संस्कृत के जाने-माने विद्वान डॉ. हनीफ शास्त्री भगवद्गीता के मुरीद हैं। उन्होंने इसके सात सौ श्लोकों का हिंदी में अनुवाद किया है। संस्कृत में अनेक किताबें लिखने वाले डॉ. शास्त्री ने अफगानिस्तान में भी संस्कृत पढ़ाई है। इसके लिए उन्हें तालिबानियों का विरोध झेलना पड़ा, लेकिन शास्त्री जी ने उन्हें राजी कर लिया।
संस्कृत जैसी कठिन भाषा से आपका जुड़ाव कैसे हुआ? संस्कृत बचपन से ही पढ़ने में अच्छी लगती थी। नौवीं तक तो ऐसे ही पढ़ा, फिर लगा कि आदर्श, परोपकार और सदाचार की जो बातें संस्कृत के माध्यम से मिलती हैं, वे और कहीं नहीं मिलतीं। तभी से यह बात दिमाग में आई कि भारतीयता को समझने के लिए संस्कृत का विशद् अध्ययन बहुत जरूरी है। हम जिस देश में रहते हैं, जिस देश का अन्न जल ग्रहण करते हैं उसके प्रति हमें वफादार रहना चाहिए। यह जरूरी है कि हम अपने देश की संस्कृति को समझें, धर्म और धार्मिक परंपराओं को समझें और मूल धार्मिक ग्रंथों को जानकर उनका अध्ययन करके समाज में उनका प्रचार-प्रसार करें। लोग संस्कृत को कठिन इसलिए समझते हैं क्योंकि उनमें जिज्ञासा की कमी है। किसी भी कार्य के प्रति बलवती जिज्ञासा होगी तो वह कार्य कठिन नहीं लगेगा। मुझमें जिज्ञासा थी इसलिए संस्कृत मुझे कठिन नहीं लगी।
क्या भगवद्गीता को आज के संदर्भ में प्रासंगिक मानते हैं? मेरी जेब में तो छोटे आकार की भगवद्गीता हमेशा रहती है। इसे ताबीज गीता भी बोला जाता है। है तो यह छोटा-सा ग्रंथ पर इसमें सभी धर्मों का सार आ गया है। मैंने पाया कि इस्लाम के जो पांचों स्तंभ हैं वह सबके सब भगवद्गीता में मौजूद हैं। जैसे पहले स्तंभ इस्लाम का अर्थ है समर्पण, वैसे ही गीता में भी ईश्वर के प्रति समर्पण की बात नौंवे अध्याय में आती है। दूसरा स्तंभ एकेश्वरवाद भी दोनों का एक जैसा है। तीसरा रोजा या निराहार रहने की बात दोनों में है। चौथा नमाज या ईश्वर स्मरण और पांचवां दान या जकात पर भी दोनों की शिक्षाएं एक-सी हैं। मैं समझता हूं कि भारतीय चरित्र के उत्थान में भगवद्गीता की अहम भूमिका है। दुनिया के महानतम ग्रंथों में इसकी गिनती होती है। गीता का ज्ञान हर भारतवासी के लिए अनिवार्य होना चाहिए। गीता के ज्ञान की आज भी वही प्रासंगिकता है जो हजारों साल पहले थी।
संस्कृत सीखने और उसमें काम करने पर आपके समुदाय की क्या प्रतिक्रिया रही है? कभी आपको अपने समुदाय का विरोध तो नहीं झेलना पड़ा? मेरी वजह से मेरे समुदाय के बहुत-से लोग भी संस्कृत सीखने लगे हैं। मुझे काबुल विश्वविद्यालय में संस्कृत पढ़ाने के लिए भेजा गया था। वहां का सिलेबस भी मैंने ही तैयार किया है। वहां अब भी संस्कृत पढ़ाई जा रही है। कुछ तालिबानियों ने वहां आपत्ति की थी कि मुसलमानों को संस्कृत नहीं पढ़ाई जानी चाहिए। मैंने उनको कहा कि दुनिया में संस्कृत कोई और पढ़े या न पढ़े पर मुसलमानों को संस्कृत जरूर पढ़नी चाहिए क्योंकि इस्लाम की सारी बुनियादी बातें वेद, उपनिषद, गीता और पुराणों में मौजूद हैं। इन्हें पढ़ने और समझने के बाद अपने आप आपके ईमान में पुख्तगी आती है। उन्हें कई उदाहरण देकर मैंने समझाया जिससे वे खुश हुए और अपनी इजाजत ही नहीं दी बल्कि उन्होंने मेरी पूरी सुरक्षा का वादा भी किया। यहां भारत में भी जमाते-इस्लामी-हिंद मुझे जगह-जगह मुस्लिम समाज में लेक्चर देने के लिए बुलाता है। मुझसे यह जानने की कोशिश की जाती है कि कुरान की मूल बातें संस्कृत ग्रंथों में किस रूप में हैं। पैगम्बर मोहम्मद साहब की पैदाइश की भविष्यवाणी पुराणों में पहले से मौजूद है जिसे जानने की जिज्ञासा लोगों में बेपनाह रहती है। हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदायों से मुझे बहुत मोहब्बत मिलती है। न ही कभी किसी ने धमकी दी न ही मुझे कभी डर लगा।
आज सांप्रदायिक सौहार्द कायम करने में आप अपनी या अपने जैसों की क्या भूमिका देखते हैं? मेरा तो मानना है कि सांप्रदायिक सद्भाव रखने में भी गीता ही मददगार है। कुछ लोग संस्कृत को पुरातन ज्ञान मानते हैं पर यह ठीक नहीं है। इसमें प्राचीन और अर्वाचीन दोनों परंपराओं को जोड़कर रखने की क्षमता है। आज के जीवन मूल्यों में भी इसके सिद्धांत लागू होते हैं। हालांकि कुछ लोगों ने संस्कृत के प्रति एकाधिकार समझकर इसे व्यापार बना दिया है। वे इसका महत्व धूमिल करने में लगे हैं इसलिए संस्कृत का प्रचार-प्रसार तीव्र गति से नहीं हो पा रहा।
आप किसी सरकारी संस्थान से भी जुड़े हुए हैं? मैं भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान से जुड़ा हुआ हूं जिसे मानित या डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा हासिल है। वहां मैं शोध सहायक हूं। पर 29 साल पहले जिस पोस्ट पर नियुक्त हुआ था, अब उसी से रिटायर होने वाला हूं। मुझे आज तक कोई प्रमोशन नहीं दिया गया। इसका खासा मलाल है। दुनिया में संस्कृत कोई और पढ़े या न पढ़े पर मुसलमानों को संस्कृत जरूर पढ़नी चाहिए क्योंकि इस्लाम की सारी बुनियादी बातें वेद, उपनिषद, गीता और पुराणों में मौजूद हैं
संस्कृत जैसी कठिन भाषा से आपका जुड़ाव कैसे हुआ? संस्कृत बचपन से ही पढ़ने में अच्छी लगती थी। नौवीं तक तो ऐसे ही पढ़ा, फिर लगा कि आदर्श, परोपकार और सदाचार की जो बातें संस्कृत के माध्यम से मिलती हैं, वे और कहीं नहीं मिलतीं। तभी से यह बात दिमाग में आई कि भारतीयता को समझने के लिए संस्कृत का विशद् अध्ययन बहुत जरूरी है। हम जिस देश में रहते हैं, जिस देश का अन्न जल ग्रहण करते हैं उसके प्रति हमें वफादार रहना चाहिए। यह जरूरी है कि हम अपने देश की संस्कृति को समझें, धर्म और धार्मिक परंपराओं को समझें और मूल धार्मिक ग्रंथों को जानकर उनका अध्ययन करके समाज में उनका प्रचार-प्रसार करें। लोग संस्कृत को कठिन इसलिए समझते हैं क्योंकि उनमें जिज्ञासा की कमी है। किसी भी कार्य के प्रति बलवती जिज्ञासा होगी तो वह कार्य कठिन नहीं लगेगा। मुझमें जिज्ञासा थी इसलिए संस्कृत मुझे कठिन नहीं लगी।
क्या भगवद्गीता को आज के संदर्भ में प्रासंगिक मानते हैं? मेरी जेब में तो छोटे आकार की भगवद्गीता हमेशा रहती है। इसे ताबीज गीता भी बोला जाता है। है तो यह छोटा-सा ग्रंथ पर इसमें सभी धर्मों का सार आ गया है। मैंने पाया कि इस्लाम के जो पांचों स्तंभ हैं वह सबके सब भगवद्गीता में मौजूद हैं। जैसे पहले स्तंभ इस्लाम का अर्थ है समर्पण, वैसे ही गीता में भी ईश्वर के प्रति समर्पण की बात नौंवे अध्याय में आती है। दूसरा स्तंभ एकेश्वरवाद भी दोनों का एक जैसा है। तीसरा रोजा या निराहार रहने की बात दोनों में है। चौथा नमाज या ईश्वर स्मरण और पांचवां दान या जकात पर भी दोनों की शिक्षाएं एक-सी हैं। मैं समझता हूं कि भारतीय चरित्र के उत्थान में भगवद्गीता की अहम भूमिका है। दुनिया के महानतम ग्रंथों में इसकी गिनती होती है। गीता का ज्ञान हर भारतवासी के लिए अनिवार्य होना चाहिए। गीता के ज्ञान की आज भी वही प्रासंगिकता है जो हजारों साल पहले थी।
संस्कृत सीखने और उसमें काम करने पर आपके समुदाय की क्या प्रतिक्रिया रही है? कभी आपको अपने समुदाय का विरोध तो नहीं झेलना पड़ा? मेरी वजह से मेरे समुदाय के बहुत-से लोग भी संस्कृत सीखने लगे हैं। मुझे काबुल विश्वविद्यालय में संस्कृत पढ़ाने के लिए भेजा गया था। वहां का सिलेबस भी मैंने ही तैयार किया है। वहां अब भी संस्कृत पढ़ाई जा रही है। कुछ तालिबानियों ने वहां आपत्ति की थी कि मुसलमानों को संस्कृत नहीं पढ़ाई जानी चाहिए। मैंने उनको कहा कि दुनिया में संस्कृत कोई और पढ़े या न पढ़े पर मुसलमानों को संस्कृत जरूर पढ़नी चाहिए क्योंकि इस्लाम की सारी बुनियादी बातें वेद, उपनिषद, गीता और पुराणों में मौजूद हैं। इन्हें पढ़ने और समझने के बाद अपने आप आपके ईमान में पुख्तगी आती है। उन्हें कई उदाहरण देकर मैंने समझाया जिससे वे खुश हुए और अपनी इजाजत ही नहीं दी बल्कि उन्होंने मेरी पूरी सुरक्षा का वादा भी किया। यहां भारत में भी जमाते-इस्लामी-हिंद मुझे जगह-जगह मुस्लिम समाज में लेक्चर देने के लिए बुलाता है। मुझसे यह जानने की कोशिश की जाती है कि कुरान की मूल बातें संस्कृत ग्रंथों में किस रूप में हैं। पैगम्बर मोहम्मद साहब की पैदाइश की भविष्यवाणी पुराणों में पहले से मौजूद है जिसे जानने की जिज्ञासा लोगों में बेपनाह रहती है। हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदायों से मुझे बहुत मोहब्बत मिलती है। न ही कभी किसी ने धमकी दी न ही मुझे कभी डर लगा।
आज सांप्रदायिक सौहार्द कायम करने में आप अपनी या अपने जैसों की क्या भूमिका देखते हैं? मेरा तो मानना है कि सांप्रदायिक सद्भाव रखने में भी गीता ही मददगार है। कुछ लोग संस्कृत को पुरातन ज्ञान मानते हैं पर यह ठीक नहीं है। इसमें प्राचीन और अर्वाचीन दोनों परंपराओं को जोड़कर रखने की क्षमता है। आज के जीवन मूल्यों में भी इसके सिद्धांत लागू होते हैं। हालांकि कुछ लोगों ने संस्कृत के प्रति एकाधिकार समझकर इसे व्यापार बना दिया है। वे इसका महत्व धूमिल करने में लगे हैं इसलिए संस्कृत का प्रचार-प्रसार तीव्र गति से नहीं हो पा रहा।
आप किसी सरकारी संस्थान से भी जुड़े हुए हैं? मैं भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान से जुड़ा हुआ हूं जिसे मानित या डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा हासिल है। वहां मैं शोध सहायक हूं। पर 29 साल पहले जिस पोस्ट पर नियुक्त हुआ था, अब उसी से रिटायर होने वाला हूं। मुझे आज तक कोई प्रमोशन नहीं दिया गया। इसका खासा मलाल है। दुनिया में संस्कृत कोई और पढ़े या न पढ़े पर मुसलमानों को संस्कृत जरूर पढ़नी चाहिए क्योंकि इस्लाम की सारी बुनियादी बातें वेद, उपनिषद, गीता और पुराणों में मौजूद हैं
सौ. नवभारत टाइम्स
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मित्रो आप नहीं समझते की इस्लाम भी एक पंथ है जैसे की इसाई एक पंथ है ? अब जब हनीफ शास्त्री जी ने भी स्पष्ट कर दिया जो स्वयं मोहमदी पंथ (इस्लाम पंथ) के अनुयाई है की हिन्दू धर्म के अन्दर ही इस्लाम भी व्याप्त है. और उसमे जो भी विभ्याचार, हिंसा और द्वेष है असल में उसकी वो कुरूतिय है जो शिक्षा के आभाव में आगई, धर्म यदि कोई है इस पृथ्वी पर वो तो केवल हिन्दू धर्म है (जिसको मानव धर्म भी कहा जाता है) बाकि सभी पंथ है.
सही कहा आपने
ReplyDeleteसनातन धर्म ही दुनिया का एकमात्र पहला व आखिरी धर्म है. जिसको स्वयं ईश्वर ने बनाया.
जय हो शास्त्री जी महाराज की..
ReplyDeletehum apse sahmat ho lete hain.....jabariya nahi...dil se....
ReplyDeletepranam.
bahut badhiya intervew tyagi jee ...................................http://jaishariram-man.blogspot.com/2011/04/blog-post_23.html
ReplyDeleteधार्मिक मुद्दों पर परिचर्चा करने से आप घबराते क्यों है, आप अच्छी तरह जानते हैं बिना बात किये विवाद ख़त्म नहीं होते. धार्मिक चर्चाओ का पहला मंच , धर्मनिरपेक्ष नहीं धार्मिक बनिए.
ReplyDeleteयदि आप भारत माँ के सच्चे सपूत है. धर्म का पालन करने वाले हिन्दू हैं तो
आईये " हल्ला बोल" के समर्थक बनकर धर्म और देश की आवाज़ बुलंद कीजिये...
अपने लेख को हिन्दुओ की आवाज़ बनायें.
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