- अंग्रजी को हिंदी के ऊपर बैठना चाहते है।
- पिंक चड्डी फ्री मैं बांटते है।
- सेकुलारिसम से पीड़ित है।
- धर्मं और पंथ मैं अंतर न करना जानते है।
- हर भारतीय जीत या कोई भी हिंदुस्तान का त्यौहार हो उसके तुंरत बाद नमाज पढ़ते मुस्लमान का अख़बार मैं छपने वाले लोग। (पता नहीं इन अख़बार वालो को कौन बता ता है की यह हिंदुस्तान मैं शांति और अमन के लिया दुआ कर रहे है। परन्तु हर त्यौहार के बाद एक मुस्लमान का नमाज पढता हुआ फोटो साथ मैं कैप्शन के साथ हिंदुस्तान और दुनिया मैं अमन के लिया दुआ मांगता एक नमाजी। आज तक मैं एक भी फोटो नहीं देखि जब कोई किसी पंडित की आरती करते हुए कप्शन के साथ छापी हो के शांति के लिया आरती करता एक हिन्दू. हिन्दू करता हैं अपने लिया लक्ष्मी और समृधि के लिया और मुस्लमान पूरी दुनिया मैं शांति के लिया. हा पुरे विशव मैं शांति सिर्फ मुस्लमान ही तो रख पा रहे हैं बाकि सबतो राक्षश है.
- ये झोले लटकाए भइये, जेएनयू की लाल किताबी, मीडिया मैं घुसपैठी, स्वम्भू प्रगतिशील और देश तोड़क लोग। ब्रेकिंग न्यूज़ चलने वाले छुटभइये पत्रकार जिनको पटना के छिछोरे पूर्व मास्टर मैं लव गुरु नजर आता हैं. हर बहस मैं उसके विचार जरूर रखे जाते है. जिनको नारी क्रांति के रूप मैं एक फिजा मिली है. जैसे राँझा चंदर मोहन बस अभी इसी युग मैं जनम लेचुका. बेहेस मैं जगह भरने के लिया पत्रकर, लेखक, प्रोफेसर, कोई हो जिसको निष्पक्ष दिखाना हो तो सिर्फ और सिर्फ जेएनयू सम्बंधित विचारधारा के झोले छाप लोग ही पकडेंगे.
- एक जमात जिसका अब समय गया जिसको खुद नहीं पता की अब वो पुराने ज़माने की वास्तु होगया। अरे यार वो ही लाल रंग से लाल किताब की नक़ल कर कर लाल लाल होकर (भारत सरकार का खा खा कर) लाल झंडो से. लाल बंदरो की तरह उत्पात मचाते. विशष रूप से हिन्दुओ को गाली देते. फिजूल क्रांति की तोता रट लगाते. क्रांति क्रांति करते कान्ति लाल की गोद मैं बैठ कर कुछ एक अख़बार (जो की अपनी आखरी साँस ले रहे है) कुछ एक न्यूज़ चैनल (जो की अब अमेरिका की गोद मैं बैठे है) मैं पत्रकरीता के नाम पर सिर्फ और सिर्फ होठो और जबान मैं खून का दौरा दुरुस्त कर रहे है.
- भगवा गुंडे शब्द को इजाद करने वाले कलम के क्रांतिवीर असल मैं हाई ब्रीड नसल के प्राणी।
- स्लम डोग पर स्लम और डोग के बीच भी न जगह मिलने वाले।
- एक नई डिक्शनेरी (शब्दकोष) बनाने वाले लोग जिसमे हिन्दू से जुड़े हर शब्द को गाली बना ने का ही कार्य होगा।
यह सभी गलती और दुर्भाग्य से भारत की पावन धरती पर जनम लेकर हिन्दुओ और हिंदुस्तान को रात दिन गली देकर उनको दोयाम दर्जे का घोषित करने मैं दिन रात रत रहेने वाले लोग रंगे सियार कहलाते है। इन का सच क्या है इन का सच उस प्रकार है.
जिस प्रकार एक लोमडी होती है उसकी बकरी मित्र होती है। लोमडी का बकरी और उसके बच्चे खाने का मन होता है परन्तु बकरी के सींग देख कर डर जाती है तो रोजाना येन केन प्रकाण उसके सिंग तोड़ने का प्लान बनाती है. हमेशा तारीफ़ करती है देखो बहिन शेर हाथी घोड़ा सब ताकतवर होते है परन्तु किसीका सिंग नहीं होते परन्तु गाए, बैल, भैंस जो डरपोक होती हैं सभी के सिंग होते है. अब रोज यही दोहराते रहेना. दिन रात इसी बात पर जोर देना के सिंग तो पिछडेपन की निशानी होते है. एक दिन बकरी अपने और अपने बच्चो के मजबूत सिंग इसी रोज रोज की भुलावा मैं आकार तोड़ देती हैं. जैसे ही तोड़ती है. अपनी रक्षा का हतियार गवां बैठती है. तभी लोमडी और उसके बच्चे बकरी और उसके पुरे परिवार का सफाया करदेती है और मुह पर लगा खून साफ करते हुए अपनी बुधि और एक ही झूट को दोहराने की सफलता पर नाज़ करते हुए किसी दुसरे शिकार की तरफ चल पड़ती है.
इसी प्रकार ये झोला छाप हमारी हर अच्छई को एक अलग अंदाज मैं पेश करकर हमे ही हमारे ही देश मैं हमे ही गाली देती रहते है।
अब इसके बाद रंगे सियार मुझे अपनी टिपनिया उसी रूप मैं न भेजे विशष रूप से हिंदुत्व को गाली देनेवाले। वो बकरी थी जो शिकार होगई हम लोमडी को पहेचान चुके है। अब तो लोमडी का ही शिकार होगा।
हिन्दुओ के वेदों को गडेरियो के गीत बताने वालो के दिन हवा होगय।
प्रगतिशीलता (झूटी) और सेक्लुरिसम (सूडो) से पीडितो को मेरी भावः भीनी श्रधांजलि.
श्रद्धांजलि के लिए धन्यवाद। वैसे कुछ ऐसे भी होते हैं जो न तो सियार होते हैं न रंगे ही। वे केवल बुद्धि का उपयोग करना चाहते हैं, अपना भला बुरा स्वयं सोचना चाहते हैं, न लाल, न हरे, न भगवे रंग को अपनी उंगली पकड़ चलना सिखाने देते हैं। वे स्वयं गिरकर चलना सीखना चाहते हैं। वे अपनी बुद्धि या आत्मा किसी भी रंग वाले के पास गिरवी रखने को तैयार नहीं होते। राह कठिन तो होती है परन्तु अपनी राह बनाने का प्रयास तो वे करते हैं। सोचना भी कठिन काम है परन्तु वे अपने लिए स्वयं सोचना चाहते हैं। गल्तियाँ भी करते हैं, प्रायः उन्हें स्वीकारते भी हैं। परन्तु अपने गलती करने के अधिकार को खोना भी नहीं चाहते। वैसे समाज के लिए यही सबसे खतरनाक होते हैं क्योंकि वे किसी की भेड़ नहीं होते, न तो भेड़ चाल चलते हैं न किसी के द्वारा हाँके जाने को पसन्द करते हैं।
ReplyDeleteवे न तो वेदों को गडेरियों के गीत मानते हैं न किसी अन्य धर्म वाले को शान्ति दूत। परन्तु यह जानते हैं कि धर्म का और जो भी उपयोग हो वे स्त्रियों के लिए तो कदाचित् नहीं गढ़े गए। वे न तो किसी की धार्मिकता पर प्रहार करते हैं न उनसे धार्मिक होने का अधिकार छीनते हैं। वे बस अपने ढंग से जीना चाहते हैं। क्या वे फिर भी इसलिए खतरनाक हैं क्योंकि वे किसी एक अतिवादी का पाला नहीं चुनते?
घुघूती बासूती