Sunday, September 8, 2013

सच्चाई मुज़फरनगर के दंगो की !!!!!!!!!!!!!


दंगे होना असल में किसी भी देश के लिए सबसे बड़ी असफलता की निशानी है।

पहले सोचा की क्या लिखा जाये इन दंगो पर जब मन पहेले से ही देश की अर्थव्यवस्था के लिए ख़राब है। देश अभी बाहरी ही पीडाओ से व्यथित था और अब इन दंगो ने अंदरूनी भी जख्म हरे कर दिए गए है .

मुजफरनगर दंगे !! वास्तव में जैसा की मीडिया में पहले तो देर से रिपोर्ट हुई फिर इन्हे बेवकूफाना रिपोर्टिंग के शिकार बनाया गया। मीडिया में एक दो को छोड़ कर वैसे तो बाकी सब कार्टून लोग भरे पड़े है जिनके चैनल का पत्रकार मारा इन दंगो में वो भी इसे मुजफरनगर नहीं मुज्जफरपुर बता रहे थे। खैर जब देश पर ही कटपुतली और जोकर राज जमाये बैठे है तो इस पत्रकारों से तो शिकायत ही कुछ नहीं।

मुद्दा यह है की बहुत से लोग मुजफरनगर दंगो को बीजेपी की या संघ की करतूत बताते फिर रहे है और  अपनी अपनी सुविधा दंगो को इस्तेमाल कर रहे है । मैं जो वास्तव में सेकुलर दलों की निकृष्ट राजनीती और विचारो को चिमटे से भी छूना पसंद नहीं करता उनका भी इन दंगो के लिए तात्कालिक दोष नहीं देना चाहता। असल में यह दंगे किसी भी पक्ष / विपक्ष की रणनीति का परिणाम नहीं है वो चाहे मुस्लिम एक समाज/धर्म  के रूप में  भी क्यूँ न हो। यह जो हुआ वो वास्तव में एक हकीकत है आज हर उस गाव, कसबे, जिले की इस देश में है जहाँ पर हिन्दू मुस्लिम एक अच्छी खासी तादाद में रहेते है। इसको न तो कोई नेता रोक सकता, न प्रशासन, न ही पुलिस और न ही सेना। क्यूंकि खेल खेल में देश का  माहौल इतना ज्यादा विषाक्त कर दिया गया है जहा पर दंगे रोकना और उनके कारन ढूंढने का महत्व ही ख़तम हो गया है।
आप सेना और पुलिस से क्षणिक शांति तो करवा सकते है परन्तु कहाँ कहाँ और कितनी देर शांति होगी यह कहा नहीं जा सकता। 

थोड़ा इतिहास में झांके की देश में पिछले कुछ दशको से हिन्दुओ को जिस प्रकार से दुत्कारा गया है, एक घृणा का पात्र बनाया गया है यह मुजफरनगर दंगे उसकी एक खनक मात्र है। जैसा की पहले भी होता आया है जो आग लगाता है उसी को उस का शिकार भी बनना पड़ता है यह कोई आज की बात नहीं अनंत काल से यह ही होता आया है।

विशेष रूप से तथाकथित बड़े राजीनीतिक दलों से कहेना चाहूँगा की जिस प्रकार हर दंगो के लिए संघ और बीजेपी को दोषी ठहराने के परम्परा चली है उस से प्रशासन ने अपनी काम करना छोड़ दिया। क्यूंकि दंगो के अपराधिओं पर कार्यवाही तो सरकार के आका करवाएंगे और फिर प्रशासन को उसी हिसाब से तरोड़ेंगे।  अब हालात यह है की पुलिस नामक तंत्र तो ख़तम हो चूका और सेना जिस पर की पाकिस्तान और चीन जैसो से  देश को बचाना है को देश की गलियों में तैनात करा जा रहा है। पता नहीं फिर नक्सलियो के खिलाफ सेना को उतारने में क्या दिक्कत है और कौन इसका विरोध  करते है?

देश में दंगे पहेले बड़े शहरो में होते थे फिर ८० के दशक में छोटे शहरो में होने लगे परन्तु अब मुजफरनगर का दंगा गावो से शुरू हुआ है और पुलिस, नेता और सेना के बस की नहीं इसको जल्द थामना। 

धर्मनिरपेक्ष नेताओ के खेल खेल में जिसमे केंद्र की सरकार के सरताज मनमोहन सिंह के मुसलमानों के बारे में सिरे से परे के निम्न स्तर के बयान, कांग्रेस के महसचिव के कोढ़ में खाज पैदा करती टिप्पणिया जो टीवीट की माध्यम से अखबारों की सुर्खिया बनती है और बाकी के मुस्लिम वोटो के आशिको के भाषणों ने देश में अन्दर तक मक्कारी और जहर का बीज बो दिया।

मुजफरनगर के यह दंगे असल में पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे संवेदनशील स्थल पर  समय पर न्याय न मिलने के कारण है। न तो कोई हिन्दू मुद्दा है, न ही राम का मंदिर है और न ही किसी धर्म संसद की उतेजना है और न ही मोहर्रम का मुद्दा है। मुद्दा है की - हिन्दू अपनी बेहेन बेटी किसी नेता के कहेने या संविधान में सेकुलर शब्द को घुसाने से मुसलमानों को नहीं दे सकता। आम हिन्दू वेदों में मलेछो के व्यक्तित्व से परिचित है और इसको किसी कांग्रेस के बाप की सरकार या किसी धर्मनिरपेक्षता की टोपी बदल नहीं सकती। हिन्दू बंट सकता है कट सकता है पर बेहेन बेटी के मुस्लिम हाथो में देने का समझोता नहीं कर सकता। यह न तो मुंबई है न विदेश है और न ही "अमन की आशा "में पागल लोग है , यह पश्चिम उतर प्रदेश है । यह देश के सबसे संपन्न किसान काश्तकार का प्रदेश है जिन्होंने ८०० साल मुसलमानो को दिल्ली से हरिद्वार २०० किलोमीटर का रास्ता पार नहीं करने दिया।  और हरिद्वार में हर की पौड़ी पर कोई मस्जिद बनने नहीं दी।  

अब आते है दंगो पर इस की शरुवात कुछ एसे हुई की एक मुस्लिम ने हिन्दू की बहन के साथ बतमीजी की। यदि कुछ लोगो के बयानों को गौर से समझे तो यह बतमीजी से ऊपर का मामला था। भाइओ ने वो ही किया जो हर भाई करता है, उस मुस्लिम युवक से जा कर बात की जिस दौरान हाथापाई में एक व्यक्ति जान गवां बैठा जो एक क्षणिक आवेश में हादसा मात्र था। यहाँ ही पुलिस की कार्यवाही बनती थी , अब इतने पर कार्यवाही हो  जाती तो बात ख़त्म थी। परन्तु मुस्लिम तुष्टिकरण के हवाई जहाज पर सवार मुस्लिम, देश और प्रदेश में अपने लोगो की सरकार, मीडिया का हौंसला, संख्या का रौब, प्रशासन का साथ, हतियारो की खेप और गलोबल ताकत ने कवाल गाँव के मुस्लिमो में एसा जोश भरा की इन दो बच्चो सचिन और गौरव को तालिबानी तरीको से सरे आम २०० से ४०० लोगो ने लातो, घूंसों, मुक्को से पीट पीट कर मौत के घाट उतार दिया।
यह है इस दंगो की चिंगारी जबकि पहेले हिन्दू बहन के साथ बलात्कार (जैसा की लोगो में जानकारी है ) की कोशिश हो चुकी । लोगो के गुस्से बड़ा कारण था जिस तरीके से इन दो युवको को मार गया है  वह लोगो को उत्तेजित कर गया, पश्चिम उतर प्रदेश समझने वाले जानते है की बात बात पर गोली चल जाती है, लोगो का तो यहाँ तक भी कहना है गोली भी इनको मार दी जाती तो शायद इतना बवाल न होता जितना इनकी अपने ही गाव के २००-४०० लोगो के एक साथ मिल कर मारने से हुआ है. क्या एक भी मुसलमान इतने बड़े गावं में इस हत्या का विरोध करने वाला न था ? शांतिदूत / इमाम साहिब और मौजिज लोग कहाँ थे।    

 बेचारे पीड़ित हिन्दू यहाँ पर भी रुक जाते परन्तु प्रशासन का जब दमनचक्र चला, जैसे सचिन और गौरव जिन तो युवको की मुस्लिमो ने हत्या की के ही घरवालो के खिलाफ पुलिस कार्यवाही, हिन्दुओ के पंचायत न करने देने की पुलिस के दमनात्मक कार्यवाही और पुलिस उपायुक्त जो की मुस्लिम ही था की हिन्दुओ के प्रति एक तरफ़ा कार्यवाही ने लोगो के अन्दर अपमान और गुस्से का एक मिश्रण सा घोल दिया। अभी तक इसमें न तो बीजेपी, सपा और न ही कोई और संघटन जुड़ा था। यह सब स्वाभाविक ही चल रहा था। इस बीच एक राजनेतिक खेल जरुर खेला गया की भारतीय किसान यूनियन जो के किसानो की बड़ी जोरदार आवाज हुआ करती थी एक समय में उसके नौजवान नेता पंचायत का नेत्रित्व करने और सपा के कहेने में न करने का जो फैसला किया उस से हिन्दू लोगो को इकठ्ठा होने के कारन मिल गया। अन्यथा मामला एक जाट और मुस्लिम के बीच ही ख़तम हो गया होता। और पोलिस इस पर कार्यवाही करती और गिरफ़्तारी करती। जब हिन्दुओ ने देखा की सचिन और गौरव को श्रदांजलि देने और हिन्दुओ को इकठ्ठा होने में भी प्रशासन सारा सर मुस्लिम समाज के साथ खड़ा है और पुलिस के लोग मुस्लिम से ही ज्ञापन भी ले रहे है और हिन्दुओ पर जो की पीड़ित है पर कार्यवाही कर रहे है तो फिर ग्रामीण लोगो ने फैसला लिया की एक जगह साथ मिलकर बात करेंगे जिसको की पंचायत का रूप दिया गया। अब जैसा की होता है बेचारे ग्रामीण अपनी ट्रेक्टर ट्रोली जो की एक मात्र साधन होता है पर एक साथ खड़े होने चल दिए। दंगा किसको कहेते है इस बात पर गौर करे की जिस जिस जगह से यह ग्रामीण निकले इनके ऊपर जैसा की प्रत्यदर्शियो ने बताया की अत्याधुनिक हतियारो से इनके ऊपर गोलिया चलाई गई जैसे ऐ के ४ ७ और अन्य शास्त्रों से। हिन्दुओ को एक तरफ मुस्लिमो ने घेर कर मारा और दूसरी तरफ से पुलिस ने कोई कार्यवाही मुस्लिम दंगाइयों के खिलाफ नहीं करी। इस के परिणाम यह हुए की जिले  में अफवाहों का बाजार गर्म हुआ और आननफानन में दो तरफ़ा कार्यवाही शुरू हो गई।

बात गौर करने की यह है की दंगे शहरो में नहीं गावो में शुरू हुए और पुलिस तो पुलिस सेना के लिए भी इनको तुरंत रोकना संभव नहीं है। 

भारत की सरकार प्रशासनिक रूप से गावो में दंगे रोकने के लिए तैयार नहीं परन्तु इनके नेता मोबिल , टीवी के माध्यम से अपने घटिया बयानों, भाव भंगिमाओ, तुष्टिकरण से आग लगा चुके है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश जो दिल्ली के लिए बहुत अहम् और गंभीर स्थल है में इस तरह का दंगा बहुत खतरनाक है। जिन लोगो ने मुस्लिम लोगो को भोला, मासूम, निरही माना वो पश्चिमी उतर प्रदेश आये और देखे की किस खूंखार तरीके से हिन्दुओ का नरसंहार किया जा रहा है। 

मुसलमानों में भी किसी रणनीति या संघटन की शक्ति नहीं इन दंगो के पीछे यदि ताकत है तो ऊँचे मनोबल, सत्ता में रसूख, प्रशासन की अकर्मण्यता पर भरोसा, लोकल मुस्लिम उद्योगपतियो का पैसा और गैर क़ानूनी अत्याधुनिक हतियारो का जमवाड़ा। जो सरकारे और पार्टी मुस्लिम आरक्षण और इनके उत्थान के बात कर रही है देख तो लो असल में किसके उत्थान और प्रस्थान की जरुरत है। 

निरही हिन्दुओ को भूखे भाडियो के सामने छोड़ने का खामियाजा तो भुगतना ही पड़ेगा परन्तु दंगे धीमी आंच के है और लम्बे समय तक देश के मन को देहला सकते है। 

सारा न्याय और धन एक तरफ परन्तु कोई नेता / पार्टी / सरकार हिन्दुओ से यह भी उमीद कर रही है की वो अपनी बहु बेटी भी धर्मनिरपेक्षता या मुस्लिम तुस्टीकरण के नाम पर लुटा देंगे तो वो अपनी हस्ती को मिटाने की और अग्रसर है। 

शायद बहुत कम लोगो को पता है के मुजफ्फरनगर का दंगाग्रस्त इलाका १८५७ की क्रांति का इलाका है जो पहले मेरठ जिले में ही होता था। और इसी खून ने लोगो में एक अजीब  जोश भर रखा है जैसे की पुरे हिंदुस्तान की दमनकारी निति इन्ही के ऊपर लागु हो रही हो।          

कांग्रेस / मीडिया / सेकुलर पार्टी / सरकार का पिछले १० साल से हिन्दुओ के अन्दर अपमान और घृणा का भाव और मुसलमानों में जोश और ताकत का अहसास ही इन दंगो की रीड है। इतिहास लिखने वाले भी हम पर हंसेगे की इस दौर में ऐसे भी सरकारे / पार्टी / नेता हुए है जो २० % लोगो को ८० % के खिलाफ हर दम प्रेरित करते है न की यह कहे सके की पाकिस्तान और बांग्लादेश ले चुके हो छोटे भाई की तरह रहो। 

देश में ऐसे नेताओ को जो कहे की हम तो बड़े मजे से गाये का मांस खाते है हिंदुस्तान में हमें तो मजा आता है,  २५ करोड़ मुसलमान १०० करोड़ हिन्दू को एक घंटे में ख़त्म कर देगा पुलिस तो हटा कर देखो, भारत माता को डायन कहेने वाला प्रदेश का रहनुमा बन जायेगा। उसके रहमो कर्म पर हिन्दुओ के फैसले होंगे। देश के संसाधन पर पहला हक़ उनको देने वाला प्रधानमंत्री होगा जिनको के पाकिस्तान और बांग्लादेश के रूप में अपना हक़ ले चुके है। प्रदेश का मुखिया सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम लडकियो को वजीफे बांटेगा और हिन्दुओ को छोड़ देगा। तुष्टिकरण की पपरकाष्ठा।  

देश में और प्रदेश में अंधेर नगरी और चौपट राजा, टेक सेर भाजी टेक सेर खाजा। वहां दंगे नहीं होंगे तो क्या होगा। आग लगाने वाले तो बहुत है पर देखना मित्रो यह है की देश बचाने के लिए पानी कहाँ है ??? 

इन दंगो में असाम या मुंबई देखने से कुछ नहीं होगा और न ही सऊदी अरब और तालिबान देखने से, न ही इंडियन मुजाहिदीन और सिमी देखने से कुछ मिलेगा। आजाद हिंदुस्तान का यह वो दंगा है जो सालो से एक कौम के अन्दर जोधा अकबर, हिमायुं का मकबरा, शाहजहा का ताज महेल जैसे ख्याल गढ़े गए, फ़िल्मी लव जिहाद बनाया गया, ७ ८ ६ को रुतबा दिया गया, जब हिंदुस्तान को ही शहंशाह अकबर का दरबार बना दिया तो फिर हिन्दू की बेहेन बेटी को इज्जत कौन देगा और जब नहीं देगा तो मुजफरनगर ही होगा। 

और यह धधक एक जगह की नहीं उन लाखो कस्बो और गावों की है जहाँ पर हिन्दू को जलील अपमानित और उसके ही देश में उसको आतंकवादी बताया जा रहा है और दुसरो के पाप को आसाराम धारवाहिक में दबाया जा रहा है।

कहेने वालो को भी नहीं पता की देश की सुरक्षा एजेंसिओ पर ऊँगली उठाने वाले सेकुलर नेता / पार्टी / सरकार ने देश का कितना नुक्सान किया है, लोग कुंठित है एक कांग्रेस के महासचिव के बाटला हॉउस की थ्योरी से, गुजरात १३ साल से उबाऊ मीडिया कहानी से , आई बी और रा को क्षणिक लाभ के लिए उनको लांछित करने के लिए। जब लोकतंत्र में जनता ही शासक है तो शोषित भी वो क्यूँ ?    

मुस्लिम तुष्टिकरण के होते इन से हिन्दुओ को बचाने के लिए संसद में विधयक आना चाहिए न की मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए नए कानून।     

5 comments:

  1. बिलकुल सही लिखा है

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  2. बहन बेटी देकर पानीदार हिंदु सेक्युलर नहीं बनना चाहेगा.न सर्टिफिकेट की चाहत.चाहे कम्युनल कहे.आप ने हिंदुओ की दबी आवाज उजागर की हैं.आपसे असहमत होना अपनेआप से बच कर निकलना होगा.गुजरात दंगा किसी बीजेपी की उपज नहीं थी वर्षो की दबी अपमान सहने की आग थी जो भडक गई.कायर दब्बू सुनते सुनते थक गये थे.वो समझते थे हिन्दु इतने दुर्दांत थोडे ही हैं.हम ही हैं.

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