राष्ट्रीय स्वम सेवक संघ भारत कि अस्मिता को समेटे एक सागर कि भांति है। दुनिया कि १०० करोड़ हिन्दुओ के आशा और अभिलाषा का दीप्तिमान सूर्य है। दुनिया भर के हिन्दुओ कि विशेषकर भारत कि महात्मा गांधी से बहुत उम्मीद थी। गुलाम भारत कि लाखो हिन्दुओ ने यह सोच कर गांधी का साथ दिया था कि राम राज्य गांधी जी ही लायेंगे। कुछ कुछ इसी प्रकार से लोगो ने भी भाजपा को एक दशक भर वोट राम मंदिर के लिए दिया। पर गांधी के सपने को नेहरू जी ने चुरा कर हिन्दुओ को लहूलुहान किया और भाजपा के सपने को राजग कि सूडो सेकुलरो ने।
परन्तु मुद्दा यह नहीं है। मुद्दा है १०० करोड़ हिन्दू इस शताब्दी कि चुनौतिओ का सामना कैसे करेंगे ? बात कि गम्भीरता इसलिए भी है कि कोई भी कौम बिना स्वाभिमान के ज्यादा समय टिक नहीं पाती। और आज हिन्दू स्वाभिमान को सबसे ज्यादा चोटिला किया गया है. कारण विध्यमान है। उनकी तस्वीर कुछ इस तरह से है -
- अयोध्या में श्री राम मंदिर अधूरा है
- काशी विश्वनाथ का मंदिर अपनी विवशता बोलता है।
- कृष्ण जन्मभूमि अपने अस्तित्व के लिए संघर्षशील है।
- हिन्दुओ के शंकराचार्य खुद खेमो में बटे हुए और शुद्र अहंकार के शिकार है। और बाकी बचे हिन्दू द्रोही नेताओ और मीडिया के निशाने पर है।
- हिन्दुओ कि मान्यताओ और परम्पराओ को भारत के संविधान में से धीरे धीरे बहिष्कृत किया जा रहा है।
- भारत के इतिहास में से षड्यंत्र के तहत हिन्दू गौरव को पूर्णत समाप्त किया जा रहा है।
- हिन्दू त्योहारो को एक एक कर कटघरे में खड़ा किया जा रहा है।
- हिन्दू धर्म को लगातार कमजोर किया जा रहा है चाहे उसमे से पहले सिख निकाल दिए, फिर बोद्ध और अब जैन।
- हिन्दुओ पवित्र स्थलो को गैर हिन्दू लोगो के हाथो में दिया जा रहा है। चाहे कुम्भ का मेला हा या फिर तिरुपति और वैष्णो देवी ट्रस्ट का मामला हो।
- हिन्दू मंदिरो का संरक्षण तो दूर कि बात बल्कि उनके ऊपर अतिक्रमण पर भारत सरकार कि संदिघ्ध चुप्पी।
- गैर हिन्दुओ को हिन्दुओ के वजूद पर पोषित करना।
- हिन्दू विवाह परम्परा को लिविंग रिलेशन का कानून बना कर बौना बनाना।
- हिन्दुओ पुजारिओं को किसी भी प्रकार कि वित्तीय सहयता से दूर रखना। और बाकायदा इमाम और मौलवीओ को भत्ता और वेतन देना।
- गाय - गंगा का अपमान और क्षरण।
- संस्कृत भाषा को विस्मृत करना।
- हिन्दुओ के लाहौर का लव - कुश मंदिर, पाकिस्तान में हिंगलाज देवी का मंदिर, चीन में मानसरोवर और कैलाश पर्वत, श्री लंका में अशोक वाटिका, नेपाल में पशुपति मंदिर, कंबोडिया में अंगकोर वाट मंदिर, बांग्लादेश में ढाकेश्वर देवी का मंदिर, थाईलैंड में अयुथया का मंदिर, वियतनाम में शिव का माय सोन (भद्रेश्वर) मंदिर को हिन्दुओ के इतिहास से धीरे धीरे गायब करना या हो जाना।
- हिन्दुओ के भगवानो पर कुछ एक झूठे बाबाओ और नाथो का मन मर्जी दुरुपयोग। जैसे कि लगातार वीरवार दिन को किसी नाथ / बाबा से ही जोड़ दिया गया।
मित्रो यह कुछ एक तथ्ये है जिनको समग्र रूप से देखेंगे तो आप पाएंगे कि हिन्दुओ का लगातार इस धरा से मिटाया जा रहा है। न तो हिन्दुओ के पास कोई सरकार है, न कोई नेता है, न किसी धार्मिक संघटन है जिसकी सब में स्वीकारियेता है, न कोई सरकार है यह धर्म बिलकुल अलग थलग और बेसहरा हो गया है। यह नेताओ के धोखे और षडयंत्रो का शिकार है जिसे न तो राम राज्ये मिला और न ही राम का मंदिर।
हिन्दुओ के साथ कोंग्रेस ने बहुत बड़ा धोखा किया है और विशेष रूप से नेहरू जी ने। १९४७ में जब देश का मजहब के आधार पर बंटवारा हो ही गया था तो मुसलमानो को पाकिस्तान और बांग्लादेश मिलगया था और हिन्दुओ के लिए हिंदुस्तान था। लोग सेकुलरो कि कहानी सुना सुना कर कान पका देते है चलो मान भी लो कि हिंदुस्तान सेकुलर बना दिया गया था परन्तु किसने हिन्दुओ के हितो के ऊपर कानून बनाने कि इजाजत दी ????
हिन्दू यदि भारत सरकार से अपनी धार्मिक संरक्षण और आजादी नहीं मांगे तो किस से मांगे। सरकार और नेताओ ने भारतीयता कि चोले में हिन्दुओ को समाप्त करने का दुष्चक्र चला और जो आज तक चलता आ रहा है।
यदि एक मिनट के लिए मान भी ले कि भारतीयता और हिंदुत्व एक ही है तो मुसलमानो और दूसरे अल्पसंखयको को धार्मिक स्वतंत्रता के साथ साथ देश द्रोहता कि स्व्तंत्रता क्यूँ ?
- वंदे मातरम गाना भारतीयता है तो सब क्यूँ नहीं गाते।
- वीर सावरकार भारत के नेता है तो सब क्यों नहीं पूजते।
- महात्मा गांधी राष्ट्रपिता या नायक है तो राम राज्य कि बात क्यूँ नहीं ?
- संविधान भारत का है तो पालन हिन्दुओ पर ही क्यों थोपना। दुसरो के लिए वक्फ बोर्ड या शरीयत कानून क्यूँ ?
- शाहबानो के लिए सुप्रीम कोर्ट कि अनदेखी तो राम मंदिर के लिए क्यूँ नहीं ?
- आजम खान कुंभ मेले का अध्यक्ष तो प्रवीण भाई तोगड़िया वक्फ बोर्ड का चैयरमेन क्यों नहीं ?
- अजमेर पर नेताओ कि चादर तो शिवलिंग पर गंगा का जल क्यूँ नहीं ?
- तिरंगे के तीन रंगो में से एक पर भगवा आतंकवाद का प्रचार बाकी पर चुप्पी क्यूँ ?
- कल कि इंद्रप्रस्थ और आज कि दिल्ली में उर्दू दूसरी भाषा तो संस्कृत क्यूँ नहीं?
- बौद्ध धर्म यदि अलपसंख्यक है तो फिर अशोक चक्र भारत का चिन्ह क्यूँ है ? हिन्दू के अनुसार भगवान् बुद्ध विष्णु के नौवे अवतार और उनके ही मतावलंभी अलपसंख्यक तो फिर परशुराम / राम / कृषण और अन्य के पूजने वाले बहुसंख्यक कैसे ?
- हिन्दुओ यदि भगवान् बुद्ध को विष्णु का नोवा अवतार मानते है तो फिर बौद्ध हिन्दुओ से अलग कैसे हुए ?
- यदि गुरु गोबिंद सिंह जी ने जैसा कि सिख ग्रंथो में उद्धृत है ५ 'क" धारण कर हिन्दुओ कि रक्षा के लिए सेना बनाई थी और बलिदान दिए थे तो वो हिन्दुओ से अलग हो कर अलपसंख्यक कैसे बना दिए गए ?
- यदि राजा भरत के नाम पर देश का नाम भारत है तो राजा भारत को देश के संविधान में कोई स्थान क्यों नहीं ?
- भारतीयता और हिंदुत्व का तालमेल जो कि सर्वश्रेठ हो सकता है को भारतीयता और हिंदुत्व से घालमेल कर हिन्दुओ के अहित के लिए परिभाषित होने दिया गया। अवसरवादी नेता आज के अलपसंख्यकों के बहुसंख्यक हो जाने पर हिन्दुओ को कैसे सुरक्षा देंगे इसका कोई संकेत नहीं देते।
यह सारे प्रशन भारत के नेताओ से जवाब मांग रहे है कि हिन्दू, देश के नागरिक के इतर एक धर्म का भी पालन करता है तो उसकी धार्मिक और सांस्कृतिक आजादी कि सुरक्षा कि गारंटी कौन देगा। या सरकार हिन्दुओ को समग्र रूप में न देख बल्कि समस्याओ का निदान दलित , पिछड़ो , जातिओ , वर्गों , क्षेत्रीयता , भाषा के रूप में ही करती रहेगी। इस से तो हिन्दू धर्म कल ख़तम हो जायेगा। इसके कुछ एक उद्धरण निम्न है।
गाव में समस्या है तो दलित पिछड़ो को आरक्षण दे दो।
- पूर्वतर में समस्या है तो मणिपुर / असाम इत्यादि को असमी या मणिपुरी के नाम से अलग से कुछ दे दो।
- कुछ सम्प्रदाय को करना है तो उनको एक अलग धर्म घोषित कर के अलपसंख्यक बना दो। जैन को अलग धर्म बनाने कि इजाजत किस ने दी। और जैन यदि एक धर्म है तो फिर शैव / वैष्णव भी एक धर्म है तो फिर हिन्दू कौन है। क्या ईंट पत्थर हिन्दू है ?
- शहरो में समस्या है तो एक और जाति जाटो को आरक्षण दे दो। तो फिर देना किसको नहीं पेहेले यह निश्चित कर लो।
- सोनिए गांधी विदेशी नहीं, राहुल विदेशी नहीं तो फिर देशी कौन है। मेरा इस से राजनेतिक मतलब नहीं बल्कि यह निर्धारित करने पर जोर देना है कि जब हिन्दुओ का देश भारत है ही नहीं जैसे कि उसे संविधान में उसके हिन्दू होने को कोई तवज्जो नहीं और हिन्दुओ का जब मर्जी जो मर्जी जिस तरह से भी कोई भी कैसी भी सरकार और नेता परिभाषित कर देते है।
हिन्दुओ और नागरिकता में पहल से ही भारत में कोई शंका नहीं रही थी पहले राजा का वो ही धर्म (सम्प्रदाय ) होता था जो प्रजा का होता था अन्यथा रजा अपना ईष्ट बदलता था तो प्रजा भी स्वेछा से ऐसा ही कर लेती थी और यह सभी जगह (न कि देश ) फैला था वो आज का कंबोडिया हो, थाईलैंड, भूटान नेपाल वियतनाम श्रीलंका आदि हो क्योकि सभी लोग विष्णु के ही किसी न किसी अवतार या आदि शक्ति को मानते और पूजते थे। विदेशी कौन है यह बड़ा स्पष्ट था। फिर शंकराचार्य नामक संस्था ने जनम लिए और उन होने राजाओ को भी अध्यात्मिक रूप से नियंत्रित किया। इस इस्लाम के आने और पश्चिम के देशो कि राष्ट अवधारणा से जैसे कि यूरोप में हो चूका था हिन्दुओ के ब्रिटिशर्स के आने से कमजोर होने पर सदूर एशिया के देश हिन्दू धर्म और ब्रिटिश-भारत कि दुर्दशा से अपने को अलग करता चला गया और फिर ब्रिटिशर्स के आने से "सरकार" नामक संस्था मजबूत होती चली गई और राजा और धार्मिक गुरु कमजोर। फिर भी हिन्दुओ ने राम राज्य के नाम पर महात्मा गांधी को पकड़ा। और हिन्दू जब सड़क पर आ गए जब उनको नेहरू नामक शासक मिला जिसने हिन्दुओ को दिल्ली मुम्बई चिन्नई और कलकत्ता में समेट दिया और इंडिया नाम देकर हिन्दुओ कि बिना मर्जी के संविधान थोप दिया। अच्छा इस बीच विदेशी धर्मो ने अपने स्थान ले लिये जैसे अफगानिस्तान, पाकिस्तान बांग्लादेश और वर्तमान भारत में भी अपना अधिकार जमाया रखा जो आज तक जारी है।
अब कहने को तो भारत हिन्दुओ का देश था है और है पर धार्मिक आजादी उसे नहीं नहीं। दुनिया के किसी भी कौने या टुकड़े पर आज हिन्दू अपने सम्पूर्ण धार्मिक आजादी से नहीं जी सकता। तो अब आप बताये कि हिन्दू रोए तो किसे ?
जो स्वपन महात्मा गांधी ने हिन्दुओ को राम राज्य का दिखाया था उसी कथन और स्वपन में आजादी से पहले और आजादी के बाद हिन्दुओ ने अपने अपने जनपदो / राज्यो / रजवाड़ो को बौना कर महात्मा गांधी को फॉलो करना शुरू कर दिया था। जिसको आज के सेकुलर और कोंग्रेसी महात्मा गांधी कि धार्मिक और अध्यात्मिक शक्ति का राजनेतिक दोहन कर १०० करोडो हिन्दुओ के बेवकूफ बना कर बर्बादी कि गर्त में धकेलने का पाप कर रहे है।
क्या कभी कोंग्रेसीओ और देश में झाड़ू लिए सेक्युलरो को पता है कि किस वादे और इरादे से हिन्दू महात्मा गांधी से जुड़ा था ?
बात पर वापस आते है राष्ट्रय स्वम् सेवक संघ। यह वो सत्ता / शक्ति / ताकत है जो विश्वामित्र में थी , चाणक्य में थी और कुछ हद तक महत्मा गांधी में भी थी जिस सम्मोहन के विवश महाराजा दशरथ ने अपने दो सुकुमारो राम और लक्षमण को विश्वामित्र के हाथो सौप दिया राक्षशों के विनाश के लिए, जो हस्तिनापुर मदमस्त हो गया पांच पांडवो के लिए , मगध के मस्ताने एक कौटिल्ये के साथ हो गए, कारण वो ही एक है कि हिन्दू सत्ता के इतर एक अध्यात्मिक / निष्कपट / निस्वार्थ पुंज के चारो और ही इकट्टा होता रहा है। महात्मा गांधी के जाने के बाद यह ही भारत ने खोया और नेहरू ने यह ही पाप किया जो मगध के नन्द शासको ने किया था।
कई लोग कहते है कि विश्वामित्र / चाणक्य जैसे महानभुवो जैसे तो भारत में और कोई व्यक्ति हो सकता है फिर एक संघटन को इस पंक्ति में खड़ा करने का कोई कारण है। हाँ कारण है। यह वो ही कारण है जिस कारण से डॉक्टर हेडगेवार जी ने भगवा ध्वज को गुरु माना था किसी व्यक्ति या अपने को नहीं। भारत जैसे राष्ट को यदि विश्वगुरु बनना है तो वास्तविक सत्ता जो राजनैतिक है के इतर अध्यात्मिक / निस्वार्थ / त्यागी सत्ता के पुंज के आस पास एकत्र हो कर देश प्रेम / राष्ट्र प्रेम का अमृत चखते रहना होगा, प्रेरणा लेती रहनी होगी।
वैसे तो प्रक्रिया शुरू हो चुकी और यह परम्परा डालने का क्रेडिट भी संघ को ही जाता है कि देश में सारा नेतृत्व राजनैतिक ही न हो सामाजिक नेतृत्व भी हो जैसे कि धर्म गुरुओ का रहा है, सामजिक क्रांतिकारिओ का रहा है जो समाज में राजनैतिक लोगो कि तरह ही घूमते भाषण करते है, देश, धर्म और समाज को जागरूक करते है परन्तु राजनैतिक प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लेते। इसका सीधा लाभ यह है कि देश समाज हमेशा जागरूक रहता है और वास्तविक शासको पर अंकुश भी रहता है। आज कुछ लोग निस्वार्थ हो देश में भ्रमण करते है अपने से पैसा लगा कर समाज और धर्म को जागरूक कर रहे है। पढ़े लिखे जाहिल भी दुनिया में कम नहीं तो कुछ अपने से ही इंटरनेट पर जागरूक अभियान फैला रहे है जिनको चिड़ कर सेकुलर जमातो ने "इंटरनेट हिन्दू " का नाम दे दिया।
संघ का उद्देश्य का हो इस पर तो हम नहीं कहे सकते परन्तु आम हिन्दू कि अपेक्षाए संघ से क्या है वो तो कहा ही जा सकता है। हिन्दुओ को एक बात तो अच्छे से समझ में आती है कि जब जब भारत कमजोर हुआ है तब तब हिन्दू धर्म कि क्षति हुई है। हम ने सिक्के के दूसरे पहलु पर भी विचार किया कि जब जब हिन्दू शक्तिशाली हुआ है तो क्या तब भी भारत मजबूत हुआ है। तो यह बात भी सच है पर आंशिक कि जब तक भारत का हिन्दू शक्तिशाली नहीं होता तब तक भारत भी शक्तिशाली नहीं हो सकता। अब कुछ एक तथ्य इस प्रकार है जो किसी और पर यह लागु नहीं होते जैसे कि यहुदिओं पर यह तथ्य लागु नहीं होता वो अमेरिका में ताकतवर थे तो इसराइल बना लिया और इसका लाभ ले लिया। परन्तु हिन्दू नेपाल (एक समय में ) और अमेरकिा और इंग्लेंड में ताकतवर हो कर भी समग्र हिन्दुओ और भारत को लाभ नहीं पहुंचा पाये जैसे कि यहुदिओं ने इसराइल निर्माण कर के किया था। इसका कारण क्या है। इसका कारण हिन्दुओ में एकता का आभाव है। जिसको संघ जैसा संघठन ही करवा सकता है। कोंग्रेस ने तो महात्मा गांधी को त्यागने के बाद केवल धनपशु बनना स्वीकार किया अन्यथा आजादी से पहले यह कार्य कोंग्रेस ही कर सकती थी।
अब आते है इस के उन दुष्परिणामों पर जिसको कि कुछ अंतराष्ट्रीय देश गलत अर्थो में ले सकते है। और यह और भी मुजू हो जाता है जब कोंग्रेस जैसे संघटन देश के अंदर ऐसे कुप्रचार कि हवा बनाते है। कुछ लोगो को संदेह है कि भारत और हिन्दुओ के इस प्रकार से संघटित होने पर कुछ हिटलर जैसे घट सकता है। भाई कोंग्रेस है कुछ भी सोच सकती है और सोचने का अधिकार सब को है। परन्तु यह एक दम असत्य है क्यूंकि चाणक्य ही ने चन्द्रगुप्त को सेलूकस कि बेटी से विवाह करने कि प्रेरणा दी थी और विश्वामित्र के शिष्य श्री राम ने रावण को हरा कर विभीषण को लंका का राजपाट दिया था। और दोनों ही संघ के कोर आइडिओलॉजर है सो विदेशिओं और देश में हिन्दुओ के प्रति कटुता रखने वालॊ को धेर्य रखना चाहिए और संदेह करना छोड़ देना चाहिए।
अमेरिका जो कि एकदम गलत नीति का शिकार था और जाने अनजाने एक गलत दिशा कि और जा रहा था ने एक दम सही समये पर अपनी नीति ठीक कर भारत देश में उभरते हिन्दू राष्ट्रिय नायक नरेंद मोदी से संबधो को दुरुस्त किया जिसकी जितनी प्रशंसा कि जाये कम है। अमेरिका को एक बात सोचनी चाहिए कि भारत न तो जर्मनी और इटली कि तरह औद्योगिक क्रांति का सूत्र पात है और न ही इस्लामिक देशो कि तरह फेनेटिक है और न ही अरब देश कि तरह तेल जैसे अकूत सम्पदा के ऊपर बैठे है और न ही जापान कि तरह घोर राष्ट्रवादिता के शिकार है। इसलिए यह स्पष्ट करना जरुरी है क्यूंकि यह उपरोलिखित कारण ही प्रथम और द्वितीय युद्ध के कारण थे। भारत और हिन्दू तो वसुधैव कुटुंबकम् में विश्वास रखते है और हिन्दू जब अत्यंत प्रसन्न होता है या धन से परिपूर्ण हो जाता है तो वो आश्रमो में चला जाता है या सन्यास ले लेता है। इसका उधारहण भारत के इतिहास से लिया जा सकता है। हिन्दू के किसी भी शासक ने अपने राज्ये का विस्तार करने के लिए जोर नहीं लगाया बल्कि जो था उसको समृद्ध बनाने में ध्यान लगाया वो चन्द्रगुप्त मौर्य हो अशोक हो या विक्रमादित्य हो या राजा भोज हो। जो था वो अपने स्वर्णिम काल में लोगो में बाँट दिया और त्यागी का जींवन व्यतीत किया। वैसे अत्यिशयोक्ति होगी एसा केहेना, समकक्ष तो नहीं परन्तु वर्तमान में अटल बिहारी वाजपेयी को ले सकते है जिन्होंने ६ साल भारत पर शासन किया और अब एकाकी जीवन बिता रहे है न अपने परिवार के लिए कुछ और न ही अपनी अतृप्त इच्छाओ के लिए कुछ तो न स्विस बेंक में न स्टेट बैंक में कुछ। यदि भारत में राष्ट्रवादी हिन्दू शासन आ भी जायेगा तो अमेरिका को इसमें घबराने कि आवशयकता क्या है।
- ऊपर में हिन्दुओ पर संदेह करने वाले देशी और विदेशी शंकाओ के निर्मूल करने के बाद अब संघ को भारत को जगतगुरु बनाने पर फोकस कर देना चाहिए।
- पहले तो दलित आदिवासिओ को ब्राह्मण के समकक्ष खड़ा कर देना चाहिए। जाति के आधार पर लगो को सम्मान न देकर कर्म के आधार पर लोगो को उचित सम्मान दिया जाये। ऐसा संस्कार हिन्दुओ में फैलाना होगा। पुरे भारत का डीएनऐ एक है वो चाहे उत्तर और दक्षिण और पूरब हो पश्चिम हो हिन्दू हो या मुस्लमान सब एक ही है करूणानिधि हो या अमरेंदर सिंह सभी का डीएनऐ एक ही है।
- दूसरा भारत कि जनता को टेक्स रूपी दानव से बचाया जाये न तो वो अपने पर कुछ खर्च कर पाती , न परिवार पर और न ही धर्म पर।
- देश में जो राष्ट्रीयता कि बयार बह रही है उसमे शिक्षा और तकनीक का बहुत बड़ा योगदान है उसको गांव गांव फैलानी होगी।
- क्रिश्चनिटी और इस्लाम को सबसे बड़ा खतरा टेक्नोलॉजी से है और शिक्षा से है यदि यह दोनों न होते तो वेस्ट में न तो प्रोटोस्टेन्ट होते और न ही साइंटोलजी धर्म होते। इस्लाम में तो खैर सारा जोर ही अशिक्षा पर है उसकी तो चूल्हे ही हिल गई शिक्षा और टेक्नॉलजी कि वजह से। हिन्दू धर्म में जैसे जैसे शिक्षा और टेक्नोलजी का विकास होगा हिन्दू धर्म उतना ही मजबूत और समृद्ध होता चला जायेगा। यह ही एक ऐसा धर्म है दुनिया में जिसमे शिक्षा का जितना प्रसार होगा उतना फैलता जायेगा और बाकी धर्म इसके ठीक उलटे है।
- भारत कि सत्ता पर तो बैठना ही होगा बिना इसके तो तो कुछ हो ही नहीं सकता परन्तु बैठने के बाद सबसे पहले कोंग्रेस कि भूसे कि गठड़ी जरुर खोलनी होगी वो भी तूफानी पंखे के आगे। पिछले सौ साल का इतिहास पुर्जे पुर्जे बांचना होगा अन्यथा जो राजग सरकार के बाद होगो वो ही सब बाद में जीरो हो जायेगा।
- संघ कि कोशिशो के बाद भी विश्व हिन्दू परिषद एक सीमा के बाद आगे बढ़ ही नहीं पाई अंतराष्ट्रीय स्तर पर बौद्धों को न तो किसी रूप सम्पर्क में रखा जा रहा और न ही प्रयास हो रहे।
आपके अनुसार क्या जैन धर्म और हिंदू धर्म एक ही है? और अगर है तो इतिहासकारों और इतिहास के प्रमाण दोनों को अलग अलग क्यों बताते है?दोनों संस्कृतियों श्रमण और वैदिक को अलग अलग क्यों बताया जाता है?यदि श्रमण और वैदिक अलग अलग है तो जैन और हिंदू भी अलग अलग होंगे या नहीं?
ReplyDeletehindi.webduniya.com पर "हिंदू और जैन इतिहास की रूपरेखा" पढ़ें|
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