यदि मैं कहू की भारत एक हिन्दू राष्ट्र है तो हो सकता है इस को आज संधिग्द्ता से देखा जायेगा परन्तु कुछ दशक पहेले एसा नहीं था. यदि में कहू की भारत को हिन्दू राष्ट्र में तब्दील करना है तो कोई भी आज के समय पर इसे राष्ट्र विरोधी भी कह सकता है. मैं सोचता हूँ एसा क्यों? इस क्यों का उत्तर के लिए गहेरे उतरना पड़ेगा. असल में दिक्कत है एक एक कपडा उतरने के बाद भी अपने को नंगा न मानने का स्वांग करना. हमारे यह एक चौधरी था. उसको बहुत बड़ा अहंकार था परन्तु था कायर. एक दिन एक आदमी ने उसका एक थप्पड़ जड़ दिया वो भी सबके सामने. अब चौधरी कुछ कर तो सकता नहीं तो उसी व्यक्ति को बोलता है इब की बार मार के दिखा. वो व्यक्ति फिर से थप्पड़ मार देता है. फिर चौधरी बोलता ही इब की बार तो जरा मार कर दिखा. वो व्यक्ति फिर से मार देता है. परन्तु चौधरी फिर उसी को दोहराता है. अंत में थक कर मारने वाला ही चला जाता है. वो चौधरी अपनी मुछ को ताव देकर फिर से खडा हो जाता है और कहता है " बड़ा मारने वाला आया, देखा मुकाबला कर नहीं सकता और मैदान छोड़ कर भाग गया" असल में हिन्दू कुछ शताब्दियो से यह ही करता रहा है और उसके पीटने और लगातार पीटने का यह ही एक कारण. आप देख लो शांति की खोज में हिन्दू पता नहीं कहाँ कहाँ कन्द्राओ में भी जाकर छुप गया परन्तु उस से उसे शांति नहीं नस्ली सफाया ही मिला. परन्तु बावले पिल्लै की तरह फिर भी शांति की तलाश है. आज में उन बिन्दुओ को छुना चाहूँगा जिनकी वज़ह से यह नुपुन्सकता घर कर गई. और मित्रो अपने अपने घर में इन बीमारियो को बहार निकाल दो तो आप भी हिन्दू पुनर्जागरण में सहभागी बन सकते हो. हम सभी हिन्दू गीता और रामयण को बड़े सलीके से लाल कपडे में लपेट कर मंदिर में सजा कर उसके सामने अगरबत्ती करते है. गीता तो अब बहुत ही कम लोगो के मिलेगी क्योंकि कुछ एक सेकुलर गधो ने उसे हिन्दू जागृत होने के कारणों में से एक जाना है. अच्छा महाभारत को तो कोई भी नहीं रखता . उत्तर यह पूछने पर यह मिलता है की इस से घर में लडाई हो जायगी जैसे की जिंदगी तो बहुत ही शांति से कट रही हो. माँ बाप को रजा दशरथ की तरह मानते हो और बेटे लव कुश है. अरे कुछ भी नहीं एसा भाई को कोर्ट कचहरी के चक्कर कटवा रखे है. बाप को बुढापे में धकिया रहे है और मन ही मन अपने को राम मानने की गलतफमी में है. अरे भैया गीता और महाभारत रोज पढो . नहीं तो इन कांग्रेस्सियो की तरह हो जायेगा महात्मा गाँधी के मार्ग पर चलने के वास्तविकता से महात्मा गाँधी मार्ग (रोड) पर ही खाली चलोगे . कहेने का तात्पर्य यह है की हिन्दू अपने को समझता ही नहीं को वो है क्या है. इस का प्रमाण इस बात से भी मिलता है की मीडिया के भरमाने से की क्रिकेट हिंदुस्तान का एक धरम है लोग इसी में अपना सर्वस्व लुटाने लगे. ज्ञान के आभाव में लोग अमिताभ या धोनी की पूजा करने लगे उसी प्रकार जैसे की भगवान् की आरती है. मैं यह नहीं कहेता की किसी से प्रभावित न हुआ जाये और न ही यह कहेता की किसी का सम्मान किया जाये परन्तु न तो कोई खेल धरम हो सकता और न ही कोई व्यक्ति भगवन हो सकता. हलाकि यह कोई गंभीर बात है भी नहीं परन्तु लोगो के दिमाग के दिवाल्यापन की निशानी तो है ही है. अब वापस सन्दर्भ पर आते है
उत्तम… यही शब्द है इस पोस्ट के लिये… अगली किस्तों का इंतज़ार रहेगा… ये भी अच्छा है कि एक बार में लतियाने की बजाय धीरे-धीरे लपड़ियाया जाये सेकु्लरों और सुप्त हिन्दुओं को… लगे रहिये…
ReplyDeleteबाप रे बाप! आप के लेख का धार तो प्लेटिनम वाला है, जीओ दोस्त ऐसे ही लिखो क्या पता शायद सेकुलर धतूरे के आदी, छद्म और निठल्ले हुए पड़े हिन्दुओ में स्वाभिमान का संचरण हो !
ReplyDeleteबाप रे बाप! आप के लेख का धार तो प्लेटिनम वाला है, जीओ दोस्त ऐसे ही लिखो क्या पता शायद सेकुलर धतूरे के आदी, छद्म और निठल्ले हुए पड़े हिन्दुओ में स्वाभिमान का संचरण हो !
ReplyDeleteमुझे तो कोई दिक्कत नही दिखती , बिल्कुल होना चाहिए ।
ReplyDeleteकाहे का हिन्दू, व्यापारी क्या कभी हिन्दू हुआ है. ये )()(**(ऽ दुनिया भर के कर्मकांड तो करेंगे लेकिन हिन्दू के नाम पर कभी इकठ्ठा नहीं होंगे.
ReplyDeletewelcome back to hindu blog world!
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