथी कोमुनिस्ट ऐसा कर रहे है ? बिलकुल भी नहीं जब की सत्ता उनके पास भी बंगाल में ४ दशक रही है. इसलिए या तो आलोचना मत करो और करो तो फिर उनको अपनाओ मत. श्री बाला साहेब ठाकरे जी जो करते है डंके की चोट पर करते है. इसलिए संघ को इस पर मंथन जरुर ही करना पड़ेगा.
  • सारी बीजेपी नीतिश के साथ धर्मनिरपेक्षता का तमगा लेने के लिए खड़ी है और वो भीगो - भीगो कर जुते मार रहा है. और जूते खा कौन रहा है जो स्वयम "छदम धर्मनिरपेक्षता" शब्द के अविष्कारक है. अरे हमारा मौलिक विचार है की "हिन्दू धर्म खुद में एक धर्मनिरपेक्ष" है तो दिक्कत क्या है ? मेहनत ही तो ज्यादा करनी पड़ेगी. चतुर बुद्धि से उसको भी करो और समझा दो की हम हिन्दू है और हमारे डी.एन.ऐ में ही धर्मनिरपेक्षता है. परन्तु हिंदुत्व का ध्वज वाहक (बीजेपी) किसी का पिछलग्गू क्यूँ बने मेरी तो समझ के परे है. वैसे तो मीडिया में आज जो लोग बैठे है वो  ज्ञान से एक दम खोखले है. बहुत कम लोग गहरा  ज्ञान रखते है, न तो उनको बेचारो को पता की विजयदशमी पर शास्त्र पूजा हिन्दू का बच्चा बच्चा करता है अब से नहीं परन्तु हजारो साला से. परन्तु इनको लगता है की संघ ने ही इसको हिन्दुओ में आक्रमकता भरने के लिए शुरू किया है. इनको बेचारो को न तो अभिनव भारत का पता और न ही किसी और चीज का बस हर हिन्दू संघठन को संघ से जोड़ देते है, अरे संघ वाले स्पष्ट क्यूँ नहीं करते की संघ संघठन के रूप में न तो वीर सावरकर से सम्बन्ध रखता और न ही संघ का हिन्दू महासभा से कोई सीधा सम्बन्ध है. कम से कम मीडिया में एक पर्चा ही बाँट दे और अपने संघठन के बारे में जानकारी दे. अब इन अज्ञानी लोगो को कुछ तो  समझाओ, क्या मीडिया में संघ का कोई भी सम्पर्क नहीं जो धर्म और संघठन की ही कम से कम सही जानकारी देश को दे, न करे संघ का फेवर परन्तु सच तो बोले. यह तो बोलीवुड में भी हिन्दुओ को अपमानित किया जा रहा है कोई भी धारावाहिक या फिल्म देख लो आप अमूमन पाएंगे हर "खलनायक चरित्र" के गले में भगवा गमछा डाल दिया जाता है, हिन्दू पुजारी और धर्माचार्यो की तो छवि पहेले ही ख़राब कर रखी है अब भगवा वस्त्र को गुंडों और खलनायको में चित्रित किया जा रहा है. पता नहीं शिव सेना ने कभी इसको नोट लिया है की नहीं. अभी वापस आते हैं ब्रह्मण के मुद्दे पर, बिना किसी लाग लपेट के बोलू ब्राहमण का वर्चस्व समाज पर से कोई भी ख़त्म नहीं कर सकता, अंग्रेज नहीं कर पाए, मुग़ल नहीं कर पाए, तुर्क नहीं कर पाए. हाँ उन्होंने ब्रह्मण को अपने में मिलाकर अपने विचार तेजी से फ़ैलाने का काम अवश्य किया है. अंग्रेजो ने तो १८५७ की क्रांति से पहेल मैथली ब्राह्मणों को कितने उच्च पद दे रखे थे. वो अलग बात है की  १८५७ की क्रांति के बाद उनके बगावती तेवरों से तंग आकर अंग्रेजो ने उनका नरसंहार किया था. संघ ने यदि ब्रह्मण नेत्रत्व पर भी साथ साथ ध्यान दिया होता तो संघ का विस्तार और तेजी से होता परन्तु दुर्भाग्य है की ऐसा नहीं हुआ और हुआ तो विस्तार नहीं हुआ. आज मैं संघ से निवेदन करूँगा की संघ के विस्तार के लिए ब्राह्मणों में जबरदस्त पैठ बैठाई जाये फिर आप देखना की संघ क्या विस्तार देता है अपने कार्यकर्मो को. इस बात से मत डरो की विरोधी आपको ब्राह्मणवादी बोलेंगे या कुछ और परन्तु यदि ८५ साल के बुजुर्ग संघ में शक्ति भरनी है तो ब्राहमण और युवा दो वर्गों पर फोकस करना होगा. परन्तु मेरा यह नहीं कहेना की जो पैठ संघ ने दलितों में और पिछडो में, वनवासियो में बनाई है उसकी कीमत पर ऐसा करे. कदापि नहीं दोनों को साथ लेकर जाने की जरुरत है. संघ को अपने  बौधिक प्रकोष्ट में भी युवाओ की भर्ती करनी होगी, ब्राहमणों की  भर्ती करनी होगी, युवा दलितों और पिछडो को बौधिक प्रकोष्ट में लाना होगा, कृपया एसे कहने को बुजुर्ग स्वयम सेवको का अपमान न माने. बौधिक लोगो को बताया जाये की क्रिया की प्रतिक्रिया में समय व्यर्थ मत गवाओ बल्कि मौलिक और नूतन क्रिया करो. और संघ को एक बात और समझनी होगी की जो लोग यह कहेते है की साध्य पाने के लिए "किस" साधन का प्रयोग जरुरी है इसका भी विचार रखा जाये. तो मैं कह दू की साधन तो संघ स्वयं ही है इसलिए जो वो करता है सब ठीक है, गंगा में मिलने वाली सभी नाली - नाले गंगा ही केहेलाते है कोई गंगा को नाला नहीं कहेता. 
  • आज पृथ्वीराज चौहान की एक गलती, मराठो की एक त्रुटी हमे यहाँ न पहुंचाती यदि वो भी गौरी, गजनी या मुगलों के सामने चतुरता बरतते और साधनों से ज्यादा साध्य पर ध्यान देते तो हिन्दू पराजित न होता. काशी, मथुरा, अयोध्या स्वतंत्र होती. हमे इतिहास में लूटे पिटे और शोषित न होते, देश में भगवा लहरहा रहा होता. माँ सरस्वती की नंगी तस्वीर न बन रही होती, वृन्दावन इस तरह से उपेक्षित न होता. कृष्ण और राम के उपासक लक्ष्य पर ध्यान दो, साधनों पर विचार करके निरर्थक आदर्शवादी बना निरही मुर्खता है. राम ने विभीषण से पल भर में दोस्ती कर ली थी, कृष्ण ने धर्म स्थापना के लिए अर्जुन से ही आपने रिश्तेदार मरवा दिए थे. अंतिम सत्य है के धर्म की पताका फेहेराना और वो किसी भी प्रकार की हर सूरत में फेहेरानी होगी. इस कलयुग का अंत करने भगवान् कल्कि आएंगे तो वो भी साध्य पर ध्यान देंगे. परन्तु लक्ष्य धर्म की स्थापना ही होगी. साधन और साध्य पर यदि जीता जागता  सबूत चाहिए तो कोमुनिस्टो को देख लो. दुर्गा पूजा में दुर्गा से ही बल प्राप्त करके, दुर्गा के ही राज और उसी के भक्तो का संहार कर रहे है. साध्य कुछ और साधन कुछ और है. मतलब हिंदुत्व से शक्ति लेकर उसी का विनाश कर रहे है. मतलब साफ़ है की साधन कुछ भी हो साध्य स्पष्ट होना चाहिए.    
  • तीसरा यदि संघ कहेता है की हमे भारत को एक हिन्दू राष्ट्र बनाना है तो गलत क्या है. लोकतंत्र सब को यह अधिकार देता है की देश की जो जनता है उसके हिसाब से ही राष्ट्र बनेगा. इसमें गलत क्या है और इस बात को बीजेपी तक को स्पष्ट  रखना चाहिए. मैं साउदी अरब को हिन्दू राष्ट बनाऊ, ब्रिटेन को हिन्दू राष्ट्र बनाऊ या अमरीका को भी बनाऊ तो गलत है. परन्तु मैं तो अपने राष्ट्र को हिन्दू राष्ट्र बनाने की बात लोकतान्त्रिक तरीके से कर रहा हु तो क्या गलत ! भाई संविधान में जब इसे धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी राष्ट्र बनाया जा सकता है एक छोटे से संविधान संशोधन से तो हिन्दू राष्ट्र बना दिया तो क्या पाप है ? जिस प्रकार, लोकतंत्र व्यवस्था, समाजवाद व्यवस्था, खुली अर्थव्यवस्था, उसी प्रकार हिंदुत्व देश भी एक व्यवस्था है जिस प्रकार आपने अपने अधिक मत आने से देश को धर्म निरपेक्ष बना दिया उसी प्रकार लोग हिन्दू शासन की बात करते है तो गलत क्या है? इसको आतंकवाद में  लपेटना और "इस्लामिक आतंकवाद" से तुलना बिलकुल गलत है. जैसे सरकार एक ही पलड़े में इस्लामिक अतंकवादियो को  और हिन्दू राष्ट्र को चाहने वालो को तोलने की मुर्खता कर रही है. अरे पाकिस्तान में २ या तीन प्रतिशत हिन्दू कल को वहां  "हिन्दू राष्ट्र" स्थापित करने की कौशिश करते है तो "मैं" खुद ही कहेता हूँ यह तो आतंकवाद है और गलत है. भाई ९८% जनसँख्या पर २% का राज तो अपने आप में एक आतंकवाद है. हिन्दू राष्ट्र भी तो अपने में एक व्यवस्था ही है. भाई जैसे की पाकिस्तान एक इस्लामिक देश है क्यूंकि वहां की जनसँख्या मुसलमान है तो जो बहुसंख्यको को अच्छा लगे वो शासन पद्दति उनको अपनाने दे और वो उन्होंने अपना ली टो क्या बुरा है? हिन्दुस्थान हिन्दुओ का देश है इसको हिन्दू राष्ट्र बना कर अलाप्संख्यको की रक्षा करे. अब इसमें गलत क्या है? गलत सरकार है, फर्जी बुद्धिजीवी है, कांग्रेस और उनके मित्र है. भाई ९०% हिन्दू ने धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद का ठेका थोडा ही न ले रखा है. परन्तु इतना सभी को पता है हिन्दू राष्ट्र में हर व्यक्ति का ध्यान रखा जाये जैसे की आपकी धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद व्यवस्था में रखा जाता है. और यदि हिन्दू राष्ट्र (राज्य) बनाना साम्प्रदायिक या गैर क़ानूनी है तो यह तो उससे भी एक डिग्री अच्छा है जिसमे महात्मा गाँधी "राम राज्य" लाने  की बात करते है. यह एक देवता (राम) का राज्य नहीं कम से कम ३३ करोड़ देवताओ (हिन्दू) का राज्य लाने की बात कही जा रही है. तो लोकतंत्र के हिसाब से भी ठीक है. फिर मित्रो  आप अपने विचार पर अडिग रहो क्यूँ किसी के सामने सफाई  देते फिरते हो ? सरकार या यह तथकथित बुधिजीवी अपने आप खोखले है और हम इन्ही के सामने सफाई दे रहे है. इसलिए अपने विचारो को और प्रखरता से रखो और देश में जनजागरण करो. क्यूंकि हिन्दू धर्म विश्व में सबसे मानवीय व्यवस्था है बाकी व्यवस्थाये ढकोसला है
  • आज से २० साल बाद अमेरिका और चीन दोनों एक ही धुरी पर खड़े मिलेंगे और वो धुरी होगी हिन्दू अध्यात्म की. परन्तु भारत के भावी हिन्दू वीर बैंको की किश्ते देने पर गिडगिडा रहे है. अरे इस व्यवस्था ने जानबूझ कर आपको कर्ज में फंसाया है. १०० -१०० बीघा जमीन बेच कर दिल्ली, गुडगाव, नॉएडा, पुणे, मुमाबी, बंग्लोरू में फ्लेट लेकर बैंको के चक्कर ही लगाने को जीवन कहेते है तो फिर ठीक है इसी को जीओ. इस सरकार ने देश के किसानो को घर-घर जा कर क्रेडिट कार्ड बांटे है, बैंक अधिकारियो को मोटे -मोटे टारगेट देकर हर किसान के हाथ में "क्रेडिट कार्ड" दे दिया गया है. बस एक बार बाँट दो फिर तो आपके (विदेशी) गुलाम बन ही गए. और भारत जैसे देश की  सत्ता इस तरीके से चलाना कितना आसान हो गय. शहर में रहेने वाले और गाँव वाले दोनों वर्गों को बैंको के माध्यम से सरकार की जेब में करने की कलाकारी सरकार चलाना बताया जा रहा है . फर्जी अर्थव्यवस्था उधार के पैसो से जी. डी. पी. या विकास दर को दो अंको की वृद्धी दर देना ही बस उदेश्य रह गया है. जनता और देश जाये भाड़ में. तब तक अर्थव्यवस्था की पोल खुलेगी तब तक सरकार बदल जाएगी, बाकि का समय दूसरी सरकार को कोसने में लगा देंगे. जय लोकतंत्र, जय धर्म निरपेक्षता और हो गया शासन.  ६० साल से यह ही हो रहा है. और आगे भी होता रहेगा. 
  • भ्रष्टाचार का आलम यह है की पूछो मत सरकार विदेशो से चीजे ही जब खरीदती है जब सर पर आन पड़े और मंत्रियो का कमीशन बने, फिर जल्दबाजी का हवाला देकर कई गुना बढे दामो पर खरीदो और फिर चाहए वो देश की सुरक्षा से जुड़े हथियार ही क्यूँ न हो. फिर देश की जनता में देशभक्त होने का ढोंग करो. मतलब पैसा भी कमालो, दलाली भी कमालो, नाम भी कमालो और जनता की नजर में इज्जत भी. है! कोई और ऐसा काम जो एक ही झटके में इतना सब दे दे. और यह भी घोषित  सत्य है की हमारे देश में देश की सुरक्षा के लिए हथियार खरीदना भी सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस का ही अधिकार है और किसी में हिम्मत है तो करके दिखा दो. अरे छोड़ो सरकार बनाकर हथियार खरीदने के धमकी किसी और को देना, सालो (क्षमा करे) तहलका जैसे स्टिंग ओप्रशन के जरिया तुम्हारी हथियारों की खरीद तो बहुत दूर की बात, तुम्हारी सरकार और तुम्हारी जान भी सांसत में ला देंगे. और भूसा भर देंगे तुम में भी, और तुम्हारा हश्र देख कर आने वाली नस्ले भी डरेंगी. 
  • बीजेपी पता नहीं खेल मंत्री से क्यूँ नहीं पूछती की क्या नैतिकता का तकाजा यह ही है की किसी चुनाव आयुक्त को किसी पार्टी की सरकार में मंत्री / सांसद भी बनना चाहिए. पता नहीं देश के कितने लोगो को पता है की राष्टमंडल पर खर्च रुपयों में जीरो कितनी आती है १०,००,००,००,००,००० (एक लाख करोड़). तो मित्रो देश को दोनों हाथो से लूटा जा रहा है और मित्रो यह तो बानगी भर है इसमें न तो मनेरगा है, न अनाज खरीद है, न स्पेकट्राम अव्बंटन है, न हथियार खरीद है, न विदेशी बैंको में जमा कला धन है, और यह तो देश की राजधानी दिल्ली में बिलकुल नाक के नीचे है पता नहीं राज्य सरकारे, नगरपालिका, पंचायती राज कितने घोटाले करता होगा. बस भैया लोकतंत्र है. संघ को यदि वैश्विक हिन्दू की नहीं चिंता है तो कम से कम भारत से ही यह पाप की गठरी उठाय. यदि स्वामी रामदेव जी हुंकार भर सकते है तो संघ क्यूँ नहीं?                 
  • संघ दो बड़े प्रश्न से अपने को स्पष्ट करे भारतवर्ष और हिन्दू धर्म. यदि वो भारत निर्माण का ही वचन लेता है तो वो विश्व के हिन्दुओ को अनाथ करता है और यदि वो हिन्दुओ का वचन लेता है तो भारत वर्ष उसकी सीमा नहीं होंगी. इन कोम्नुसटो    ने पिछली सरकार में रहकर ६० सांसदों के दम पर अपने लक्ष्य "नेपाल को हिन्दू राज विहीन" कर दिया. इसको कहेते है लक्ष्य पर वार. एक ही झटके में हजारो साल का राष्ट्र अनाथ कर दिया और हम और संघ अभी तक भी नहीं समझ पाए की करे क्या ? अरे तुम्हारे सामने अंतिम हिन्दू राष्ट्र धुलधूसरित हो गया तो फिर आपने कर क्या लिया ?  
  • देश में कश्मीरी पंडित अनाथ घूम रहे हैदेश के बहार नेपाल राष्ट्र हिन्दू विहीन कर दिया गया. और अब तो हालत यह आ गये की हमे राहुल गाँधी का जवाब देना पड़ राह है की हम आतंकवादी नहीं है हम सिमी जैसे नहीं है. आखिर महात्मा गाँधी से लेकर राहुल गाँधी तक हम ही क्यूँ जवाब दे ? हम १९६२ के बाद नेहरु द्वारा गणतंत्र की परेड में संघ को निमत्रण को ऐसे जिक्र करते है जैसे "गीता का कोई श्लोक" श्री कृष्ण ने कह दिया हो या किसी ने हमे अमृत पिलवा दिया हो. 
  • संघ को अपने स्वम सेवक को क्रांति करने के लिए और क्रांति करने को अपने मूल निर्णय में शामिल करना पड़ेगा. नहीं तो संघ ही सब को जवाब देता रहेगा. अब तो हालत यह हो गई  की संघ को अपनी राष्ट्र भक्ति का भी सबूत देना पड़ राह है वो भी किसे ! एक राहुल गाँधी को. मैं एक बात स्पष्ट कर दू मैं लड़ने को नहीं कह रह हूँ मेरा कहना है की संघ अपने स्वयमसेवक को वैचारिक क्रांति क्यूँ नहीं करने देता? क्यूँ नहीं मजदूरों विद्यार्थियोकिसानो को कुछ करने देता ? संघ भी एक बात जान ले यदि चाणक्य ऐसे ही समाज निर्माण में लग जाता तो नहीं बच सकता था यह देश. यह कुछ - कुछ ऐसा है की, एक पिता अपने बच्चो को बड़े समन्वय से रहेने की शिक्षा देता हो परन्तु उनको रहेने के लिए घर नहीं और इसी सामजस्य को बनाये रखने के लिए जरुरी तत्वों का निर्माण न करता हो. संघ का समाज निर्माण भी ऐसा ही है. संघ को महात्मा गाँधीनेहरु और पता नहीं किस किस से देश भक्ति और हिन्दू हितो के रक्षक के  सिर्टिफिकेट लेने की जरुरत क्या है ? की एक बार गाँधी जी आए थे संघ के शिवर में बड़े प्रभावित हुएफलाना ढीकाना. अरे गाँधी और उस से जुड़ा सारा समाज एक भ्रष्टाचार और कायरता का एक मिलाजुला गैंग है बस जिसकी झलक आपको राष्ट्रमंडल के खेलो के आयोजन में मिल जाती है. 
  • मित्रो मेरा मानना है की संघ को एक नवक्रांति का प्रस्फुटन करना होगा और संघ भी यदि ऐसा सोचता है की इसी मोजुदा राजनेतिक तन्त्र में से कुछ हांसिल हो जायेगा तो यह एक बहुत बड़ी भूल हो होगी और हिन्दुओ और भारत के लिए एक बहुत बड़ी निराशा
  • सत्ता से देश बनते है. एक भविष्यवाणी मैं करना चाहूँगा की चीन अगले 20-25 सालो में बहुत बड़ा अध्यात्मिक धार्मिक देश बनने जा राह है. पहले क्रांति से देश संभालाफिर उसे एक सफल अर्थव्यवस्था बनायाफिर उसे अंतरराष्ट्रीय पटल पर लायाफिर खुली अर्थव्यवस्था लागु कीआगे लोकतंत्र लायेगा और फिर धार्मिक व्यवस्था स्थापित करेगा. आप मेरी यह बात नोट कर लो. और हम धीरे धीरे पाकिस्तानी रास्ते पर चल रहे है. देश की वायूसेना अध्यक्ष कहे रहे है की हम बहुत बड़े संकट में है एक तरफ चीन और एक तरफ पाकिस्तान हमे धमकीया दे रहे है. मित्रो देख लो अपने देश के हालत की अपने देश का नायक रोती से हालत में देश की सुरक्षा पर याचना कर रहा है और हमसचिन तेंदुलकर को भारत रत्न देने पर बहस कर रहे है. अरे गजनी और गौरी के आक्रमण से पहेल भी हम समृद्ध थेसोमनाथ जैसे मंदिर थे परन्तु भिखारी बना कर चले गए और आज फिर हम अपने घर तो भर रहे है परन्तु ना तो हिन्दू स्वाभिमान की बात करते और ना ही भारत निर्माण की. उसका परिणाम पूरी हिन्दू नस्ल को फिर से भुगतना होगा यदि संघ ने जल्दी ही हल ना ढूंढे. 
  • मित्रो एक बात आप पूछ सकते हो की यार लेखक भ्रमित तो नहीं हो गया है की समस्या देश की और करना सरकार को कटघरे में खड़ा करना चाहिए और बार बार यह संघ को ही उपदेश दे रहा है. तो मित्रो एक बात स्पष्ट कर दू की सरकार हिंदुस्तान में है ऐसा तो मैं मानता ही नहींमैं तो इस शासन को कांग्रेस का, कांग्रेस के लिए, कांग्रेस द्वारा एक विकृत और  अराजक राज मानता हूँइतना समय नहीं जो इसके बारे में विस्तार से बोलूपरन्तु सरकार और आम भारतीय का कोई सम्बन्ध है ही नहींदूसरा संघ एक मात्र आशा की किरण है इसी लिए मैं संघ से ही उम्मीद करता हु और बार बार लगातार करता रहूँगा. 
  • मित्रो सरकारे भी थीवो गाँधी भी था जो कहेता था की मेरी लाश पर पाकिस्तान बनेगाअंग्रेजो का न्याय भी थाहिन्दुओ के पास पैसा भी थापरन्तु क्यां समृद्ध हिन्दू अपनी समृधि बचा सकेअपनी बहेनो और बेटियो की इज्जत लुटने से बचा पाएक्या अपने प्राण ही बचा पाए. क्या अपना पैसा और जमीन ही बचा पाए. यदि किसी ने कुछ बचाया तो अंतिम आसरा बन कर संघ ने ही कुछ बचा लिया परन्तु बंटवारा वो भी नहीं रोक पाया. उसको दोष इसलिए नहीं दे पाता की सोचता हूँ की संघ को "समय कम" मिला परन्तु आज तो ८५ साल का संघ होगया. कुछ लोग कहेते है की बंटवारे होने के समय वाली पीढ़ी को बीत जाने दो फिर एक नहीं सुबह होगी पाकिस्तान और हिंदुस्तान फिर से मित्र बनेगेवो ही कहेते है श्री राम जन्मभूमि पर भी और समय बिताओ जिस से वो मंदिर आन्दोलन वाली पीढ़ी बूढी हो जाये. अरे मूर्खो १२०० (आधुनिक युग) साल तो बीत गए और कितना समय बिताओगे और जिनके लहू में उबाल होता हैजो जिन्दा कौम होती है वो इतना इन्तजार नहीं करती. और यदि कर रही है तो वो मरणसन्न है और पल पल अपनी मौत को नजदीक आते देखने को अभिशिप्त है. 
  • देखिये मित्रो एक बात में अपनी तरफ से और बता दू की भारत देश का मौजूदा लोकतंत्र, राजनैतिक तंत्र और अफसरशाही का यह ढांचा १०-१२ साल में ध्वस्त हो जायेगा जैसा की मेने ऊपर कहा की कोई भी चीज अजर - अमर नहीं है. अब वो चाहे किसी देश का कोई तन्त्र ही क्यूँ न हो. जैसे चीन ने अपने तन्त्र को बदला तभी वहा एक पार्टी राज कर पा रही है. खैर छोड़ो उनको परन्तु अपने देश में जो सोच रहा है की यह मौजूदा तंत्र लम्बा चलेगा वो भ्रमित है. 
  • संघ को भी निवेदन करना चहुँगा की इस बार फिर से क्रांति  होगी और यह क्रांति न तो बिहार के गाँव में होगी, न छतीसगढ़  के जंगल में और न ही किसी राज महल में. यह क्रांति होगी सत्ता की बिलकुल नाक के नीचे दिल्ली में. इसके कारण भी और छोटी - छोटी चीजे प्रस्फुटित होने लगी है देश की जनता इस बार राष्ट्र मंडल के खेलो के भ्रष्टाचार को स्वीकार न करने के मूड में है, और इस असंघटित क्रांति की यह छोटी छोटी परन्तु महत्वपूर्ण आगाज है. और मुझे लगता है की फिर से संघ किसी भी इस प्रकार के क्रांति के नायक को सहयोग भी देता होगा बजाये इसके की इस जनमानस को संगठित करके एक बड़ी क्रांति भारत और हिन्दू उद्धार के लिए करे, मैं यह नहीं कहता की इस राष्ट्रमंडल खेलो से क्रांति होगी, परन्तु इस महंगाई और कुत्ते बिल्ली के जीवन जीते महानगरो के लोग रोजगार होते भी भिखारिओ का जीवन जी रहे है. इस उपभोगतावाद में लोन लिए पैसो की किस्तों के चुकाने के लिए बैंको के सामने कुत्ते बिल्ली की तरह गिडगिडा रहे है. न्याययाले के न्याय पैसे वालो के बन गए. क्या कभी आपने सोचा है की जिला कोर्ट, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तीनो के ही निर्णयों में दिन और रात का अंतर क्यूँ होता है (मुट्टू बलात्कार काण्ड और पता नहीं कितने और है ), लोगो में दाल और सब्जी खरीदने के पैसे नहीं है, समाचार पत्र एक भी बिना पैसे और स्वार्थ के समाचार नहीं छापता, सच्चाई का समाचार पत्र और टीवी मीडिया से कोई तालुक ही नहीं, गरीब और आम जनता का सेफ्टी वोल्व ही थे मीडिया वाले, यह भी पूंजीपतियो और सरकार के हाथो की कटपुतली बन गए. जब आम जनता महंगाई से रगड़ी जा रही हो, तडफाड़ा रही हो, लोग बहुत ही छोटी परन्तु अहम वाशिंग मशीन और कूलर तक के लिए लोन ले रहे हो और उनकी किश्ते भी नहीं जमा कर पा रहे हो. इन बिल्डरों ने लोगो के खेत बिकवा - बिकवा कर कबुतरखाने जैसे फ्लेट की कीमत २५-५० लाख रख दी हो तो आम आदमी का होगा क्या ? देश में यदि आम आदमी चुनाव तन्त्र पर ही शक करने लग जाये की वोटिंग मशीन में कुछ गड़बड़ है या उसका चुनाव आयुक भूतपूर्व होकर एक सरकार में मंत्री बन जाये, या एक हाल ही के चुनाव आयुक्त पर आरोप लग जाये की वो सत्ताधारी पार्टी से जुड़ा था, अखबार जो आम आदमी और विरोधी पक्ष की आवाज थे ही पेड़ न्यूज़ देने लग जाये, देश का प्रधानमन्त्री कभी चुनाव जीता ही न हो और लगातार दूसरी बार बड़े बेशर्मी से देश का प्रधानमन्त्री बन जाता हो. 
  • हिन्दुस्तान के ५५ न्यूज़ चेनल कोई राजनेतिक न्यूज़ ही न दिखाते हो सिर्फ और सिर्फ कॉमेडी शो, क्रिकेट, फैशन, राहुल गाँधी पुराण, यह तक की प्राइम टाइम में भी न्यूज़ न दिखाए सिर्फ भुत, प्रेत, बिग बोस की क्लिपिंग दिखाए तो सभी को समझना चाहिए की देश में एक क्रांति होने वाली है और जो इन से अनजान बन रहे है वो मूर्खो के स्वर्ग में रहने का भ्रम पाले हुए है. क्या संघ जैसे बड़े संघठन के सरसंघचालक को टीवी न्यूज़ चैनेल नहीं दिखायेंगे. क्यूँ नहीं ? क्या बाला साहेब की विजयादशमी की रैली नहीं दिखाए जाएगी. क्यूँ नहीं? इन ५५ न्यूज़ चैनल ने नहीं दिखाया? मैं इन न्यूज़ चैनल से स्पष्टिकरन नहीं मांग रहा और न मुझे इनसे कुछ भी उम्मीद है. अरे न्यूज़ वालो देश के बहुत बड़े विपक्षी रैली कर के अपनी बात रख रहे है तो क्या जनता को इतना भी हक़ नहीं की वो क्या कहे रहे है उनकी भी सुनी जाये. और देश का प्रधानमन्त्री भी सुन ले की यदि इन रैली और नागपुर में संघचालक जी की बात ही आम आदमी सुनले तो उसको अपने जख्मो पर अपने आप ही मरहम लगजाता है. और लोकतंत्र में यह सेफ्टी वाल्व का काम करते तत्व है परन्तु आपको लोकतंत्र का क्या पता आपने तो देश को बड़ा ही मनहूस लोकतंत्र का झुनझुना थमा दिया जिसकी परणीती एक क्रांति से ही होगी. 
  • संघ यह भी जानले की देश का किसान वर्ग में किस प्रकार की विस्फोटक स्थिति है कोई भी पैसे के लिए अपनी जमीन नहीं बेचना चाहता, लोग सोना बेच सकते है, जमीर भी बेच सकते है परन्तु जो सरकार किसानो की जमीन को सिर्फ जमीन का टुकड़ा मान कर मनमाने तरीके से खरीद रही है वो न तो कुल को जानती, न जाति को, न गौत्र को, न किसानो की गाँव से जुडी संस्कृति को न उसके पूर्वजो की विरासत को, जो किसान डोल (दो खेतो के बीच की मेढ़) पर चार चार पीढ़ी तक कत्ले आम कर देता है. खून की होली खेल लेता है, २० -२० जेल रहकर भी जमीन और खेत की लड़ाई नहीं भूलता. सरकार पैसे के दम पर और आपने कानून के डर दिखा कर ऐसे किसानो से जमीन अधिग्रहित कर रही है. इसका मतलब सरकार और जन भावना को कोई भी तालमेल नहीं है. जो किसान अपने खेत बेच चुके वो इसी तंत्र को आने वाले समय में अराजक बनायेंगे, चार चार साल पहेल अधिग्रिह्त जमीनों का मुवावजा सरकारे फिर से दे रही है, न्यायालय उनको स्टे दे रहा है. और जो जमीन सरकारों के पास है उन पर हुई फसल पर सरकार सही समर्थन मूल्य नहीं दे रही, मंडियो का नवीनीकरण नहीं हो रहा, बहुराष्ट्रीय कंपनिया अशिक्षित किसान को दोनों हाथो से लूट रही है, तो क्या सरकार सोचती है की इतनी बड़ी अराजकता को १०-२० अखबार घराने, टीवी चैनेल खरीद करके स्थिति संभाल लेगी, तो जान ले सरकार भ्रम में है. प्रधानमंत्री और सत्तधारी पार्टी एक बहुत बड़ी त्रुटी पर है, जब आम आदमी पिसता है तो वो विपक्ष की और देखता है परन्तु विपक्ष का टीवी पर ब्लेक आउट, अख़बार से नदारद, चुनाव आयोग से खिलवाड़, ई.वी.एम. से छेड़छाड़ और उस पर संशय, न्यायालय के निर्णयों में देरी, राज नेताओ के बढते रसूख, सत्ता द्वारा हिन्दू धर्म का घनघोर अपमान, हिन्दू संस्कृति के एक दम विरुद्ध सेम्लेंगिक विवाह, लिविंग रिलेशनशिप पर कानून, कश्मीर पर केंद्र का गैरजिमेदार रवैये एक बड़ी क्रांति की खदबदात है
  • अब होगा क्या कोई न कोई जयप्रकाश नारयण निकलने वाला है और संघ फिर से उसका सिर्फ समर्थन ही करता रह जायेगा. समय है खुद क्रांति का नैत्रेत्व करने का आपके पास संघटन है, तपे हुए स्वयमसेवक है, विचार है, संसाधन है, फिर क्यूँ नहीं व्यवस्था को बदला जाये. उसी तन्त्र में बार बार क्यूँ धंसा जाये. और यदि संघ की स्थापना इसी लिए हुई है तो इसका सर्वोच्च नैत्रेत्व जाने और नहीं तो अभी बदलाव क्यूँ नहीं ?


संघ एक ऐसा वटवृक्ष है जिसके अन्दर सभी प्रकार के प्राणी अपना बसेरा बनाते है और बड़े होने पर उड़ भी जाते है वटवृक्ष उनको सब कुछ अपना देता है, छाव, सुरक्षा, स्थान, प्रेम, माहौल, पडोसी, अपनापण, परन्तु बदले में कुछ नहीं मांगता बहुत आते है चले जाते है, फिर नए आते है चले जाते है. वटवृक्ष कुछ भी नहीं मांगता. किन्तु पक्षियों का भी एक कर्तव्य बनता है की अपनी चोंच में इस वटवृक्ष का बीज दबा लेजाये और बो दे कही और . समझ सको तो समझ लो यह वटवृक्ष तो मूक है अपने से कुछ भी नहीं कहेगा. तू नहीं तो और सही, वो नहीं तो कोई और ही सही परन्तु कारवां तो चलता ही रहेगा जब तक लक्ष्य न पा लिया जाये.
जय  भारत जय भारती.

7 comments:

  1. tyaagi ji aankhe bhar aayi hai dil main josh or aankho main khoon hai magar kya kare kuch kare to atank waadi or naa kare to kayar kahlaate hai.......

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  2. सबसे बड़ी बात, संघ को भाजपा से किनारा करना ही पड़ेगा | संघ को एक नई पार्टी का सृजन कर अपने कार्यकर्ताओं को अगले चुनावों मैं खड़ा करना चाहिए और सामानांतर संघ कार्य भी करना चाहिए ||
    और हाँ, चुनावों मैं बाकायदा खुलकर कार्य करना चाहिए पर भाजपा से किनारा कर इस पार्टी को सदैव के लिए भूल जाना चाहिए |
    जिस प्रकार सांप अपनी केचुली उतारता हैं और उसकी त्वचा जवान हो कर निकलती हैं उसी प्रकार भाजपा को उतार फैके और नया संगठन खड़ा करे विशुद्ध लोगों का जिनका भाजपा से कोई लेना देना नहीं हो चाहे दो चार चुनावों बाद सत्ता प्राप्त हो पर यही उपाय नजर आ रहा है | भाजपा के सभी लोग केवल सत्ता और पदों के भूके हैं उनको भाजपा के पदों पर ही बने रहने दो, छोड़ो उनको उनके हाल पर |
    तब ही काय कल्प होगा |

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  3. agreed with Hindustani.

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  4. ati uttam........

    katu magar satya vachan........

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  5. "संघ एक ऐसा वटवृक्ष है जिसके अन्दर सभी प्रकार के प्राणी अपना बसेरा बनाते है और बड़े होने पर उड़ भी जाते है वटवृक्ष उनको सब कुछ अपना देता है, छाव, सुरक्षा, स्थान, प्रेम, माहौल, पडोसी, अपनापण, परन्तु बदले में कुछ नहीं मांगता बहुत आते है चले जाते है, फिर नए आते है चले जाते है. वटवृक्ष कुछ भी नहीं मांगता. किन्तु पक्षियों का भी एक कर्तव्य बनता है की अपनी चोंच में इस वटवृक्ष का बीज दबा लेजाये और बो दे कही और . समझ सको तो समझ लो यह वटवृक्ष तो मूक है अपने से कुछ भी नहीं कहेगा. तू नहीं तो और सही, वो नहीं तो कोई और ही सही परन्तु कारवां तो चलता ही रहेगा जब तक लक्ष्य न पा लिया जाये." --------------------------------
    मेरे दोस्त यहीं पर आप धोखा खा गये हैं..... आज के संघ और डा० हेडगेवार के संघ मे जमीन और आसमान का अंतर है..... आज के संघ मे निष्ठावान और कर्तव्यनिष्ठ को दूर भगाया जाता है ..... चमचों और BJP परस्त लोगों की बोलबाला है.... सत्ता को ही परम वैभव मान लिया गया है... जातिवाद, भाषावाद, प्रान्तवाद अपने चरम सीमा पर है.......

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