अडवाणी जी कर प्रस्थान लगभग हो चुका है। और युवाओ के नाम पर अपने लाडलो को देश के ऊपर थोप भी दिया गया है जैसे अगाथा, उमर, राहुल, दुष्यंत, आर पी सिंह, सिंधिया, जितिन, संदीप दिक्षित, सुखविंदर, सुप्रिया, स्तालिन, अरे यार पता नही कितने। इनको लिखा तो आप लोगो का कंप्युटर ही हेंग होजायगा। और मुझे बताया यह जा रहा ही की इस को लोकतंत्र कहते है। अरे भाई यह लोकतेंत्र है तो हम इस के घसियारे है क्या। अबे बिल्कुल ही बावला समझा हुआ है। सिंधिया जी श्री मंत लगाते है अपने नाम के आगे अब इस लोकतंत्र में यह कौन सी पदवी है। चलो यार जो है सो है। अब मुझे कोई यह बताये की यह महिला आरक्षण का नाटक क्या है। इस दुनिया मैं क्या हिंदू ब्राह्मण ने ही सारे पाप किया हैं बाकि सब आरक्षण योग्य है।
भाई मैने दिल्ली में देखा हैं यहाँ मॉल में जितने बिहार और पूर्वी उतर प्रदेश के पांडे, दुबे, वाजपेयी हैं शौचालय में पोचा लगा रहे हैं नही तो सिक्यूरिटी गार्ड की नौकरी कर रहे है। एक बात है नाम पूछने पर जाती बताते हुए शरमाते है। अब कोई इन नेताओ की जात से पूछे की हिंदू धरम के ज्ञान के वाहक और धरती के प्रथम पुरूष ब्रह्मण का यह अपमान। अरे हम कहेते है छत्रिय कुलवंत सिंहअस्नाधिश गोब्राह्मण रक्षक हिंदू पद पादशाही श्री मंत श्री छत्रपति शिवाजी महाराज की जय का नारा लगाते है। और उसी ब्राह्मण से यह दिल्ली और मुंबई में पौचे लगवा रहे है। अरे अंधे लोकतेंत्र के सूरदासी वोटरों जागो अरे जिसको तुम थाली में रख रख कर आरक्षण दे रहे हो जिनको दो देश पहेले भी दे चुके उनके आगे नाक रगड़ रगड़ कर नाक भी सुवाइन फ्लू की तेरहे हो गई है. अब किक्कर पर गुलाब और कमल पर कद्दू तो लोकतंत्र में ही उग सकते है. इस लोकतेंत्र में (मेने भी वोट दी है भाई) मुसलमानों की पेट की अंतडीयो में छुपी इच्छा, इच्छा हो सकती है. किसी भी और वर्ग की अभिलाषा की मांग हो सकती है. हाँ कोई ब्राहमण की क्या औकात जो अपनी इच्छा की इस लोकतंत्र में एक मांग भी रख ले. ये वो वाम दल है जो पुनर्जनम में विश्वास नहीं रखते और आरक्षण के समर्थन की मांग करते है. अरे तो भाई यदि कोई कथित खता इन ब्राह्मणओ के बाप दादो ने तुम्हारी लाल किताब के हिसाब से कर भी दी तो (जिसका की कोई सबूत नहीं) तो इनकी संतानों को क्यों सूली पर टंगे हुए हो. अरे आंबेडकर जी जिनको की परमानिक तौर पर सताया गया था उन्होंने भी १० साल का ही आरक्षण रखा था तो इन स्वर्ण (अब तो चमडे के भी नहीं रहे) का स्वर्ण कहकर कुत्ते से भी बदतेर जिंदगी क्यों जीने के लिया प्रताडित कर रहे हो. क्या इनका भी कोई मानवाधिकार है इन बेचारे कश्मीरी ब्राह्मण का भी कोई मानवाधिकार है या दिल्ली के टेंटों में ही जिंदगी बिता देंगे. मैं पूछता हु की आज पूर्वी उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण जो कभी जमींदार होते थे अब चोकीदार है तो इनके बच्चो का कोई जीने का अधिकार नहीं है. ये मुस्लमान जो हिंदुस्तान पर २०० साल राज करने और दो देश और हिंदुस्तान में ही एक प्रदेश के मालिक बनकर हमे ही सच्चर कमटी का रोओब दिखा रहे है. इन ब्रह्मणों के लिया कोई सच्चर या खच्चर बनाया है की नहीं. कभी इन ब्राह्मणों के हाथ में वेद थे अब झाडू, पौचा, चोकीदार का डंडा, गुब्बारे का डंडा, सब्जी की ठेली, पंक्चर लगाने के औजार. ही शोभा दे रहे है. और इनको गाली देने वालो की बेचारे चोव्किदारी कर रहे है. है कोई इनका माई बाप या इनकी आवाज उठाने वालो की ही आवाज बंद कर दोगे.मुझे बता दो इन साठ सालो में कितने लोग तुमने माइक्रोसॉफ्ट, नासा, हॉवर्ड, या कुछ बना दिया. सब यही के यही है. और नहीं कुछ तो संसद में जाकर देख लो. वो ही घिसे पिटे नारे आज भी लगा रहे है. क्या मिलगया ? इस दुनिया को विश्व गुरु भारत की जगह एक भ्रष्टतम देश भारत के रूप में मिलगया. जब कथित ये जातिप्रथा थी तो तो भारत विश्वगुरु था और आज जब न्याय के ५४३ देवता लोकसभा में बैठ कर नारे लगा रहे है तो देश का हाल यह हुआ है. मुझे कोई वामपंथी मित्र आकर बतये की कितने तुमने मुसलमानों और दलितों को कुर्सी दी है. परन्तु हर हाल में देश में आरक्षण होना चाहिय चाहे देश का बजा बज जाये.अब बात की जा रही है. महिला आरक्षण की अरे संसद में ३३% महिला आ जायंगी तो घर में बच्चो को कौन संभालेगा, खाना कौन बनेगा, कोई मुझे बताये की कहाँ से में अपने बच्चो को जिजाबाई और कौशल्या का उधाहरण दूंगा. मुझे तो मार्गेट थेचर और लेडी हार्डिंग लानी पड़ेंगी और उनको समझाने के लिया दुबारा से पश्चिमी इतिहास पढ़ना पड़ेगा. भाई मेरी माँ भी पड़ी लिखी है मुझमे संस्कार उसी ने भरे है और मुझे मेरे पिताजी ने दुनिया दारी सिखाई है. परन्तु अगली पीढी को पिताजी रोटी बना और माँ हवाई जहाज चलाना सिखायागी. इसी लोकतेंत्र में सारी मीडिया सेम्लान्गिता की पुरजोर वकालत कर रही है. बिना शादी के रहें का कानून बन चूका है. अरे मुझे समझ नहीं आता कहाँ मर गय देश के बुजुर्ग जो कुछ नहीं बोल रहे है. अरे कल को तुम्हारी बेटी तुम्हारे मुहं पर तमाचा मारकर किसी दुसरे लड़के के साथ तुम्हारे ही सामने वाले मकान में रहेने लगजाये तो आप उस लड़के का उखाड़ क्या लोगे. यदि यही लोकतेंत्र है तो मेरा पहेले खून बदल दो इसमें किसी अंग्रेज का चढा दो जापान के रॉबर्ट का दिमाग लगा दो तब इस कलयुगी लोकतंत्र का नाटक देख सकता हु. आश्चर्य यह है की यह ५० - ६० साल के बुजुर्ग क्यों इस कानून का विरोध नहीं करते। या फैशन टीवी और मॉल ने दिमाग सुन्न कर दिया. अरे भाई कुछ तो करो या आने वाली पीढी को यह हिजडो की जमात देकर जाओ गे. मुझे डर यहे है की कोई मुझे पुरातेंपंथी या दकिअनुसी न सोच ले. अरे कल को पलट कर यही न पूछले की है तुम्हारा कोई गे (पुरुष मित्र ) है की नहीं. अरे भाई विश्वाश नहीं, आप नहीं देख रहे आज कॉलज में किसी की गर्ल फ्रेंड नहीं तो पर्सनालिटी में नुक्स निकल जाता है. कल आप और मुझमे भी और तो और कल एक पुरुष दुसरे पर शाररिक शोषण का आरोप भी लगाया गा. क्षमा करे मित्रो मेरी ऊपर लिखी किसी बात से किसी भी प्रगतिशील, आधुनिक, लोकतंत्र प्रेमी के हृदय को ठेस पहुची. अरे मित्रो में तो उस देश का वासी हूँ जिसने दुनिया को मगध में लोकतंत्र का बीज बोया है. में तो उस चाणक्य का पुत्र हु जिसने भारत को भारत बनाया था. जिसने खुद नहीं एक साधारण व्यक्ति को चन्द्रगुप्त बनाया था. मुझे नहीं चाहिय इस देश का यह घटिया और बेबस लोकतेंत्र जिसमें हर कुसंस्कार की जगह तो हो परन्तु एक वैदिक भारतीय को दुत्कारतो हो. क्षमा करे बुजुर्ग जिनका में सम्मान तो करना चाहता हूँ परन्तु जो खड़े होकर वोट लेने वाले नेताओ को नसीहत भी नहीं दे सकते जो मॉल में एइस्क्रीम खाते, बहुओ के पर्स ढोते , बच्चों के नेपकिन बदलते, हल्दी राम के एक एक भठूरे पर इमान बैचते. मेरे देश के ब्राह्मणों दोस्तों एक कसूर तो हुआ है की बच्चे पैदा नहीं किये। यदि किये होते तो संसद में जय जयकर होती. यह पोचे और चोकीदार वाला डंडा नहीं होता. येहे तो दोस्तों शुरुवात है. अभी तो ४२ संसोधन ही हुए है तुम्हार संशोधन जब तक नहीं होगा जब तो तुम्हे और मुझे यह लोकतंत्र का झुनझुना बजाना होगा. अपने बाप दादा को गाली देनी होगी। और कीकर पर आम उगते देखना होगा।
(एक भारतीय जो मानता है की मेरे पुरखे इस धरती पर नौ अवतार ले चुके और दशम अवतार लेंगे)
itnaa zahar n uglo mere bhaaii, apni izzat khud neelaam kar rhe hain brahmin
ReplyDeleteवाह मज़ा आ गया
ReplyDeleteDear GJ
ReplyDeleteI regard your suggestion. But the thing is that you can not see your death in pieces daily. As far as the thoughts are concerned I am not professionally a fellow of journalism. I am a common man of this country. But I tell you that I am not the person who will leave his right to expression. I believe sir -
जिसके हाथ है वो हाथ से , जिसके मुह है वो मुह से, जिसके पास कलम है वो कलम से, गिर पड़ा तो जबान से, वो नहीं तो सांसो से, वो भी नहीं तो मरकर. पर हर हालत में अपनी असिमिता पाउँगा और फिर इस जनम में नहीं तो अगले में सिलसिला चलता रहेगा तब तक के मंजिल न मिलजाए.
आप साथ हो या न हो निशाना सामने होना चाहिय. और वो मेरे पास है.
क्या आप तैयार हो?????????????