मुज़फ्फरनगर - सच तो पर नंगा और क्रूर ही होता है !!!!!!!!!!!!
जाहिलता और पक्षपात की भी एक सीमा होती है परन्तु मुजफरनगर में मीडिया और नेताओ की बेशर्मी और मुस्लिम परस्ती सभी हदे पार कर गई । अल कायदा भी शर्मा गया भारत में मीडिया और नेताओ के हातमताई कुकृत्यो से। उसने भी मुसलमानों से अपील करनी पड़ी की मुस्लिम लोग हिन्दुओ का न मारे और सताए। भारत का प्रधानमंत्री महाभारत कालीन ध्रतराष्ट को भी पछाड़ते हुए अपनी बेहयाई का परचम लहरहा रहे है। दुष्टता और नीचता की हदे पार करते हुए मीडिया मुजफरनगर के दंगो का पाप हिन्दुओ पर मढ़ रही है। मतलब यह है की हिन्दुओ को मारेंगे भी और रोने भी नहीं देंगे और ऊपर से दीवारों में और चिनवा देंगे। राजनीति करने के और बहुत स्थान है पर इन मौतो पर नहीं होनी चाहिय। परन्तु जिस प्रकार से मुजफरनगर में मुस्लिमो ने हिन्दुओ पर हिंसा का। तांडव किया वो न केवल खौफनाक है बल्कि आने वाले दिनों में घडी की सुई बंटवारे वाले दंगो के दौर में जाने का अंदेशा देती है।
हिन्दू को न केवल भारतवर्ष में दोयाम दर्जे का नागरिक बनाया जा रहा बल्कि कुत्तो और बिल्लिओ से भी निचेले पायदान पर रखकर, उनको सुखाने की साजिश रची जा रही है। बात मुलायम / कांग्रेस / सोनिया गाँधी / मन मनमोहन सिंह / मोदी / राहुल गाँधी की नहीं बल्कि बड़ा प्रशन यह है की ८०% हिन्दू क्यूँ अपने ही देश में मजलूम और हताश रहें? इस से ज्यादा आजादी तो शायद सर्कस के तोतो और तीतरो को होती है ।
जो लोग इन दंगो को सांप्रदायिक बता रहे है वो गलत है. यह दंगे साम्प्रदायिक हो ही नहीं सकते। यदि अपनी बेहेन के रक्षा करना पाप है तो आग लगा दो राखी के त्योहारो को, ख़ारिज कर दो रक्षा बंधन की छुट्टियों को, बंदोबस्त कर दो गलीच भाई - बेहेन के त्योहार भैया दूज को, घोट तो गला करवा चौथ का, तालीबीकरन कर दो तीज त्यौहार का। किस मीडिया ने मुस्लिमो द्वारा मारे गए "सचिन और गौरव " की बेहेन की इज्जत बचाने के लिए गुहार लगाईं? जो मीडिया और नेता अपने हलक में एक एक हाथ वाले जबान को "दुर्गा शक्ति नागपाल " और जिया उल हक़ की बीबी के लिए हिला रहे थे उनके गलो में थार मरुस्थल का सुखा क्यूँ पड़ गया? जो लोग आसाराम बापू को १५ दिन से महिषासुर बनाने पर तुले हुए है उनको गौरव और सचिन के बेहेन क्यूँ नहीं दिखाई देती? उसकी इज्जत का सौदा मीडिया के भेडिया करने पर क्यूँ तुले है ? मीडिया और नेता क्यूँ राजेश वर्मा की आखरी शूट की हुई वीडियो लोगो को नहीं दिखाती की कैसे मुसलमानों ने मीडिया पर हमला किया।
चढ़ा दो आसाराम को फांसी पर किसी का कुछ नहीं बिगड़ेगा, मल दो सारे जहाँ का कीचड़ हिन्दू धर्म पर बाबाओ के कुकर्मो को दिखा दिखा कर पर झूठी सेकुलरता के लिए ही सही पर दुनिया को मुजफरनगर का सच तो बताओ।
चढ़ा दो आसाराम को फांसी पर किसी का कुछ नहीं बिगड़ेगा, मल दो सारे जहाँ का कीचड़ हिन्दू धर्म पर बाबाओ के कुकर्मो को दिखा दिखा कर पर झूठी सेकुलरता के लिए ही सही पर दुनिया को मुजफरनगर का सच तो बताओ।
कौन कहेता है यह हिन्दू मुस्लिम दंगा है। कदापि नहीं, यह दंगा नहीं हिन्दुओ की चीत्कार है अपनी बेहेन, बेटी, बहु को राक्षशो से बचाने की। कोई नेता और मीडिया वाला बताये तो सही की किस हिन्दू ने मुस्लिमो के घर पर जाकर आक्रमण किया है. जब सोनिया गाँधी, दिग्विजय सिंह , मुलायम सिंह और प्रधानमंत्री अपनी बेहेन बेटी की रक्षा करने का दम भरते है तो मुजफरनगर के हिन्दू से सरकार क्यूँ उम्मीद करती है की वो अपनी घर की इज्जत को धर्मनिरपेक्षता के ख़ातिर सडको पर मुस्लिम गुंडों से लुटने दे।
सब को पता है की पश्चिम उत्तरप्रदेश हर चीज बर्दाश्त करने की कुव्वत रखता है परन्तु इज्जत के सामने हजार जाने भी उसके लिए कोई मायने नहीं रखती। जो मीडिया और नेता अभी भी इसे साम्प्रदायिक दंगा सोच रहे है और गोधरा/भागलपुर से तुलना कर रहे है तो वो बहुत बड़े खतरे से शतुरमुर्ग की भांति अपनी गर्दन रेत में घुसाने का प्रयास कर रहे है। यह उन सभी दंगो से अलग है जो विगत में हिंदुस्तान में हुए है, पश्चिम उतरप्रदेश का गुस्सा दिल्ली के आस पास हिंसा का वो तांडव रचने की कुव्वत रखता है जिस से दिल्ली की सत्ता को भी एक बार गंभीर संकट में डाल दे।
यह वो क्षेत्र है जिसने १८५७ की क्रांति की थी. यह वो स्थान है जिसने मुसलमानों के बड़े बड़े गाजी को हरिद्वार में १००० वर्षो तक घुसने नहीं दिया, कृष्ण भूमि को मस्जिदों में तब्दील करने वाले , श्री राम जन्मभूमि को बाबरी मस्जिद में बदलने वाले, सोमनाथ और काशी विश्वनाथ को मस्जिद बनाने वाले मुग़ल सल्तनत दिल्ली से २०० किलोमीटर दूर हरिद्वार की धरती को नापाक नहीं कर पाए। जो नेता और अभिनेता मीडिया इस इतिहास को नहीं जानते वो मुजफ्फरनगर के दंगो के सच से खेल सकते है परन्तु जो इसका अंश मात्र भी जानते है वो क्रूरता के खतरों से सचेत हो जाये। यह सेकुलर नेताओ के लिए एक उचित समय है इन दंगो को समझने का और जो नहीं समझ सकते उनको पश्चिम उतरप्रदेश के एक और कडवे सच से रुबुरु करा दू। भारत राष्ट ने चौधरी चरण सिंह की लीडरशिप स्वीकार कर देश का प्रधानमंत्री बनाया, सदूर पश्चिम से पूर्व तक उनका नेतृत्व फैला, जाटो की सभी खापो ने उनका नेतृत्व स्वीकारा परन्तु पश्चिम उतरप्रदेश के किसी जाट ने बहार के जाट नेता का नेतृत्व नहीं स्वीकारा, राजस्थान का जाट नेता शीश राम ओला, हरियाणा का कांग्रेसी मुख्मंत्री हुड्डा या दूसरा जाट नेता चौटाला यदि ५० वोट भी इधर से उधर कर दे पश्चिम उत्तरप्रदेश तो मान जाये। मेरा किसी नेता का अपमान करना उदेश्य नहीं है मैं तो इस प्रदेश की आन बान और शान से अवगत करा रहा हूँ जिसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश कहा जाता है । सच्चाई से अनिभिज्ञ और झूठ को जीना उदेश्ये नहीं होना चाहिए।
खैर अतिश्योक्तिओ और विगत की वीरता से यदि बहार आये तो देश के नेताओ को समझना चाहिए की सच्चाई और क्रूरता हमेशा के लिए नहीं छुपाई जा सकती गुजरात के दंगो के पीछे "गोधरा के मुस्लिमो द्वारा नरसंहार" छुपाया नहीं जा सकता। कंधमाल में दंगो के पीछे लक्ष्मण सरस्वती की हत्या की सच्चाई नहीं छुपाई जा सकती और उसी प्रकार मुजफरनगर के दंगो के पीछे उस हिन्दू बेहेन की इज्जत से खिलवाड़ भी नहीं छुप सकता। बात किसी एक जाट की नहीं है यह हिन्दू अस्मिता कि रक्षा की तड़प है और जिस प्रकार हिन्दुओ ने एकजुटता दिखाई है यह आने वाले भारत की न केवल राजनैतिक बल्कि सामाजिक परिवर्तन का कारण बनेगी। आज बेचारे हिन्दुओ के क्या बस में है जो वर्तमान के जिन्ना अजाम खान के गुंडों के सामने अपनी बेहेन की इज्जत की रक्षा करेगा। जो लोग महा पंचायत को दोषी बता रहे है वो पश्चिम उत्तरप्रदेश का इतिहास जाने। यह कोई उल्लास की पंचायत नहीं थी यह इस प्रदेश की परम्परा है की कोई निर्णय जनमानस के लिय लेना है तो वो पंचायत में ही होते है जैसे आप लोगो के आर.डब्लू.ऐ. की मीटिंग्स में लिए जाते है या कोर्परेट मीटिंग्स में होता है। हाँ पाप हुआ है और इतिहास साक्षी रहेगा की पंचायत से लौटते किसानो और आम आदमियो पर मुस्लिम गुंडों ने हतियारो, अग्ने शाश्त्रो से हमला किया और निरही हिन्दुओ को मारकर नदी में बहा दिया और आप इनको साम्प्रदायिक दंगे बोल रहे हो। इस से हास्यप्रद तो कुछ हो ही नहीं सकता, जिस सच्चे मुस्लमान को कर्बला की घटना का पता है वो हिन्दुओ पर एसे क्रूरता नहीं कर सकता।
यह तो केवल और केवल सत्ता का अहंकार, प्रशासन की निरंकुशता और सहयोग, राजनेतिक समर्थन के आत्मविश्वाश से लबरेज कौम ही कर सकती है और आज समय में वो मुस्लिम है इसमें कोई शक नहीं। सचिन गौरव के हत्त्यारो को रात को ही जेल से बरी करवा देना उनके आत्मविश्वास की गवाही देती है। प्रधानमंत्री, सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी का अखिलेश यादव के बाद का दौर राजनेतिक बढ़त की चुगली करती है और मीडिया इसे साम्प्रदायिक दंगा बताने और मोदी और अमित शाह जैसे को घसीटने की निर्लाजता करती है। क्या विएचपी की साध्वी प्राची ने कहा की हिन्दू की बेटी से छेड़ छाड करो , या बी जे पी के हुकम सिंह ने कहा की सचिन गौरव को मौत के घाट उतार दो, या अमित शाह ने फोन करके सचिन और गौरव के हत्त्यारो को आधी रात को मुस्लिम अरोपियो को जेल से निकालने के हुकम दिया, या नरेंद्र मोदी ने महा पंचायत का आह्वाहन किया सनद रहे भारतीय किसान यूनियन ने भी पंचायत का अवहान किया था जिसका भाजपा या संघ परिवार से दूर दूर का रिश्ता नहीं।
तो फिर कहाँ से आ गया साम्प्रदायिक दंगा, मत भूलो पश्चिम उतरप्रदेश में मुस्लमान ४०% के अकड़े को छूता है तो अलपसंख्यक तो बिलकुल भी नहीं है। असल में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने हिन्दुओ की मौत का वोट के बदले सौदा किया है और मीडिया ने अपने ही बिरादरी के राजेश वर्मा की हत्या का सौदा किया है और आप बता रहे है की यहाँ साम्प्रदायिक दंगा हुआ है। मुस्लिम गुंडे सेना के जवानो पर चढ़ बैठे, जब ऐके ४७ और बारूद मिलने लगा मस्जिदों में से तब जाकर सेना को भी पता चला की तैयारी कितनी थी। सेना से मुकाबला करने को तैयार मुस्लिम गुंडों को आप हिन्दू से साम्प्रदायिक दंगा करने की कहानी गढ़ रहे हो और जो देश की सेना से दो दो हाथ करने को तैयार है वो उन हिन्दुओ का क्या हाल करेगा जिनके घर में कुत्ता आ जाये तो डंडा ढूँढना पड़ता है.
और दूसरा झूठ मीडिया यह बोल रही है की अमन और शांति के नगर मुजफ्फरनगर में "साम्प्रदायिक दंगे " हुए है। जिस मीडिया को १५ दिन बाद भी मुजफरनगर और मुजफरपुर में कन्फ्यूजन है वो पुरे देश को हिन्दू मुस्लिम के बारे में कन्फ़ियुज कर रही है। १९८८ से लेकर १९९६ तक हिन्दुओ ने मुजफ्फरनगर में दिवाली नहीं मनाई थी, जबकी ईद के मुबारके फिजा में घुलती रही इस दौरान।
मीडिया को कायदे से यह समझना होगा रिपोर्टिंग करते वक्त हिन्दुओ के नरसंहार को कब तक छुपाते रहेना होगा। नेताओ का पेट तो कभी नहीं भरेगा चाहे देश के दुकड़े टुकड़े ही क्यूँ न हो जाये, समझने के बात यह है की मीडिया भी क्या पूरी तरह सत्ता के हाथो बिक चुकी है
आजम खान और पाकिस्तान की मांग करने वाले जिन्न्हा में कोई भी अंतर नहीं उसी ठसक से देश के हिन्दुओ को दुनियादारी का इल्म करा रहा है अजाम साहिब जैसे १९४२ से पहले जिन्न्हा साहिब कराते थे । शुद्ध हिन्दू पवित्र कार्य जैसे कुम्भ मेले का नियंत्रण अपने हाथ में लेकर, हिन्दुओ को चिडाना और हिन्दुओ को उन्ही के घर नोआखाली की दंगो की तरह गाजर मुली की तरह काट देना है।
आज मुजफरनगर दंगे मुसलमानों के राजनेतिक, भौतिक, सामाजिक उत्थान के नतीजे है, यह पिछले कई सालो से हिन्दू को दुनिया के इस खित्ते में कमजोर और बाँटने की ही एक कड़ी है जिसमे हमेशा की तरह मान सिंह और जयचंद मिले हुए है और आजम खान, चंगेज खान , मोहमद अली जिन्न्हा, अकबर, औरंगजेब सब महान है। आखिर जब भारत माता जिस समाजवादी नेता के लिए डायन है और वन्दे मातरम हराम है उसके कृत्यों को हम साम्प्रदायिक दंगा बता कर निरही हिन्दुओ को कीड़े मकोडो से भी बदतर हालत में डाल रहे है। जो लोग सरे आम १५ मिनट में पुलिस के हटा लेने पर १०० करोड़ हिन्दुओ का सफाया करने का न केवल दम भरते है बल्कि मुसलसल कर भी रहे है। उनके इस कृत्य को केवल दंगा कहेना और हिन्दुओ को इसका दोष देना केवल और केवल देशद्रोह ही कहलाया जा सकता है।
नेताओ और मीडिया के झूठ को न तो सच्चा हिन्दू पचा सकता और न ही सच्चा मुस्लमान।
आखिर लव जिहाद को मात्र शुगुफा मान कर ख़ारिज कर देना कितनी समझदारी होगी जब की देश की बहु, बेटी और बेहेन की इज्जत दाव पर है पर हिन्दुओ को बचाया कैसे जाये, कव्वे कांव कांव बंद करे तब न।
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