लोग कांग्रेस के आपातकाल को तो याद कर रहे है परन्तु मीडिया के अघोषित आपातकाल को कोई तवज्जो नहीं दे रहा और ताजुब की बात है जो आपातकाल मीडिया ने लगाया वो भी किसी के निशाने पर है ही नहीं.
- क्या आप नहीं जानते की मीडिया सेलेक्टिव रिपोर्टिंग करता है? क्या किसी ने उस पर प्रशन उठाया? क्या आपको नहीं लगता यह यू पि ऐ की सरकार मीडिया के सहारे चल रही है ?
- किसी भी न्यूज़ या वियूस को ले लो सब पर कांग्रेस की छाप लगी होगी.
- मीडिया पिछले एक दशक से पक्षपात कर रही है, हर बात पर बीजेपी को ही क्यूँ कटघरे में खड़ा करती है? क्या आज देश पर बीजेपी राज कर रही है? जब बीजेपी सत्ता में थी तो आरोप था की वो जनता की नहीं सुनती, बात चाहए कंधार काण्ड की ही क्यूँ न हो, मीडिया ने जब तक तत्कालीन सरकार पर प्रेशर बनाये रखा जब तक की सरकार ने इस्लामिक अतंकवादियो की फिरोती की रकम न दे दी हो.
- मीडिया ने कभी भी गोधरा का मुद्दा नहीं उठाया जब की बाद में हुए प्रतिक्रिया में हुई घटनाओ को आज भी प्रमुखता से उठा रही है.
- मीडिया ने न तो सोनिया गाँधी से सत्ता में रहेते कुछ पूछा और न ही सत्ता के बहार जब विरोध में थी. इस प्रेम का कारन किसी को पता नहीं. आज तो फिर भी लोग कहेते है की मीडिया का सत्ता के रहेते सोनिया गाँधी के प्रति सोफ्ट कोर्नर है परन्तु जब कांग्रेस विरोधी दल था जब भी कांग्रेस की महमहिम से किसी ने कुछ नहीं पूछा.
- सोनिया गाँधी ने धक्के मार मार कर तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी छीन ली थी सीता राम केसरी से, परन्तु कोई हो हल्ला नहीं था और न है।
- कांग्रेस ने सरे आम श्री नर्सिम्ह्ह राव जी के शव के साथ अपमान किया था। तो मीडिया ने क्या सोनिया गाँधी के इस क्रूर व्यवाहर के लिए आलोचना की।
- क्या मीडिया को रॉबर्ट वढेरा का दंभी व्यवहार नहीं दीखता ?
- आज जब मात्र वैचारिक टकराव से संजय जोशी व नरेंद्र मोदी की नहीं पटी तो इसको प्रमुखता से उठाया गया और उसपर विस्तार से हर चैनल पर चर्चा हुई. यह जब है जब बीजेपी विपक्ष में है. दूसरी और जब बीजेपी सत्ता में थी तो अटल जी और अडवानी जी या गोविन्दचार्ये जी बीच में टकराव पर लाखो टन कागज मीडिया ने रंगीन कर दिए थे. तो बीजेपी सत्ता में रहे या विपक्ष में मीडिया के हमेशा ही निशाने पर रही है.
- राहुल महाजन के पीछे मीडिया पुरे एक महीने तक चैनल पर कवर स्टोरी चलती रही, की एक तरफ राहुल (बीजेपी) के है तो देखो दूसरी और राहुल गाँधी है. तब राहुल महाजन विपक्षी पार्टी के एक नेता का ही पुत्र मात्र था जिसका राजनीति से कोई लेना देना नहीं था. आज जब राहुल गाँधी के अमेठी बलात्कार काण्ड की बात हो तो मीडिया इसे सोशल मीडिया करतूत बता कर पल्ला झाड़ लेती है. परन्तु गोविन्दाचार्य जी के उमा जी से मैत्री संबध होने पर रोज मसाला लगा कर परोसती थी.
- कांग्रेस के कोयले के घोटाले पर बीजेपी से पूछ रही है की आप संसद क्यूँ नहीं चलने दे रहे हो प्रधानमंत्री से इस्तीफा क्यूँ मांग रहे हो. तब जोर्ज फर्नाडिस के रक्षा मंत्री होते बीजेपी से पूछती थी की आप इस मंत्री से इस्तीफा लेकर संसद क्यूँ नहीं चलने देते.
- सोनिया गाँधी जो सत्ता की अखंड प्रतिमा है से मीडिया नहीं पूछती की उसे बिमारी क्या है परन्तु पूर्व संघचालक की बिमारी (जो नहीं है) पर मीडिया में ब्रेकिंग न्यूज़ चलाती है.
- सोनिया गाँधी से मीडिया नहीं पूछती की दुनिया की छठी सबसे ताकतवर औरत होते हुए भी क्यूँ नहीं भ्रष्ट प्रधानमंत्री से इस्तीफा लेती परन्तु विकास की रहा पर गुजरात के मुख्मंत्री से इस्तीफा मांगती है.
- मीडिया गडकरी जी से तो पूछती है की उनके बिसिनेस से पैसे कहाँ से आये पर बिना एक व्यापर करे सोनिया गाँधी से उसके धन के स्रोतों का मालूम नहीं करती की जब आर टी आई में पूछा गया की सोनिया गाँधी की इनकम टेक्स का ब्यौरा सार्वजानिक किया जाये तो सोनिया गाँधी ने कहा था की मैं ब्यौरा नहीं दे सकती इस से मेरी जान का खतरा है. कैसे जेड प्लस सुरक्षा है जो सोनिया गाँधी को सुरक्षा भी नहीं दे सकती जबकि सरकार भी उसी की है.
- मीडिया राम देव की दिव्य योग पर तो जाँच करती है परन्तु सोनिया गाँधी के अकूत सम्पदा पर कभी प्रशन नहीं खड़ा करती.
- सारी मीडिया इंदौर की एक हत्या पर तो ५० घंटे का तो कवरेज दिखाती है और लीड स्टोरी चलाती है परन्तु मुंबई के मुस्लिम दंगो में २ हत्याओ का कोई जिक्र नहीं करती , मीडिया कभी मुंबई पुलिस की महिला कर्मियों के साथ हुए अभद्र व्यवाहर पर मुह नहीं खोलती और श्री राम सेना के मेंगलोर पर हुए पब पर १०० दिन तक चर्चा करती है.
- मीडिया राहुल या सोनिया को बुलाकर अपने चैनलों पर इंटरव्यू क्यों नहीं करती क्यूँ विपक्ष के ही इन्टरव्य से पेट भरती है.
- हिन्दुस्तान की अपंग मीडिया ब्रिटिश मीडिया को अपनी आइडियल मानती है तो उस मीडिया ने तो दुनिया भर के सबसे ताकतवर ब्रिटिश राजपरिवार के राजपुत्र हैरी के नग्न तस्वीरे अखबारों के पहेले पन्नो पर छाप दी. क्या मीडिया राहुल की कमर भी दिखा सकती है.
- मीडिया को संघ का नोर्थ इस्ट की भाई बहेनो को लाठी लिए बचाना नहीं दीखता परन्तु १५ मिनट राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी ने विकलांगो के साथ क्या बिताये उसके फोटो हर अखबार में चस्पा दिए.
- मीडिया ने भारत बंद के दौरान आदरनिये सुषमा जी के राजघाट पर जनता के साथ हथेली क्या पीटली थी को राष्ट्रीय शर्म घोषित कर दी. पर आदरनिये प्रियंका गाँधी और उनके आशिक मिजाज पति देव रॉबर्ट वढेरा सरे आम घटिया हरकते हाल ही में अपने पिता राजीव गाँधी की समाधी स्थल वीरभूमि पर कर रहे थे वो नहीं मीडिया को दिखी. प्रियंका को उनके पति एक आशिक की तरह छेड़ रहे थे उस पर तो कोई हो हल्ला नहीं है. क्या कभी हुआ है की स्वर्जनिक जीवन में रहेते जिस में राहुल गाँधी है अपने पिता की समाधी स्थल में हुए कार्यकर्म में कोई शामिल न हो. मीडिया ने वो कारन नहीं खोजे जिनके कारण श्री राहुल गांधी जी वीरभूमि पर आ न सके. खैर जो लोग गुजरात से से न्यूज़ लाने में व्यस्त हो उनको दिल्ली की क्या खबर.
- मीडिया बीजेपी से तो लगातार पूछ रही है की आप प्रधानमंत्री से इस्तीफा क्यूँ मांग रही है परन्तु एक बार भी प्रधानमंत्री से क्यूँ नहीं पूछती की विपक्ष किस बात के लिए इस्तीफा मांग रहा है? प्रधानमंत्री जी देश को बताये तो सही की वो इस्तीफा दे क्यूँ नहीं रहे.
- वैसे तो बजरंग दल की गैरवाजिब हरकतों का मैं खुद विरोधी हूँ, परन्तु यह बात बात पर मीडिया बजरंग दल के वेलंटाइन पर विरोध को ऐसे दिखाती है जैसे की देश पर हमला हो गया हो, पर मीडिया ने मज़बूरी में मुंबई में इस्लामी गुंडों के हिंसा तो दिखादी पर लखनऊ, इलाहबाद, बरेली, हैदराबाद, किशनगंज को आज तक नहीं दिखाया की कैसे मुस्लिम गुंडों ने यहाँ पर हिंसा का नंगा नाच दिखाया। कैसे भगवान् बुद्ध की मूर्ति तोड़ी, यदि बुध की मूर्ति तोड़ने पर बोधिस्त देश आज प्रदर्शन करने लगे भारतीय दूतावास के सामने तो भारत सरकार क्या जवाब देगी?
- मीडिया एक लेंस फूटे चश्मे से ही क्यूँ देखती है, वो राज ठाकरे ने एक शब्द "हिंदुत्व" के बारे में नहीं बोला अपनी रैली में , पर पूरा मीडिया सुबह से शाम तक हिंदुत्व-हिंदुत्व चिल्लाता रहा. परन्तु मुस्लिम गुंडों की हिंसा के लिए अपनी इज्जत गवाने के बाद भी मुस्लिम शब्द का इस्तेमाल नहीं किया.
- बेचारे अडवानी जी ने संसद में असाम हिंसा पर १५-२० दिन के अथक मेंहनत के बाद डेड घंटे का भाषण दिया, मीडिया ने उसमे कुछ भी रूचि नहीं ली पर सोनिया के डेड -दो सेकेण्ड की नौटंकी पूर्ण गुस्से को पूरी तवज्जो दी और अडवानी जी की मंशा पर ही प्रशनचिंह लगा दिए. क्या मीडिया का यह पक्षपातपूर्ण रविये संसद को अर्थहीन नहीं बना रहा?
- इस प्रकार जिस दिन सोनिया गांधी ने संसद के पहेले दिन अपने सांसदों को आक्रामक रविया अपनाने की अर्थहीन बात कही. तो मीडिया ने इसको सारगर्भित और अर्थपूर्ण बात ठहराई. क्या हो यदि विपक्ष भी इसी अप्रोच पर चले तो क्या देश और उसकी संसद एक दिन भी चलेगी?
- जिस सरकार पर देश की संसद चलाने की जिम्मेदारी है उसी का मंत्री वो भी संसदिये मंत्री उपसभापति को आदेश दे रहा है की संसद स्थगित करो. कांग्रेस के नेता दिन रात टीवी पर रोते है की बीजेपी संसद नहीं चलने देती और खुद ही संसद को स्थगित करते है. क्या मीडिया ने कांग्रेस के इस दोहरे रविये से देश को परिचित कराया.
- आज भी मीडिया बीजेपी और उसके राजग के सहयोगी के बीच में दरार तलाशती है परन्तु जब बीजेपी सत्ता में थी तब भी समता, ममता और जयललिता ही करती रहेती थी. न तब वो कांग्रेस के विपक्ष में होने पर आलोचना करती थी और न आज उसके सत्ता में होने पर. यह मीडिया प्यार कांग्रेस को किसलिए. और बीजेपी पर इतना बेहराम क्यूँ है मीडिया?
- कोई भी लोकतंत्र तब तक नहीं चल सकता तब तक विपक्ष को जनता और मीडिया का सहयोग न मिले, सरकार तो सत्ता से हर आदेश प्रभावित करती है पर विपक्ष किसके सहारे चले? मीडिया को क्या लोकतंत्र नहीं चलाना? क्या इस देश में तानाशाही चाहती है? मीडिया लोकतंत्र का चौथा खम्बा होने का दम्ब किस बात से भरती है जब की उसका हर तरह और पूरा सहयोग सिर्फ और सिर्फ एक ही पार्टी को मिलता है. यह विडंबना नहीं तो क्या है.
- क्या आपने कभी "मुस्लिम गुंडा" शब्द सुना है या "हरा गुंडा" शब्द सुना है परन्तु हिंदुत्व गुंडागर्दी या भगवा गुंडा या आतंक आपने बहुतायत में सुना होगा. क्या मीडिया ८७% जनसँख्या को गुंडा कहे कर चल सकती है. क्यूँ देश की आम जनता को हीनता का ही अहेसहस कराया जाता रहेगा। और यदि यह एक परम्परा या मीडिया का किसी बात को लेकर आक्रोश भी है तो कब तक, कोई सीमा तो होगी इसकी या यह अनंतकाल तक के लिए है.
- देश का नागरिक मीडिया के माध्यम से एक ही परिवार की आखिरकार कितनी प्रायोजित तारीफ देखे, क्या इसकी कोई सीमा नहीं है.
- देश की आम जनता मीडिया के इस व्यवहार से कुंठित हो चुकी है. देश जब बरेली की हिंसा से त्रस्त है तो मीडिया उस की सच्चाई क्यूँ सामने नहीं लाती? क्या मीडिया पीड़ित लोगो के दर्द को दिखाना ही नहीं चाहती? कब तक जनता अह्साहन जाफरी और उसकी विधवा को एक ही पक्ष सुनता रहे? कब तक गुजरात दंगो की अनंत कथा सुनता रहे? एक पिक्चर भी २ महीने के बाद अपना क्रेज ख़त्म कर देती है पर मीडिया इस गुजरात दंगो और बीजेपी के १० साल पुराने किस्सों को ही अभी भी सुना रही है. क्या इस की कुछ सीमा है भी या नहीं. या भागलपुर और मेरठ के दंगे या सिख नरसंहार देश के लिए महत्वपूर्ण नहीं थे।
- मीडिया का यह एक तरफ़ा पक्षपात पूर्ण रविया किसी भी द्रष्टि से उचित नहीं है. यदि कल को मोदी जी प्रधानमंत्री बन जाते है , हम भी नहीं चाहते की मीडिया उनकी तारीफ ही करती रहे. हम चाहते है यदि मोदी जी गलत है तो मीडिया वो भी दिखाए. और फैसला जनता करेगी.
- देश किसी भी सूरत में इस प्रकार मीडिया का रविया बर्दाश्त नहीं कर सकता. और मुख्य धारा की मीडिया को यह समझ लेना चाहिए इसी पक्षपातपूर्ण रविये के चलते आज सोशल मीडिया ज्यादा प्रचालन में आया. अब चाहे सच हो या झूट पर इसी एक तरफ़ा रविये की वजह से कई अखबार जो बहुत बड़े प्रकाशन थे "जनसत्ता" मिटटी में मिल गया. मीडिया कोई कांग्रेस का मुखपत्र नहीं जो उसको अपना इस हद तक इस्तेमाल हो जाने देना चाहिए. मीडिया के कुछ लोगो के लिए तो यह चलन उपयोगी है परन्तु "प्रेस" एक संस्था के लिए यह आत्मघाती है. जिस का परिणाम निकट भविष्य में अवश्य मिलेगा. क्यूंकि जनता की चक्की जब पीसती है तो बड़ा बारीक पीसती है. रोटी के लाले भी पड़ जायेंगे तो आश्चर्ये न करे.
यह कोई बड़ा रहस्य भी नहीं है की मीडिया इस प्रकार व्यवहार कर क्यों रही है. पिछले कुछ सालो से जिन पत्रकारों को पद्म भूषण मिले है वो ही कांग्रेस के मीडिया में झंडेबरदार बन रहे है और चैनल के मालिक राज्येसभा की आस में ऐसा कर रहे है.
- देश सब कुछ देख रहा है की कैसे एक आन्दोलन को सत्ता के दलाल बेच रहे है अपनी सत्ता लोलुपता के लिए. देश ने देखा है की किस प्रकार अन्ना के आन्दोलन को दो आदमियो ने बेच दिया, जनता सोई हुई है पर मरी तो कतई नहीं है. मीडिया को अपना अस्तित्व यदि बचाना है तो सच बोलना सीखना होगा. कुछ एक दिन पहले एन डी टीवी पर श्री विक्रम चन्द्र का रविया संघ के कार्यकर्त्ता श्री माधव जी के प्रति इतना रोषपूर्ण था की उसको बयां भी नहीं किया जा सकता. और साथ ही मुस्लिम नेताओ के प्रति बहुत ही सोहार्दपूर्ण था.
- जिस प्रकार मीडिया अपने स्वार्थो के लिए इस देश की एक खास विचारधारा के प्रति इतना शत्रुतापूर्ण व्यवहार रख रही है, कल जब इसका जवाब मिलगा तो फिर कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए. १० साल से मीडिया एक ख़ास विचारधारा के प्रति इनती असहिशुनता रख रही है उसकी प्रतिक्रिया स्वाभाविक है. इसलिए मेरा मीडिया से आज भी अनुरोध है कल जब समय हाथ से निकल जाएगा उस से पहेले अपना आत्मंथन कर ले. क्यूँ की हर दिन होत न एक समान .
- समय बदलता है कल अमेरिका हिन्दुस्तानियो को नौकरी देता था आज वो हिन्दुस्तान से नौकरी की भीख मांग रहा है. इसलिए मीडिया के सभी लोगो से प्रार्थना करूँगा समय को पहचानो नहीं तो आप कल अपने स्वाभिमान की रक्षा भी नहीं कर पाओगे.
लोग अब कांग्रेस और मीडिया को एक ही पाले में देखने लगे है . इसलिए आज से ही इमेज मेकओवर पर प्रयास करो दो चार साल में हालात बदल जायेंगे. मित्रो जेठ की गर्मी में लोग कढ़ी खाते है और बरसात में पौकोड़े पसंद करते है. समय रहेते डिश बदल लो फिर मत कहेना की किसी ने भी हमें चेताया नहीं था. मेरा पूरा विश्वास है बीजेपी या विपक्ष भी बिना मीडिया के कुछ खास नहीं कर पायेगा, उसको भी इसकी उतनी ही जरुरत है. परन्तु मीडिया को भी समझना होगा की ज्यादा दर्द दवा बन जाती है. सो ऐसा न हो की यह दर्द दवा बन जाये, फिर मीडिया सिवाए एक ठूंठ के कुछ नहीं रह जाएगी. बाकी रंग कैसे बदलना है वो रंग ज़माने वाले ज्यादा जानते है. सो मित्रो मौसम बदल रहा है निर्णय करो की सिंहासन खाली करो जनता आती है.
The fallout of the media! Congress, too bad!
ReplyDeleteत्यागी जी मैं भरत कूमार आपका फेन हू आप जो लीखते हैं वो तलवार की धार हैं मूझे भी आप जैसा लेखक बनना हैं कया आप कूछ मददगार हो सकते हैं इस राष्ट्र जागरण मैं आपका साथ देना साहता हू
ReplyDeleteWww.thehinduvoice.blogspot.com