मित्रो कांग्रेसी राज में आखिरकार पंचायती राज देख ही लिया. हाई कोर्ट का निर्णय आने के बाद जिस को भी देखो कांग्रेसी, मुस्लिम या कथित सेकुलर भी यह ही बयान दे रहे थे की बातचीत शुरू करनी चाहिए और जिसको दिक्कत हो वो सुप्रेम कोर्ट जाये. परन्तु कोई भी हाई कोर्ट की अवमानना या अपमान नहीं कर रह हा था. परन्तु राजीव धवन, सच्चर, कुलदीप नैयर, रोमिला थापर, इरफ़ान हबीब, शाहबुद्दीन, असदुद्दीन ओवैसी जैसे लोगो ने अगले दिन अपने जहरीले प्रवचनों से घोषित कर दिया की हाई कोर्ट का निर्णय एक पंचायती निर्णय है और आस्था के आधार पर हुआ है.
मेरा बड़े नम्र निवेदन है इन महानुभावो से की यह दो शब्द जो आपने गढ़े है एक पंचायती निर्णय, दूसरा आस्था पर आधारित.
मुझे कोई यह बतये की यह दो शब्द को हाई कोर्ट के निर्णय पर चस्पा कर इन माननिये पत्रकारों और नेताओ को मिलेगा क्या ? सुबह सुबह दैनिक जागरण रशीद अल्वी जी का लेख पढ़ा लगा के भारत में एक नई सुबह हो गई. परन्तु मेरा यह भ्रम कुछ देर ही था तब तक हिंदुस्तान की आत्मा के बंधक अपने जेहरीले बयान से वातावरण में मुस्लिमो को भड़काने के फिरकापरस्त दुर्गन्ध फैला चुके थे.
आज मैं कुछ बड़े ही गंभीर प्रशन करना चाहता हूँ.
- पहला तो यह है की सुप्रीम कोर्ट के वकील बड़े है या हाई कोर्ट के जज ?
सुप्रीम कोर्ट के वकील हाई कोर्ट को ठेंगा ही दिखाते प्रतीत होते है. कोई भी सुप्रीम कोर्ट का वकील हाई कोर्ट को हर निर्णय में धकियाता सा ही नजर आता है.
दूसरा में न्याय के ठेकेदारों से पूछना चाहूँगा की माननिये अदालत, आदरनिये न्याधीश लगाना मेरे जैसे आम नागरिक का ही काम है क्या? और सुप्रीम कोर्ट के सारे वकील न्याधीश को बड़े ही भद्दे तरीके से उनके निर्णय पर टिप्पणी करते आम तौर पर दिखते है. क्या यह सुप्रीम कोर्ट के वकील, पूर्व न्यायधीश, बड़े कथित सेकुलर पत्रकार वर्तमान न्यायालय से ऊपर है या बड़े है? कृपया कर के मुझे कोई बताय, क्या इन पर कोई भी मान हानि का दावा नहीं हो सकता. क्या हिन्दुस्थान का न्याय तन्त्र इन गुंडों को सामने बौना है ? क्या चिताम्बरम जी इनको हरे आतंकवाद को भड़काने के आरोप में कोई धारा नहीं लगा सकते. क्या टीवी चैनलों पर दिन रात इन्ही के विचार दिखने का नाम धर्मनिरपेक्षता है. हाई कोर्ट को निश्चित रूप से सोचना होगा की दिल्ली में बैठे यह सुप्रीम कोर्ट में प्रेक्टिस करते वकील क्या उनकी बेज्जती करने के लिए अधिकृत है ? या देश में इनके द्वारा अराजकता फैलने देने की इन्हें स्वीकृति है.
जब चार दिन पहेले इन्होने दिन रात एक किया हुआ था, जा जा कर हिन्दुओ से बयान ले रहे थे की फैसला न्यायाले का ही स्वीकृत होगा. फिर अचानक एक ही दिन में इनको खाप पंचायते और आस्था के आधार पर निर्णय और मुस्लिमो को सुप्रीम कोर्ट में जाने का आवाहन ही करने का क्या विचार कौंधा. कभी कभी तो मुझे लगता है की सुप्रीम कोर्ट में यह चुनोती तो एसे दे रहे है जैसे फैसले भी यह ही करवाते हो. इतना अहंकार किस बात का ? अरे जिसको जहाँ जाना है जाओ परन्तु एक तो निर्णय की अवमानना दूसरा उसको सुप्रीम कोर्ट में प्रभावित करने की बौधिक कौशिश.
जिन न्यायमूर्तियो को यह गाली सी की भाषा में बक रहे है उसने सीधे तौर पर एक बात नहीं कही और बड़े ही कुटनीतिक तरीके से मुस्लिम पक्ष को बचाने और सदभावना बनाने के लिए बोला है की मस्जिद मंदिर के टूटे हुए मलबे से बनी है. जब की मतलब यह है की मंदिर तौड़ कर मस्जिद बनाई है. अरे मलबे से क्या मतलब मस्जिद बनाने का, सीधी बात है की मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनी है. अब हिन्दुओ ने भी इसे बड़ा इशु नहीं बनाया चलो जो हुआ सो हुआ अब भव्य मंदिर बनाते है. परन्तु इनको तो भव्य शब्द पर ही आपत्ति है. अरे ६० साल की न्यायालय की लड़ाई लड़के जो अपने हिस्से में आया उस पर भव्य और बड़ा बनाने पर आपत्ति क्या है ? एन डी टीवी पर बरखा दत्त इसी बात से खिन्न थी की क्यों भव्य शब्द का इस्तेमाल किया जा रहा है.अरे आप भव्य बनाओ मस्जिद हमे क्या दिक्कत है, और मैं बनाऊ तो प्रोब्लम है. यह तो सीधे सीधे तानाशाही है. अच्छा मारोगे भी और रोने भी नहीं दोगे. भाई वाह.
- दूसरा यह न्यायालय के मंदिरों में भी झांक कर देखना होगा की एक कोर्ट में निर्णय यदि उत्तर आता है तो दुसरे में दक्षिण क्यूँ? क्या सबूत एक जज से दुसरे जज के सामने जाने में इतना बदल जाते है की निर्णय में दिन के उजाले और रात के अँधेरे का फर्क आ जाये.
मित्रो कांग्रेस को पंचायती राज से बड़ा प्यार है उसका एक छुट भैया टाइप का नेता मणि शंकर अयैयर तो इसके लिए अपने कपडे भी फाड़ दे. तो कांग्रेस को प्रथम द्रष्टया ख़ुशी होनी चाहिए की कम से कम अयौध्या में हाई कोर्ट ने पंचायती राज ही कायम कर दिया.
अच्छा मैं सुप्रीम कोर्ट के इन वकीलों से पूछना चाहता हु जो हाई कोर्ट के निर्णय को पंचायती निर्णय और आस्था के आधार को बार बार गा रहे है.
- पहेले पंचायती निर्णय. भाई एक बात बताओ निर्णय क्या होता है. तालाक लेने पर एक पति पत्नी जज से अपने बच्चे पर फैसला लेते है की साहभ यह बच्चा रहेगा किसके पास. अब जज दोनों के तर्क सुनकर किसी एक के बारे में फैसला देगा और निश्चित रूप से इस में माँ के लिए कुछ झुकाव तो होगा ही. वो बच्चे को कुछ दिन एक पक्ष और कुछ दिन एक पक्ष के पास रहेने का निर्णय देता है. अब मुझे कोई बताओ इसमें गलत क्या है. दूसरा यह रोमिला टाइप और लाल किताबी बन्दर चाहते है की बच्चा काट कर एक इसको दे दे कोर्ट और के हिस्सा दुसरे को. भाई फिर तो यह ही हुआ न न्याय. परन्तु दुःख की बात है सन १९४७ में हिंदुस्तान की इस भूमि पर येअसा भी निर्णय हो चुके तो क्या फिर से बच्चे काट कर दोनों पक्षों को देने का विचार है इन सुप्रीम कोर्ट के महान बुद्दिजीवी वकीलों का ? अब इलहाबाद हाई कोर्ट ने स्पस्ट न्याय देते हुए सुन्नी वक्फ्फ़ बोर्ड का दावा सिरे से ख़ारिज कर कर न्याय किया परन्तु मुस्लिमो के साथ प्रेम और सदभावना प्रदर्शित करते हुए उनको मस्जिद के लिए भी स्थान देदिया. यदि कोई पंचायती बात वाम बन्दर करते है तो यह मुस्लिमो के ही खिलाफ है और उनका मतलब है होगा की जो अदालत ने मुस्लिमो को जगह डी है उसको भी सुप्रीम कोर्ट ख़ारिज कर दे और आप देखना यह वाम बन्दर मुस्लिमो को उसका वो हिस्सा भी ख़ारिज करवा कर रहेंगे. रोमिला थापर की दुकान तो ऐ एस आइ (पुरातत्त्व विभाग की रिपोर्ट ) ने बंद ही कर दी अब बाकि के इतिहास के स्वम्भू ठेकेदारों की बारी है.
- अच्छा अब दूसरा हिस्सा इनके विरोध का की आस्था के आधार पर क्यूँ. तो में सभी वाम बंदरो और आदरनिये तथाकथित इस निर्णय के विरोधियो से भी पूछुंगा की वो अपने पिता को पिता क्यूँ मानते है. तो स्वाभाविक है की भाई माता जी ने बताया था की यह ही शख्स आपका पिता है. तो आप भी और मैं भी इसी लिए अपने पिता को अपना ही मानता हूँ. परन्तु वैज्ञानिक तथ्य तो यह है की सब अपने बाप के डी एन ऐ लेकर अपनी जेब में घुमे और जब भी कोई पिता की बात हो तो उसको अपनी डी एन ऐ रिपोर्ट दिखा दे की यह है मेरे पिता. तभी सब लोग मानेगे. ठीक है भाई अब कोई भी माँ कहेगी तो बच्चे पहले डी एन ऐ रिपोर्ट मांगेगे फिर कहेंगे की हाँ यह है हमारा बाप. दूसरा यदि आस्था नहीं मानोगे तो कोई भी हिन्दुस्तान में मुस्लिमो की कुरआन की वैज्ञानिकता पर दावा कर दे फिर क्या होगा ? या अजान पर ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका द्यायर कर दी तो मुस्लिम क्या उसको वैज्ञानिक तर्ज पर जिस तर्ज पर तुम श्री राम ढूंढ़ रहे हो पर सबूत लायेंगे ? कल को हिन्दू ही ईसा मसीह पर ही ओब्जेक्शन कर दे की कुवारी मेरी के ईसा कैसे पैदा होगया. तो क्या कोर्ट किसी का डी एन ऐ परीक्षण करेगा. अरे भाई इसाई मानते है हम ने भी मान लिया. इस में दिक्कत की क्या बात है. और न ही हमारे लिए बहस का कोई विषये है यह. तो यह फैसले आस्था के आधार पर ही हुए है और आगे भी होंगे.
खैर इस पर चर्चा करना कोई अब चाहत नहीं है. परन्तु सुप्रीम कोर्ट में बैठे वकील किस बिना पर हाई कोर्ट के जज से भी बड़े बनते है इसका उत्तर मैं तो ढूंढ़ पाने में सवर्था असमर्थ हूँ. लाल बंदरो को मट्टू के पिता से जाकर पूछना चाहिए की न्याय क्या होता है जिसकी जवान बेटी से बालात्कार किया और एक दुर्दांत, गरूरी अहेंकारी और बर्बर बड़े बाप के बिगडेल बेटे ने उसकी हत्या कर दी, परन्तु उसे हाई कोर्ट से मौत परन्तु सुप्रीम कोर्ट से उम्र कैद मिली. जरा वाम बन्दर इस पर गौर करे और उसके बाप से पूछे की अब वो कहा जाये.
आज जब सारा विश्व हाई कोर्ट के निर्णय की तारीफ और हिन्दू मुस्लिम उसको अंगीकार कर रहे है तो कुछ स्वम्भू न्याय के ठेकेदार कोर्ट की अवमानना क्यूँ कर रहे है ? और बड़े ही संदिग्ध रूप में सुप्रीम कोर्ट का आवाहन क्यूँ कर रहे है. क्यूँ नहीं मुस्लिमो को सलाह मात्र दे के निर्णय को अंगीकार करे और हिन्दू से दुसरे स्थान पर मस्जिद बनाने के लिए सहयेता ले जो की हिन्दू दे भी रहे है. शिया नेता ने हिन्दुओ को पंचकोसी में मंदिर बनाने के लिए १५ लाख रुपय देने का एलान किया. तो क्यूँ न यह ही परम्परा आगे बढ़ाये न की विवाद को. इस के बाद किसी भी रूप में हिन्दुओ को दोष देना बिलकुल गलत होगा. और ध्यान रहे १०० करोड़ हिन्दुओ में यदि कोर्ट के प्रति विश्वाश नहीं रहेता तो इस देश को आप एक अराजक हालत में देखेंगे, मुझे इसका पूर्वाभास हो रह है.
किसी भी देश का न्याय तन्त्र उस देश की आस्था से बड़ा नहीं हो सकता, इसी लिए इस देश के संविधान ने अदालत (सुप्रीम कोर्ट) को भी संसद से नीचे का ही अधिकार दिया है. सुप्रीम कोर्ट संसद से ऊपर नहीं है. तो लाल बंदार हिन्दुओ को एक सम्पूर्ण क्रांति के लिए प्रेरित कर रहे है जिसके जरिये एक हिन्दू हित पोषक सरकार बने और संसद के जरिये ३०००० हजार मंदिरों का पुनरुधार करे. मुझे तो हाई कोर्टी की लाल बन्दर, स्वम्भू बुद्दिजीवियो, लाल बन्दर परजीवी पत्रकारों और दोरंगी नेताओ के द्वारा मृख्तापूर्ण और दम्भी व्याख्या के इस रूप को देख कर और कुछ नहीं लगता. बल्कि हिन्दुओ को एक सम्पूर्ण क्रांति के लिए उकसाना भर है. में अंत में इतना ही कहूँगा हालाँकि निर्णय हिन्दुओ के पक्ष में नहीं परन्तु जिस भी प्रकार का निर्णय है
उस से हाई कोर्ट के न्यायमूर्तियो की दूरदर्शिता, सदाशयता देश और समाज के प्रति प्रेम का तो पता चल ही जाता है. आदरनिये न्यायमूर्ति श्री शर्मा जी ने उस तथ्य पर जिस पर मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाई है और उसकी जो व्याख्या दी है और उसपर जो न्याय दिया है उस को बहुत ही अच्छा निर्णय समकालीन हिन्दू -मुस्लिम मिश्रित जनसँख्या और भारत देश के भविष्य को देखते हुए ही दिया है. जिसने उनका निर्णय डिटेल में पढ़ा है वो जानते है की वो कितना तर्क पूर्ण, वैज्ञानिक और समाज में सदभावना पैदा करने वाला है. उसके ऊपर विपरीत निर्णय शायद ही इस युग में कोई दे पाए.
मेरी इस बात को पाठकगण नोट करले की यह कालजयी निर्णय है इसको आज नहीं तो कल, लड़ के नहीं तो हंस के, जीत के नहीं तो हार के, कोर्ट में नहीं तो संसद से, सलाह से नहीं तो चुनाव से, हिन्दुओ को नहीं तो मुसलमान को, राज्ये नहीं तो केंद्र को, सरकार को नहीं तो समाज को, इस में नहीं तो अगले युग में, हाई नहीं तो सुप्रीम कोर्ट के वकीलों को, बुद्दिजीवी हो या पत्रकार, सुर हो या असुर, हर हाल में श्री शर्मा जी का ही निर्णय ही मानना ही पड़ेगा. लाल बन्दर, सेकुलर नेता, मुस्लिम बन्धु, सूडो पत्रकारिता के ठेकेदार मानले की यह निर्णय तो यदि संविधान भी बदलना पड़े तब भी नहीं बदलेगा.
अब बारी आपकी है की कितनी जल्दी स्वीकार करते है और १०० करोड़ हिन्दुओ के आस्था और उसके आराध्य भगवान् श्री राम के आगे कब सर झुकाते हो. हिन्दुओ ने इस बात के लिए दम साध कर ६० साल इन्तजार किया है. आपके बूते नहीं इतना इन्तजार करना. इस देश में हिन्दू है तो न्याय है जो की हाई कोर्ट में हो चूका, जहा हिन्दू नहीं वहां तानाशाही और शरियते है जाहँ तर्क नहीं सिर्फ कोड़े दिए जाते है. नहीं विश्वास तो १९४७ के बाद रहे अपने कोमुनिस्ट भाइओ से पूछलो जिन्होंने पाकिस्तान और बंगलदेश बनवाया. जो बंटवारे के बाद या तो हिंदुस्तान भाग आये या फिर उन्होंने वहां पर कलमा पढ़ा. न्याय आज भी हिन्दूस्थान में है और कही नहीं और वो न्याय रामराज्य के पक्ष में है. राम है तो राज्ये है, राज्य है तो न्यायतंत्र है और न्याय तंत्र है तो फिर न्याय भी है. आज समझ लो या फिर पुरे एक युग का इन्तजार करो अंतिम सत्य यह ही है.
साम्प्रदायिक सद्भाव आधारित न्यायपूर्ण फ़ैसला ऐसे जयचंदो को रास नहिं आता।
ReplyDeleteऐसे मुस्लीम, जो फ़साद की आशा व अपेक्षा रख बैठे थे।
सेकुलर, जो इन्हे लडाकर,फ़िर साम्प्रदायिक सोहार्द का तमगा लेना चाह्ते थे।
वामपंथ, जिनका अस्तित्व ही खतरे में है यदि सौहार्द कायम होता है।
inse aur kuchh nahi asha kia ja sakta.....
ReplyDeleteachhi question aur jankari tyagi ji
एक अच्छे फैसले को ठुकरा रहे हैं. वैसे शर्मा जी ने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया.
ReplyDeleteएक अच्छा फैसला हजम नहीं हो रहा, वैसे शर्मा जी ने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया था.
ReplyDelete.
ReplyDeleteसुप्रीम कोर्ट के वकील बड़े है या हाई कोर्ट के जज ?
A million dollar question !
So many stages for getting justice is to fool the innocent people of India.
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