Friday, December 21, 2012

हिन्दुत्त्व का प्रादुर्भाव


कुछ लोग हिंदुस्तान में जानबूझ कर वक्त का तकाजा और घटनाक्रम की प्रकर्ति समझने की कोशिश नहीं कर रहे है और मुद्दों को भटकाने की मशक्कत कर रहे है। दीवार पर साफ़ साफ़ लिखा हुआ है की भारत देश 1947 की पीड़ा को व्यक्त कर रहा है। 1947 से पहेले क्या भारत विकास के रास्ते पर अग्रसर नहीं था या उस से पहले नहीं था।1952 में भी एक रुपया 5 अमेरिकन डॉलर के बराबर था जो की आज 56 रुपया है। तो क्या 5 रूपये से 56 रुपया तक का सफ़र हमें विकसित राष्ट्र बना रहा है। असल में ठोस रूप से हमें लुटने के लिए भरमाया मात्र जा रहा है। वो चाहए ऍफ़ डी आई हो या किसानो का देश से जानबूझ कर सफाया। विकसित तो आसियान देश भी हुए थे पर कितने दिनों के लिए।  सिंगापूर को छोड़ कर वापस वहीँ के वहीँ यह देश पहुँच गए है। 

असल में भारत देश को सामाजिक शांति चाहिए जो राष्ट्र को एक दिन विकसित बना देगी बाकी सब कहानी है या कहिये मृग मरीचिका है। देश जब तक मुस्लिम लोगो की राष्ट्रवादिता पर शक करेगा तब तक देश में शांति नहीं होगी और मुस्लिम जब तक अपने धर्म को बाद में और राष्ट्र को पहेल नहीं लेंगे यह शक भी ख़त्म नहीं होगा। भारत देश कांग्रेस और अन्य दलों की सूडो धर्मनिरपेक्षता से घायल है और जब तक लोग हिन्दुओ को जबरदस्ती धर्मनिरपेक्षता की घुट्टी पिलाते रहेंगे यह देश कभी भी सामाजिक शांति का स्थान नहीं ही बन पायेगा। दूसरी तरफ आप भी कहे सकते है की जिस प्रकार हिन्दू धर्मनिरपेक्षता की घुट्टी नहीं पी  सकते जैसा की पिछले 65 साल गवाह है उसी प्रकार मुसलमान राष्ट्रवादिता की घुट्टी नहीं पी सकते। अच्छा तर्क है परन्तु हल क्या है। असल में यह मुद्दा मुसलमानों को भरमाने का ज्यादा है। आज कांग्रेस व् अन्य दल मुसलमानों को जुल्म और पीड़ित के रूप में पेश करते आये है और उसी का परिणाम है की दो देश देने के बाद भी मुसलमान अपने को पीड़ित ही समझता आया है। और आगे भी समझता रहेगा। इसी का परिणाम है हिन्दू 30000 मंदिरों का न्याय नहीं पा पाया। अरे छोड़ो 30000 मंदिर अपने मर्मस्थल काशी, अयोध्या और मथुरा का न्याय भी नहीं पा पाया और न ही आगे कोई सम्भावना है। वास्तव में इस प्रकार की सोच के चलते न तो मुसलमानों को भारत देश में वो सम्मान ही मिल पाया जो पारसी या अन्यो को मिल गया और न ही वो अपने को पीड़ित मान कर देश की केंद्रीय भूमिका में आ पाया। असल में मुसलमान देश से उस प्रकार जुड़ ही नहीं पाया या 1947 के बाद हिन्दू समाज ही उनको आत्मसात नहीं  कर पाया जैसे की कर लेना चाहिए था। जो सम्मान आज टाटा को है क्या वैसा किसी मुसलमान को है, नहीं ! इस द्वन्द के चलते यह खाई चौड़ी ही रही भर नहीं पाई। कुछ लोग इस बात से सहमत भी नहीं होंगे वो मुझे शाहरुख़ खान, सलमान, आमिर, अब्दुल हमीद, हामिद अंसारी, अबुल कालाम, आजाद और ना जाने कितने और नाम गिना कर अपनी बात को ही पानी देंगे। मेरा कहेना है की यह भी एक भरमाने वाले ही बात है। कुछ एक लोगो से देश की मुख्यधारा नहीं बनती। लाखो हिन्दू अजमेर शरीफ भी जाते होंगे पर फिर भी इन टोटको से देश की सामाजिक शांति की गारेंटी नहीं आ पाती। इस देश में मुस्लिम आबादी और हिन्दू आबादी अमूमन अलग अलग ही रहती है किसी भी शहर में यह आप को दिख सकती है। एक या दो मंदिर मस्जिद एक ही जगह होने से और उसको टोटको की तरह इस्तेमाल कर के देश में सामाजिक शांति का ढोंग नहीं किया जा सकता जैसे के पाकिस्तान लाहोर में एक सड़क का नाम भगत सिंह रख कर धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकता उसी प्रकार हम भी एक दो टोटको से सामजिक शांति का ढोंग नहीं कर सकते। क्या हिन्दू-पारसी साथ नहीं रहेते हिन्दू-सिख साथ नहीं रहते या बोद्ध - हिन्दू साथ नहीं रहेते तो फिर हिन्दू - मुस्लिम क्यों एक साथ नहीं रहे सकते। असल में एक दुसरे पर अविश्वास ही मुख्य मुद्दा है। बहुत से स्वर्ण दलितों को आरक्षण के खिलाफ है परन्तु इसके बावजूद उनमे नफरत नहीं, साथ रहेते है और साथ मंदिर में माथा टेकते है एक शमशान में मृत शारीर फूंकते है। परन्तु मुस्लिम के प्रति वो भाव नहीं है। 

इतना कुछ लिख दिया परन्तु समाधान क्या है। असल में समाधान है नेत्रत्व। जब तक देश का नेत्रत्व एक मजबूत मुख्य धरा के राष्टवादी नेता के हाथ में नहीं होगा जब तक हिन्दुस्तान में सामजिक शांति नहीं आ सकती और न ही देश विकसित हो सकता। असल में राष्ट्र को एक  विश्वसनिये नेता चाहिए जिसके आश्वासन पर मुस्लिम अपने को राष्टवादी माने और विकास की तरफ अग्रसर हो। क्योंकि जो काम धंधे कुछ समय पहेले मुस्लिमो के ही क्षेत्र माने जाते थे आज वहां पर भी हिन्दू काबिज हो चूका तो मुसलमानों के अवसर दिन प्रति दिन घटते ही जायेंगे और जो लोग इसे सरकार का मामला मान रहे है वो भ्रम का शिकार है। एक और आरक्षण इस का समाधान नहीं बल्कि एक और बंटवारे का रास्ता है।
आज गुजरात की जीत से एक राष्टवादी नेता पनपा है जिसका नाम नरेन्द्र मोदी है। लोग तो सूरज में भी कमी निकाल सकते है फिर तो वो मानव भर है। परन्तु इस से इनकार नहीं किया जा सकता की इस शख्स ने हलाहल शिव शंकर की तरह पिया है कुछ कुछ एसा  ही श्री अडवानी जी ने भी बहुत समय तक पीया  है। पिछले 10 सालो से लोगो ने इसको इतना बोल इनता बोल के इसको भारत का ओबामा बोल जाये तो अतिश्योक्ति नहीं हो गी। आज जो नरेद्र भाई कर रहे है वो असल में हिन्दुओ के बहुत बड़े हिस्से की ही आकांक्षा है। जो भी लोग यह मानते है की गुजरात में भाजपा की जीत नहीं केवल मोदी की जीत है वो बहुत बड़े भ्रम का शिकार है। यह कुछ कुछ भाजपा के कर्मठ कर्येकर्ता और मतदाता पर थूकना है। बिना संघटन के जो लोग यह मानते है की बाते बना कर ही जीता जा सकता है या कुशल प्रबधन या मार्केटिंग से ही चुनाव जीता जा सकता है तो देश के अधिकांश एमबीए संस्था के प्रोफ़ेसर या किसी कंपनी के सी इ ओ ही इस देश के प्रधानमंत्री  या मुख्यमंत्री  हुआ करते। नेता वो जिसकी बात पर लोग विश्वास करते हो और उसके कहेने से कार्यकरता लोगो को मतदान तक लाते हो। जिस राहुल गाँधी की घोषित रूप से मीडिया सहयेता करती है और संस्था ज्ञान पिलाती है से कोई राष्ट्र का लोकप्रिय नेता नहीं बन सकता।

भाजपा में इस बात की कोई कमी नहीं की इसके बड़े बड़े नेता "अहम" जरुर पाले है जिस से देश का भाजपा की सरकार मिलने में देरी हो रही है। आशा है वो अपना "अहम्" जल्द से जल्द छोड़ देंगे। 

मोदी में भी अहंकार है पर यह वो अहंकार है जो राम में अपनी सीता पाने का अभिमान था। यह वो अहंकार है जो गाँधी को अपनी "आहिंसा ' पर था। कृष्ण को अपने सुदर्शन पर था। इतना अहंकार होना जरुरी भी है। यह जब तक अहित न करे ठीक , क्या लोग मोदी को केशु भाई के घर जा कर उनके चरण छूने को राम के रावन के महान होने के  महत्व को लक्ष्मण को नहीं समझाते। मेरा केशु भाई जी को रावण कहेने का कतई तात्पर्य नहीं है। कहेना सिर्फ इतना है की केशु भाई के दुसरे खेमे में होने के बावजूद भी वो महान है वो गुणी है। परन्तु जिस प्रकार मोदी ने केशु जी  को महत्व दिया यह कोई सरल बात नहीं। दोनों में ही संघ के गुण कूट कूट का भरे है। हमें उमीद है मोदी जैसे सह ह्रदय नेता एक दिन संजय जोशी जी पर भी बड़प्पन दिखायेंगे। और यह वो संस्कार है जिनका जिक्र मोदी जी ने अपनी विजय रैली किया। संघ का यह ही गुण का प्रकटीकरण मोदी जी ने मुस्लिम भाइयो के प्रति उनके विकास के प्रति "एक" भाव अपना कर किया उनके प्रति किसी क्षण उनके मन में दुर्भाव नहीं था । राम विनम्र थे पर क्या लंका जाते सागर (समुन्द्र) के स्थान न देने पर क्रोध नहीं दिखाया था ? संघ हिन्दुओ को दिलो से दिल जीतने  का जज्बा सिखाता है जिसका की प्रकटीकरण गडकरी जी ने उमा भारती व् कल्याण सिंह जी के प्रति किया और उमीद है यह ही जज्बा श्री गोविन्दचार्ये जी को भी उनके वापसी में सहयोगी बनेगा। लोग भूले नहीं अडवानी जी के अपनत्व और समर्पण को जो लोग भाजपा पर कांग्रेसीकरण का झूठा आरोप लगते है वो जान ले की यह ही वो अडवानी थे जिन्होंने श्री अटल जी के बिना इशारा करे अपना राज पाठ  प्रधानमंत्री का पद सौप दिया था जो उस समय के एक लोकप्रिय नेता थे और है ऐसा नहीं की कांग्रेस की सोनिया गाँधी की तरह एक कटपुतली नेता देश को दिया हो। बस फर्क यह था की अटल जी सरकार चलते थे और अडवानी जी संघटन परन्तु सम्मान एक दुसरे के प्रति इतना था की किसी को भी  गर्व हो जाये । गटर टाईप बेहेस के जनक लल्लू यादव नहीं जान सकते जो अडवानी जी के प्रधानमंत्री बनने की बात उनकी जन्मपत्री से जोड़ते है की त्याग किसे कहेते है। संघ पर कई बार अहंकारी होने का भी आरोप लगता है तो वो जान ले की श्री कल्याण सिंह जी द्वारा एक नहीं बारबार गाली देने के बाद भी संघ ने उनको गले लगाया। यह संघ का ही गुण है जो हर किसी को गले लगा लेता है। और लोग बाते करते है मुसलमानों के प्रति दुर्भाव की, अरे मुस्लिम भाईओ बस जरा दिल तो रसखान सा कर और फिर देखो संघ तुम्हारा और आप संघ के। परन्तु यदि तलवार के जोर पर भारत माता का अनिष्ट करोगे तो फिर उसके विरोध के प्रकटीकरण को हिंसा या अहंकार मत कहो वो तो स्वाभिमान और हक़ व हकूक है प्रतिकार करने का .

गुंडई, छिछोरापन किसी कहते है वो कल की कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री संजय निरुपम जी की मनानिये स्मृति इरानी जी के साथ ऐ बी पी  न्यूज़ (स्टार न्यूज़) के प्राइम  टाइम पर देख लेते जिस पर की इस नेता ने स्मृति इरानी को इतनी भद्दी बाते कही की यदि वो सोनिया गाँधी के बारे में बोल दी जाती तो कांग्रेसियो आंखे फट जाती। महिला होने के लिए उनके बारे में इतना भद्दा बोल की हर महिला शर्म से गड  जाए यह है कांग्रेस की निर्लाजता। और वास्तव में जो संजय निरुपम ने कहा उस से उनकी मानसिकता और दिल्ली बस काण्ड के बलात्कारियो की मानसिकता को भिन्न नहीं माना जा सकता। हम तो कई साल से कहे रहे है की कांग्रेस ने प्रवक्ता के नाम पर गुंडे पाल रखे है। जो गुंडई से पत्रकारों और दुसरे दलों के नेताओ का टीवी पर धमकाते और गिरियते है। दूसरी और शकील साहिब है जो दुसरे को बोलने का अधिकार ही नहीं देते जानबूझ कर इतना बोलते है की टीवी का समय ही ख़त्म हो जाये पर प्रलाप इनका जारी रहेता है। 
इनके एक और स्वंभू ज्ञानी नेता है श्री चिताम्बरम बोल रहे है के हमने भाजपा को एक सीट कम आने से रोक (मतलब 117 से कम पर रोक पर वो भूल गए की जरुरी सीट तो 92 ही चाहिए) और  यह कांग्रेस की उपलब्धि है। अब लोग गोबर में भी विटामिन ढूंढ़ कर उसका स्वाद ले रहे है तो हम तो रोक नहीं सकते। कांग्रेस के नेता इस हार से इतने निरलज हो गए की गुजरात के जनता को ही गाली देने लगे। के गुजरात के कुछ लोगो ने ही तो मोदी जी को  वोट दिया सभी गुजरातियो ने तो नहीं दिया। अरे भाडू नेता देश का प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पुरे भारत के प्रधानमंत्री है या कुछ कांग्रेसियो का ही है। मोदी तो फिर भी चुनाव में लड़कर मुख्यमंत्री बना है एक नहीं 3 बार पर आप तो अपने नाजुक मनमोहन सिंह को चुनाव में भेजने की कुव्वत नहीं रखते। बार बार राज्ये सभा से लाकर देश पर थोपते हो।  

सीधा सीधा दोष तो नहीं परन्तु विपरीत बाते एक ही मुह से सुनकर अच्छी नहीं लगती आप एक ही साँस में सन्नी लियोन को देश में अश्लीलता फ़ैलाने की भी इजाजत देते हो और दिल्ली बलात्कार काण्ड पर झूटे और घडियाली आंसू भी बहते हो। यह विपरीतआत्मक और विरोधाभाषी प्रवचन ज्यादा नहीं चलेंगे। 

देश जाग रहा है। जो लोग गुजरात की जीत को हल्का बनाने में लगे है वो एक बात सुन ले की एक नहीं यह 5-5 बार भाजपा के राष्ट्रवाद की जीत है, किसी गुजरती क्षेत्रवाद, जातिवाद, भाषावाद, वर्गवाद की जीत नहीं है। जीत है तो राष्ट्रवाद से ओतप्रोत विकासुन्मुख जनता की। जो कटपुतली नेताओ, जनता से कटे, संवादहीन, क्रूर, अहंकारी, परिवारवादी नेत्रित्व के आकांक्षी और अभिलाषी राजनीती के लिए स्पष्ट सन्देश है। 

बहुत समय बाद देश में क्रूरता और संवादहीनता की सुनामी के बाद मोदी जी एक स्वच्छ हवा का झोंका लाये है जिसे जनता ने दिल्ली की लाजलजी, सड़ांध मारती राजनीति के लिए भेजा है, झूटे वादे , झूटे चेहरे, कपटी लोगो को दिल्ली के तख़्त से उतार कर जमीं पर लाने का सन्देश दिया है। देश पर ढोंगी अपढ़ लोगो का राज इस देश की  जनता नहीं चाहती। 

गलती किस से नहीं होती गलती सब से हो सकती है परन्तु इस देश की जनता अब गलती दोहराने के लिए तैयार नहीं है। राष्ट्र को वो नेता चाहिए जो मुसलमानों को सच बता कर उनका इलाज करे न की झूट बोल बोल कर उनके जख्मो को सडा सडा  कर सेप्टिक कर दे। 

हिमाचल प्रदेश भाजपा के लिए एक सबक है के बिना धरातल पर संघटन को मजबूत करे। खाली नीतिया बना कर वो फल नहीं देती बल्कि लोकतंत्र में उन नीतिओ के सु परिणामो को जनता को बताने का कष्ट भी करना पड़ता है। और लोकतंत्र जोड़ने का काम है न की थोपने का। वो फिर राहुल गाँधी हो, अनुराग ठाकुर हो, अखिलेश यादव हो। नेत्रत्व क्षमता नेताओ के डी  एन  ऐ (वीर्ये) में नहीं यह तो देश की मिटटी में तप  कर आती  है। 

यह देश सच्चा और देशभक्त नेत्रत्व चाहता है एक चेहरा चाहता है वो चाहे गाँधी हो, एम् जी रामचंद्रन हो, बाला साहिब हो, वीर सावरकर  हो, नेताजी हो , लाल बहदुर शास्त्री हो। यह जय जयकार लगाने  वालो का देश है।  कांग्रेस तो यह बात जानती है पर भाजपा को अभी समझनी है। वक्त किसी के लिए नहीं रुकता फिर चाहए आपके मुद्दे और विचार कितने भी अच्छे क्यूँ न हो, देश नेत्रत्व विहीन नहीं रह सकता। 

चुनाव चुनाव होता है वो बहुअयामी होता है। चुनाव में जनता आपका हर तरह से पूरा विश्लेषण करती है। चुनाव में मुख्मंत्री या प्रधानमंत्री नहीं बल्कि नेता चुना जाता है। और यह ही कारन है की श्री मन मोहन सिंह जी चुनाव जीतते तो नेता बनकर प्रधानमंत्री होते अभी वो प्रधानमंत्री तो है पर दुर्भाग्य से थोपे हुए है। 
मुद्दे महत्वपूर्ण जरुर होते है पर लोग  भी देखते है की उठा कौन रहा है और उसका चरित्र क्या है। लोग बावले नहीं और न ही बेवकूफ जो देश की या राज्य की सत्ता खाली मुद्दों और अखबार में बयानों के आधार पर सौप देंगे। मुझे लगता है संजीव भट्ट और अरविन्द केजरीवाल जैसे लोगो को यह बात समझ में आ गई होगी। 




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