Tuesday, May 19, 2009

अडवानी जी की हार हिंदुत्व की विजय ?

इस पर प्रशनवाचक चिन्ह इसलिय बनाया है की कांग्रेस की सरकार आने पर आँखों में से आंसू छलक गए। मेने इस पर सोचा यदि अडवाणी जी जीत जाते तो क्या होता। क्योंकि पिछले तीन दिन में मेने हजारो ब्लोगों और आदमियों से सुना (बीजेपी पक्ष के) जो मेरी ही तेरह व्यथित थे मेरा विश्लाशन कुछ इस प्रकार से से है -
  • बीजेपी यदि इस बार जीत जाती तो यह हिंदुत्व की या बीजेपी की जीत कभी न होती इसे सिर्फ और सिर्फ अडवाणी जी की ही जीत माना जाता।
  • बीजेपी का औपचारिक रूप से कांग्रेसीकरण होना शुरू हो जाता।
  • जिन्न्हा का औपचारिक रूप से महिमा मंडन शुरू हो जाता।अडवाणी जो उद्धरण बना कर हर बीजेपी और आने वाली कई नस्लों को जीत का येही फार्मूला मिल जाता। और इसके विकृत रूप ही सामने आते।
  • धरा ३७० भारत में स्थाई हो जाती।
  • हिंदुत्व का नाम ले वाले को उग्रवादी माने जाना लगता क्योंकि अडवाणी जी जब नेतृत्व कर ही रहे है तो इसके आगे को तो लोग और मीडिया स्वीकार ही न करता।
  • भारत में अगले पञ्च साल राजग के नेतरेत्व में संघ पर जबरदस्त दबाव होता हो सकता था संघ को भंग करने की सलहा भी कुछ राजग के उत्साहित कार्यकर्ता दे देते।
  • बीजेपी को हिन्दुओ को दुत्कारना ही कांग्रेस की तरहे अगले कम से कम बीस साल सत्ता पाने का फार्मूला मिल जाता।
  • बीजेपी की वोटर के रूप में भारत में एक बहुत ही विकृत रूप की कांग्रेस की डुप्लीकेट कॉपी सरकार दिखाई पड़ती।
  • बीजेपी के अन्दर एक बहुत बड़े विभाजन की शुरुवात होजाती।
  • आज कम से कम हम दोबारा से राम मंदिर, धरा ३७० की बात तो करसकते है परन्तु अडवाणी जी नेतरेत्व में सरकार बनने पर यह तो संभव ही नहीं था।अडवाणी जी ने इस बार जिस तरह से राम नाम से परहेज किया हैं वो बहुत ही आश्चर्य जनक है।
  • राम कृष्ण बाबा विश्वनाथ का नाम लेने वाला सरकार में शायद ही कोई होता।


एसा हुआ क्यों की अडवाणी जी हारे -

  • मैं एक घटना का जिक्र जरुर करुंग अभी एक साल पहेले बीजेपी के युवा मोर्च ने अमित ठाकरे के नेतृत्व में दिल्ली में एक रैली की थी जिसमे अडवाणी जी, राजनाथ जी जैसे नेता सभी थे। अमित ने बड़े ही सादगी भावः से अडवाणी जी को परम्परा के अनुसार भगवन शंकर का त्रिशूल मंच पर दिया और फोट खिचवाने का अग्रेह किया। अडवाणी जी की भावः भंगिमाये बता रही थी की इस अग्रेह की बहुत बड़ी सजा अमित को मिलेगी। क्योंकि अडवाणी जी अपना त्रिशूल के साथ फोटो खिंचवाना अपने लिया खतरनाक मानते थे।
  • दूसरी घटना अटल जी की सरकार में अडवाणी जी उपप्रधानमंत्री थे जब शेकेर्स एंड मुवेर्स पर शेखर सुमन ने एक इंटरव्यू लिया तो उसमे अडवाणी जी से उनकी पसंद की हेरोइन पूछी तो अडवाणी जी ने जवाब दिया उस समय जोगेर्स पार्क एक पिक्चर आई थी उसकी नायका (नाम मुझे मालूम नहीं इसलिय पिक्चर का जिक्र कर रहा हूँ ) मुझे सुन कर इस बात से इतना दुःख हुआ की अपनी बेटी से भी छोटी एक अदाकारा को यह व्यक्ति अपनी पसंद बता रहा है। इस बात का जिक्र करने का मतलब यह नहीं की अडवानी जी के चरित्र के ऊपर मैं कुछ कहेने की गुस्ताखी कर रहा हु। कभी नहीं क्योंकि मैं जानता हु अडवाणी जी पर इस तेरहे की टिपणी करना न केवल अशोभनीय हैं परन्तु सूर्य पर थूकना है। जिस बात को मैं इंगित करना चाहता हु वह यह हैं की अडवाणी जी अपनी छवि बदलने के और अपनी स्विकारियता बढ़ने के कितने उत्सुक थे। ये ऊपर के दो उद्धरण उपयुक्त है अडवाणी जी केउनके सलाहकार और अडवाणी जी के ऊपर उनके प्रभावों के। जब की अडवाणी जी सिर्फ और सिर्फ अडवाणी बनके चुनाव लड़ते तो हिंदुस्तान की जानता उनकी झोली भर देती और हिंदुस्तान के सब से ऊँचे तखत पर बैठा देती। क्यूंकि जानता उनकी तपस्या का सम्मान करती है। परन्तु चाल बदलना हिन्दुतान की जानता पसंद नहीं करती। पता नहीं किनके कहें पर जिमखाना चेलेगए अन्यथा एक सज्जन के रूप और संघर्षशील वियक्ति के रूप में लोग पसंद करते थे। अब आप सोचो के बाला साहिब या मोदी जी हरी पगड़ी पहेन कर या जलीदर मुस्लिम टोपी पहेन कर भाषण दे तो उनको लोग हास्यप्रद नहीं मानेगे। अरे भाई ये सभी हिन्दू हृदय सम्राट हैं अब येही उलट जाये तो क्या जानता माफ़ करगी। अडवाणी जी के द्वारा मुरली मनहोर जोशी जी के साथ गुटबाजी सजग हिन्दू को बिलकुल नहीं सुहाई। इस से स्वार्थ की बू आई। गठ्बंदन बीजेपी को शोभा ही नहीं देते अब हरियाणा में ही लेलो। चौटाला हरियाणा में बिलकुल भी स्विकरिया नहीं है. उसकी छवि बहुत ही बहुत ही घटिया हैं. आज बीजेपी बिना चौटाला के लड़ती तो निश्चित रूप और दो सीटे लेलेती।
  • दूसरा गटबंधन और अपनी लीडरशिप ख़तम कर देती हैं जैसे हरियाणा में, उडीसा में, पंजाब में और अब बिहार में कर रही है। साझेदारों के चराण भाट बनने और लाभ नहीं मिलता और अपना ही वोटर अपमानित और कुंठित हो जाता है। अब बीजेपी में उडीसा में करने लायक हैं.

इस आशा के साथ की एक दिन लालकिले पर भगवा फेहराया जायगा। जय भारती.

7 comments:

  1. tyagi ji aapne bilkul sahi likha -----------
    satta ki jald chahat main advani & company ne
    hindutva ki andolan ko aur RSS ki sakh ko bahut bhari nuksan pahunchaya
    inlogo ne apana jnadhar dusare dalo ke hwale kar diya-----------------------------------
    andhra main -- telgu desham ko
    punjab main ---- akali ko
    haryana main --- choutala ko
    up main ----- mayabati ko
    asam main ---- agp ko
    urisa main ---- bjd ko
    aur
    bihar main -----nitish ko

    to phir ye kis bal pe hindustan ki rajniti karenge aur apane matri-bhumi ko param baibhav pe kaise pahunchayenge ?

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  2. सम्यक विवेचना। भाजपा, छोटे कद के बड़े नेताओं का जमावड़ा हो कर रह गई है।

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  3. सम्यक विवेचना। भाजपा, छोटे कद के बड़े नेताओं का जमावड़ा हो कर रह गई है।

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  4. लाल किले पर भग्वा फेराने का खयाल आप दिल से निकाल दे तो बेह्तर होगा क्यौंकि वो जगह सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारे तिरंगे की है....और कोई ध्वज वहा फेराने लायक नही है चाहे वो हिन्दुत्व क प्रतीक हो या किसी और धर्म का....

    सिर्फ़ हिन्दु के वोट से भाजपा को जीत नही मिलेगी, आज क मत्दाता अच्छी तरह जान्ता है कि लड्ने से कुछ हासिल नही होगा बल्कि छिनेगा....तो आप अपनी तुच्छ मान्सिक्ता को बद्ल दे तो बेह्तर होगा......आपके लिये भी और इस देश के लिये भी.....

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  5. क्या बोल रहे हैं?
    ऐसा तो हो ही नहीं सकता...
    मुस्लिम्स और पैसे वाले कांग्रेस को ही वोट देंगे.
    सपने देखना छोड़ दें..

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  6. एक दृष्टि से देखा जाये तो सही विश्लेषण… भाजपा को अकेले लड़ना चाहिये इस बात से पूर्ण सहमत… क्योंकि गठबन्धन करने पर "सेकुलरिज़्म" के कीटाणु घुसने का खतरा हमेशा बना रहेगा… और फ़िर जो सेकुलरिस्ट साथ आ भी रहे हैं उनका कोई भरोसा नहीं है, जैसे पटनायक, शरद यादव, नीतीश आदि… इसलिये भलाई इसी में है कि अकेले चुनाव लड़ा जाये…

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  7. त्यागी जी आपने बिलकुल सही लिखा -----------
    सत्ता की जल्द चाहत मैं अडवाणी & कंपनी ने
    हिंदुत्व की आन्दोलन को और RSS की साख को बहुत भरी नुकसान पहुँचाया
    इनलोगों ने अपना जनाधार दुसरे दलों के हवाले कर दिया -----------------------------------
    आंध्र मैं -- तेलगु देशम को
    पंजाब मैं ---- अकाली को
    हरयाणा मैं --- चौटाला को
    उप मैं ----- मायाबती को
    असाम मैं ---- अगप को
    उरिसा मैं ---- बीजद को
    और
    बिहार मैं -----नीतिश को

    तो फिर ये किस बल पे हिंदुस्तान की राजनीती करेंगे और अपने मात्री -भूमि को परम बैभव पे कैसे पहुंचाएंगे

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