Wednesday, July 8, 2009

चीन का नरेंद्र मोदी कौन ???????????????????????

पता नही क्यों अभी तक लोग इस उत्तर से रूबरू नही हुए की चीन में निरही, बेचारे, मासूम और निर्दोष मुसलमान का नरसंहार कर किसने दिया ? चीनी मीडिया के हिसाब से 156 लोग मारे गये। ये 156 लोग वो हैं जिसे चीन का मीडिया बताना चाहता है। अब जब चीन अपने ही मुह से इतने कह रहा है तो असली में कितने होंगे समझने के लिए ज़्यादा सर नही खपाना पड़ेगा।
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अब प्रश्न यह उठता है की भारत का आधुनिक, लोकतंत्र पसंद मानवाधिकारो का एकमेव रक्षक भारतीय मीडीया अपने अंतराष्ट्रिए संगरक्षको के साथ अभी तक अपनी चिरप्रचित शैली में एक दूसरा नरेंद्र मोदी चीन में क्यो अभी तक नही खोज पाया? सवाल यह नही की चीन अपनी रक्षा करता है की नही परंतु घोर आश्चर्या का विषय मेरे लिए मीडिया का अपनी चिरप्रचित शैली में फोकस करना अभी तक क्यों नही है।
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चीन अब भारत तो है नही जो अपने लोगो की रक्षा ना कर पाए और एसा भी नही की लोकतंत्र के धंधे के सोल डिसट्रिब्युटर से डरता हो। और न ही अभी तक उसने फ्रेंचाईसी ली है की जो किसी की धौंस में आए। मुद्दे की बात यह भी नही की हमारे अपने वामपंथी दोस्त भी चीन की इस देशभक्ति पर अपने होठ को सिले क्यों हुए है। क्यों नहीं अभी तक कोई टिपण्णी की है।
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अब दूसरा पहेलु इस बात का है की चीन ने गलत क्या किया है? चीन ने कुछ भी गलत नहीं किया है। उसके सामने प्रशन यह है की पहेले देश के ९०% हान लोगो की रक्षा करे या उन लोगो की जो चीन से अलगाव रखते हुए दुसरे देश की मांग रख रहे है। चीन इस प्रशन से घबरह भी नहीं रहा है। उसने तुंरत दोनों स्तर पर उत्तर देदिया जहाँ एक तरफ उसने अपने सैन्ये बलों को पूरी छुट दे दी वहीं दूसरी और उसके अपने हान समुदाय के लोग पिल पड़े इन अलगाववादियो पर।
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तो बात अब मुस्लिमो की तो फिर से ये राजनीती के शिकार ही होंगे। पहेले अमरीका ने रूस के खिलाफ इन मुसलमानों का इस्तेमाल किया। फिर इन्ही को दुनिया भर में बदनाम किया तब चीन चुप्पी लेकर बैठा रहा था। अब अमेरिका ने पाला बदल कर अस्सलावालेकुम (ओबामा से) करके फिर वहीँ पहुँच गया। अब सुरक्षित जगह से चीन पर मानवाधिकारो के नाम पर वार करेगा। चलो जो हो सो हो।
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भारत के सन्दर्भ में यह बात इसलिए बता रहा हूँ की न चीन गलत हैं न अमेरिका और ना ही इस्लामिक शक्तिया। इस में दोस्तों, हम भारत वाले ही गलत है। वो कैसे ? देखो अमेरिका को दुनिया की थानेदारी करनी है और वो जब सर्वशक्तिमान है और अपनी अर्थव्यवस्था चलानी है तो इसमें बिलकुल भी गलत नहीं है। दुनिया के बाजार पर अपने देशवासियो का पेट पालना है । दूसरी और चीन है, उसे समग्र चीन एक रखना है तो अलगाव बिलकुल ही गलत है उसके लिए। तो वो भी अपने देश और उसके वासियो की रक्षा कर रहा है। और हान समुदय को पूरी छुट दे रखी है जो की बिलकुल भी गलत नहीं। तीसरी तरफ इस्लामिक शक्तिया है जो निश्चित रूप से अपना विस्तार करती रहेती है। उसको अरब, अफ्रीका के बाद दक्षिण पूर्वी एशिया में बिना एक पैसा खर्च करे बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देश मिल गए। यूरोप और अमेरिका में इसलाम अपनाने की होड़ मची ही हुई है। आप देखलो अभी माइकल जैकसन को वो भी मुस्लमान बनगया था। उसके विशाल फैन उसकी नक़ल तो निश्चित रूप से करेंगे है। एक स्पेन की असफलता पिछले १५०० वर्षो में लगी एक मात्र विफलता है। अब बारी चीन पर इस्लामिक शक्तियों की है।
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तो रूस को मिटटी में मिलाने के बाद और अमेरिका में अपना अस्सलावालेकुम बोलने वाला राष्ट्रपति बैठने के बाद स्वाभाविक ही जीत के जोश में उसने चीन पर भी अटैक कर दिया।अटैक कर दिया से मेरा तात्पर्य पिछले हफ्ते हुए हान और मुस्लिम समुदाय के बीच दंगो से है। अब दुनिया में दो बराबर की शक्तियों में टक्कर है।
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मुझे हिन्दू होने के नाते ना तो कोई ख़ुशी है और ना ही कोई रूचि। क्योंकि हम हिन्दू तो एक गहरी चीरनिंद्रा में सोये हुए हैं। और पूरी तरहे से इस्लामिक शक्ति के हाथो पराजित है। इसलिए सवाल ही पैदा नहीं होता की हम कोई रोल निभाए।
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अब सोचो की जिस प्रकार से अपने हान समुदाय के लोगो को हाथ में डंडे, चाकू, रोड लेते मुस्लिमो पर अटैक करते देखा है यदि कहीं हिंदुस्तान में कोई हिन्दू कर देता स्वयं को बचाने के उदेश्य से तो उसका मीडिया खाल में अभी तक भुस भर चुकी होती। और वो हिटलर की लाइन में खडा हुआ अपनी जान सांसत में पा कहीं पर अपने दिन गिन रहा होता। परन्तु मानवाधिकारों और सेमेंगिकता की डीलरशिप लिए हुए वामपंथी अभी कोई मुद्रा अख्तियार ही नहीं कर रहे।
मैं आज लोगो से पूछता हूँ की क्या चीन इन मुस्लिम आक्रंताओ को देश तोड़ने दे या अपने देश को चीन एकजुट रखे? दूसरा क्या देश में रहेते ९०% हान समुदाय की रक्षा करे या मुस्लिम गुंडों के समक्ष आत्मसर्पण कर दे?
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हर देशवासी का कर्तव्य है की देश को हर हाल में एकजुट रखे और देश की विघटनकारी ताकतों को परास्त करे।उस में गलत क्या है। हमारी तरह नही की बिना कुछ भी जाने कश्मीर में से सेना की वापसी शुरू कर दे। दूसरा लोकतंत्र या सरकार इसी शर्त पर चलती है की वहां पर सर्वप्रथम देश के बहुसंख्यक का विश्वाश जीता जाये और उनकी रक्षा की जाये। यह लोकतंत्र का मूलभूत सिदान्त है। तभी सरकार का इकबाल अक्षुण रह सकता है। देश की भौगोलिक लकीरे समुदाय और धरम के नाम पर ही खींची गई थी और किसी हिन्दू ने नहीं खींची थी। दुनिया के दो सबसे बड़े पंथो इसलाम और इसईओ ने ही खींची थी। हिन्दुओ को तो जो टुकडो के रूप में देदिया उसे ही अपना देश समझ कर जिंदगी बसर कर रहा है। इसमें चाहे बात कश्मीर की हो या तिब्बत या बात हो हिंदुस्तान में पाकिस्तान और बांग्लादेश के भगाए हिन्दू की। इसलिए प्रशन ही नहीं उठता की कोई इनकी बात करे।
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"हिन्दू घटा देश बँटा" नारे में क्या गलत है? चीन ने भी मान लिया की जहाँ हान समुदाय नहीं वहां चीनी शासन नहीं और गलत भी क्या है। अब लोगो को दुःख इसी बात का है की ना तो चीन में कोई वोट बैंक है और ना चीन किसी पाकिस्तान से त्रस्त, ना ही अमरीका की दादागिरी को मानता और ना ही उसके पास नपुंसक और सेम्लेंगिक टाइप नेताओ की जमात। जो करता है डंके की चोट पर करता है जैसे रूस ने चेचेनिया में किया, अमरीका ने इराक में और फ्रांस ने मुस्लिमो की दादागिरी को ख़तम करके वोही वो इन गुंडों से निपटाने के लिए कर रहा है। क्योंक सवाल देश का है और उसमे रहते १४० करोड़ लोगो का। जिनकी प्राण, अस्मिता की रक्षा चीन सरकार के ऊपर है और यह जिम्मेदारी उन मुट्ठी भर गुंडों के तुष्टिकरण से ज्यादा बड़ी है। हमारी तरह चीन सरकार और वहां की लोग नापुंसको की जमात नहीं जो कुछ लोगो की गुंडागर्दी से दब जायेगी और समर्पण कर देगी। वो उनको धरती में गाड कर पार्क भी बनवा दे तो कोई आश्चर्य नहीं जबकि सभी वो तथ्य जानते है की उसने अपने ही हान और चीनी लोगो को थेईमन चौक पर टैंको के नीचे जिन्दा ही कुचल दिया था और सारी दुनिया ने देखा था। इन मानवाधिकारो के थोक विक्रेताओ ने भी। अब देश के १४० करोड़ लोगो की खुशहाली के लिए यह कोई बड़ी कुर्बानी तो नहीं? क्योंकि आप भी तो अपने सम्पूर्ण शारीर को बचाने के लिए सडा अंग काट कर ही तो फेंक देते हो। यह पटर पटर और झूटी बोलने की विकृत आजादी से तो अच्छा ही हैं। इसमें तो कोई नरेंद्र मोदी नहीं ढूंडता। क्षमा करे वो लोग जो नरेंद्र मोदी और चीन सरकार के मेरे इस लेख से तुलना करने का दुहसहस करे। बात है दो प्रकार के विचारो की और बात है देश को बचाने की मानसिकता और बहुसंख्यकों के अधिकार और उनको अनावश्यक रूप से पड़ने वाली मानवाधिकारो की विकृत मानसिकता, दोयम दर्जे की भोंडी मीडिया और ढोंगी वामपंथियो की है। जो आज खामोश है। निर्णय आपका हैं की पटर पटर और खोखली बाते करनी है या कृष्ण की तरह निर्णय। फिर चाहे जो हो। वसुधेव कुटम्बकम परन्तु सत्यमेव ज्येयेत ।

8 comments:

  1. सच ही तो कहा है आपने....जानते सब है ....बोलता कोई नहीं.....

    आत्म विश्वास से भरपूर एक अच्छा आलेख।

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  2. जहाँ मुसलमान बहुसंख्यक है, उसे अलग देश चाहिए.

    इस बार वामपंथी फँस गए है. अमेरिका होता तो गरियाते भी. एक तरफ बाप चीन है और दुसरी तरफ प्यारे कथित अल्पसंख्यक.

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  3. आसान शब्दों में सही विश्लेषण. जो कुछ आपने बताया वह सभी समझते होंगे लेकिन ८०० वर्षों की गुलामी और उससे भी ज्यादा ६० सालों की आजादी ने इतनी स्वार्थपरता भर दी हिन्दुओं के जेहन में कि "मैं" से आगे बढ़कर कुछ सोचता ही नहीं.....

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  4. अति उत्तम लेख… बेचारे "लाल बन्दर" समझ नहीं पा रहे कि किस तरफ़ दुम हिलायें…

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  5. Guys I wanted to speak, kind of analysis I see in your blogs or Suresh C. blogs that is rare. You guys rock, God...... I am inspired .... to write to think and lastly to read more ....... its addictive.

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  6. I don't have words to explain my feelings on this article.... really bhayi you rocks.

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  7. सही आईना दिखा दिया आपने भईया, अपनी माँ के भडवों हिन्दी मीडिया व लाल पिछवाडे वाले कमुनिष्टों को और विदेशी पैसे से पलने वाले इन मानवाधिकारवादियों को, पता नही अब कहाँ कान में तेल डाल कर बैठ गये आँखों के अन्धै?

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